Friday, February 11, 2011
खुशहाल सेक्सुअल लाइफ में छिपा है लंबी उम्र का राज
खुशहाल सेक्सुअल लाइफ में छिपा है खुशहाल सेक्सुअल लाइफ में छिपा है लंबी उम्र का राज
लंदन। एक नए शोध में खुलासा किया गया है कि जिन शादीशुदा जोड़ों की सेक्सुअल लाइफ बेहतर होती है ऐसे जोड़े न केवल चिरयुवा रहते हैं बल्कि उनकी उम्र भी लंबी होती है। अमेरिकी एंटी एजिंग विशेषज्ञ डा एरिक ब्रावरमन ने अपनी नई बुक ?यांगर यू? में लिखा है कि सुखद रतिक्रिया से न केवल चिरयुवा रखने वाले हार्मोन लेबल में वृद्धि आती है बल्कि इससे शरीर की मेटाब्लोजिम, ब्रेन फंक्शन, हॉर्ट और प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है। डा. ब्रावरमन ने बताया कि लोगों को अपनी सेक्सुअल लाइफ को बेहतर बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए, क्योंकि इसमें सदाबहार व तरोंताजा रहने का राज छिपा हुआ है। उन्होंने कहा कि शादीशुदा जोड़ों को अपनी सेक्सुअल लाइफ को और अधिक स्ट्रांग बनाने के लिए कॉफी का सेवन करना चाहिए क्योंकि काफी रति उत्तेजना में वृद्धि लाने में सहायक मानी जाती है, वहीं स्नैक और मूंगफली भी उत्तेजना वृद्धि में सहायक हो सकते हैं जबकि ब्राउन राइस खाने से रतिक्रिया के प्रति छायी उदासी दूर होती है और एवोकडोस नामक फू ड जोश वृद्धि में सहायक होते हैं। बेलफेस्ट स्थित क्वीन यूनिवर्सिटी द्वारा किए शोध का हवाला देते हुए डा ब्रावरमन ने बताया कि सप्ताह में तीन से अधिक बार रतिक्रिया हृदयाघात और आघात जोखिम में सुधार ला सकती है और सुझाया गया है कि रतिक्रिया के दौरान चरमोत्कर्ष से संक्रमण हमलों से निपटने में मदद मिलती है। रिपोर्ट के मुताबिक चरमोत्कर्ष संक्रमित कोशिकाओं से 20 फीसदी से अधिक सुरक्षा प्रदान करता है। हाल ही में किए एक अन्य शोध में भी पाया गया है कि स्ट्रांग सेक्सुअल लाइफ अधेड़ उम्र के लोगों को प्रोस्टेट कैंसर के विरुद्ध सुरक्षा कवच प्रदान करती है। चिकित्सकों के अनुसार शतावरी, केले, अजवाइन, अंजीर, पत्तागोभी, कस्तूरी और समुद्री फूड रतिक्रिया उत्तेजना के सबसे बेहतर उपाय है। शोध रिपोर्ट कहती है कि महज रतिक्रिया से स्वास्थ्य पर कोई लाभ नहीं होता, क्योंकि हेल्दी रतिक्रिया यानी रतिक्रिया के दौरान जब हमारा दिमाग शरीर से मिली सूचना के आधार पर की गई प्रतिक्रिया के प्रकार पर निर्भर करता है, तभी स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि जब हमारा दिमाग अपनी चरमावस्था में होता है तब ही ब्रेन केमिकल उत्पन्न होते हैं और उचित दर में पूरे शरीर में फैल पाते हैं। रिपोर्ट बताती है कि किसी भी व्यक्ति में सेक्सुअल इच्छा में कमी दर्शाती है कि ब्रेन के चार प्रमुख केमिकल-डोपामाइन, एसीटाकोलीन, जी एबीए और सिरोटोनिन में कुछ गड़बड़
लंदन। एक नए शोध में खुलासा किया गया है कि जिन शादीशुदा जोड़ों की सेक्सुअल लाइफ बेहतर होती है ऐसे जोड़े न केवल चिरयुवा रहते हैं बल्कि उनकी उम्र भी लंबी होती है। अमेरिकी एंटी एजिंग विशेषज्ञ डा एरिक ब्रावरमन ने अपनी नई बुक ?यांगर यू? में लिखा है कि सुखद रतिक्रिया से न केवल चिरयुवा रखने वाले हार्मोन लेबल में वृद्धि आती है बल्कि इससे शरीर की मेटाब्लोजिम, ब्रेन फंक्शन, हॉर्ट और प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है। डा. ब्रावरमन ने बताया कि लोगों को अपनी सेक्सुअल लाइफ को बेहतर बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए, क्योंकि इसमें सदाबहार व तरोंताजा रहने का राज छिपा हुआ है। उन्होंने कहा कि शादीशुदा जोड़ों को अपनी सेक्सुअल लाइफ को और अधिक स्ट्रांग बनाने के लिए कॉफी का सेवन करना चाहिए क्योंकि काफी रति उत्तेजना में वृद्धि लाने में सहायक मानी जाती है, वहीं स्नैक और मूंगफली भी उत्तेजना वृद्धि में सहायक हो सकते हैं जबकि ब्राउन राइस खाने से रतिक्रिया के प्रति छायी उदासी दूर होती है और एवोकडोस नामक फू ड जोश वृद्धि में सहायक होते हैं। बेलफेस्ट स्थित क्वीन यूनिवर्सिटी द्वारा किए शोध का हवाला देते हुए डा ब्रावरमन ने बताया कि सप्ताह में तीन से अधिक बार रतिक्रिया हृदयाघात और आघात जोखिम में सुधार ला सकती है और सुझाया गया है कि रतिक्रिया के दौरान चरमोत्कर्ष से संक्रमण हमलों से निपटने में मदद मिलती है। रिपोर्ट के मुताबिक चरमोत्कर्ष संक्रमित कोशिकाओं से 20 फीसदी से अधिक सुरक्षा प्रदान करता है। हाल ही में किए एक अन्य शोध में भी पाया गया है कि स्ट्रांग सेक्सुअल लाइफ अधेड़ उम्र के लोगों को प्रोस्टेट कैंसर के विरुद्ध सुरक्षा कवच प्रदान करती है। चिकित्सकों के अनुसार शतावरी, केले, अजवाइन, अंजीर, पत्तागोभी, कस्तूरी और समुद्री फूड रतिक्रिया उत्तेजना के सबसे बेहतर उपाय है। शोध रिपोर्ट कहती है कि महज रतिक्रिया से स्वास्थ्य पर कोई लाभ नहीं होता, क्योंकि हेल्दी रतिक्रिया यानी रतिक्रिया के दौरान जब हमारा दिमाग शरीर से मिली सूचना के आधार पर की गई प्रतिक्रिया के प्रकार पर निर्भर करता है, तभी स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि जब हमारा दिमाग अपनी चरमावस्था में होता है तब ही ब्रेन केमिकल उत्पन्न होते हैं और उचित दर में पूरे शरीर में फैल पाते हैं। रिपोर्ट बताती है कि किसी भी व्यक्ति में सेक्सुअल इच्छा में कमी दर्शाती है कि ब्रेन के चार प्रमुख केमिकल-डोपामाइन, एसीटाकोलीन, जी एबीए और सिरोटोनिन में कुछ गड़बड़
स्त्री-स्वास्थ्य का अनदेखा अनछुआ पर अहम पहलू - लैंगिक विकार- प्रस्तावना यदि नारियां ऐसा सोचती हैं कि ऐलोपेथी के चिकित्सकों ने उनकी लैंगिक समस्याओं को अनदेखा किया है, उनके लैंगिक कष्टों के निवारण हेतु समुचित अनुसंधान नहीं किये हैं तो वे सही हैं।
यदि नारियां ऐसा सोचती हैं कि ऐलोपेथी के चिकित्सकों ने उनकी लैंगिक समस्याओं को अनदेखा किया है, उनके लैंगिक कष्टों के निवारण हेतु समुचित अनुसंधान नहीं किये हैं तो वे सही हैं। सचमुच हमें स्त्रियों के लैंगिक विकारों की बहुत ही सतही और ऊपरी जानकारी है। हम उनकी अधिकतर समस्याओं को कभी भूत प्रेत की छाया तो कभी उसकी बदचलनी का लक्षण या कभी मनोवैज्ञानिक मान कर उन्हें ज़हरीली दवायें खिलाते रहे, झाड़ फूँक करते रहे, प्रताड़ित करते रहे, जलील करते रहे, त्यागते रहे और वो अबला जलती रही, कुढ़ती रही, घुटती रही, रोती रही, सुलगती रही, सिसकती रही, सहती रही..............
लेकिन अब समय बदल रहा है। यह सदी नारियों की है। अब जहाँ नारियाँ स्वस्थ, सुखी और स्वतंत्र रहेंगी, वही समाज सभ्य माना जायेगा। अब शोधकर्ताओं ने उनकी¬ समस्याओं पर संजीदगी से शोध शुरू कर दी है। देर से ही सही आखिरकार चिकित्सकों ने नारियों की समस्याओं के महत्व को समझा तो है। ये स्त्रियों के लिये आशा की किरण है। 1999 में अमेरिकन मेडीकल एसोसियेशन के जर्नल (JAMA) में प्रकाशित लेख के अनुसार 18 से 59 वर्ष के पुरुषों और स्त्रियों पर सर्वेक्षण किये गये और 43% स्त्रियों और 31% पुरुषों में कोई न कोई लैंगिक विकार पाये गये। 43% का आंकड़ा बहुत बड़ा है जो दर्शाता है कि समस्या कितनी गंभीर है।
यौन उत्तेजना चक्र (Female Sexual Response Cycle)
स्त्रियों के यौन रोगों को भली-भांति समझने के लिए हमें स्त्रियों के प्रजनन तंत्र की संरचना और यौन उत्तेजना चक्र को ठीक से समझना होगा। यौन उत्तेजना चक्र को हम चार अवस्थाओं में बांट सकते हैं।
उत्तेजना (Excitement) पहली अवस्था है जो स्पर्श, दर्शन, श्रवण, आलिंगन, चुंबन या अन्य अनुभूति से शुरू होती है। इस अवस्था में कई भावनात्मक और शारीरिक परिवर्तन जैसे योनि स्नेहन या Lubrication (योनि का बर्थोलिन तथा अन्य ग्रंथियों के स्राव से नहा जाना), जननेन्द्रियों में रक्त-संचार बड़ी तेजी से बढ़ता है। संभोग भी शरीर पर एक प्रकार का भौतिक और भावनात्मक आघात ही है और इसके प्रत्युत्तर में रक्तचाप व हृदयगति बढ़ जाती है और सांस तेज चलने लगती है। साथ ही भगशिश्न या Clitoris (यह स्त्रियों में शिश्न का प्रतिरूप माना जाता है ) में रक्त का संचय बढ़ जाने से यह बड़ा दिखाई देने लगता है, योनि सूजन तथा फैलाव के कारण बड़ी और लंबी हो जाती है। स्तन बड़े हो जाते हैं और स्तनाग्र तन कर कड़े हो जाते हैं। उपरोक्त में से कई परिवर्तन अतिशीघ्रता से होते हैं जैसे यौनउत्तेजना के 15 सेकण्ड बाद ही रक्त संचय बढ़ने से योनि में पर्याप्त गीलापन आ जाता है और गर्भाशय थोड़ा बड़ा हो कर अपनी स्थिति बदल लेता है। रक्त के संचय से भगोष्ठ, भगशिश्न, योनिमुख आदि की त्वचा में लालिमा आ जाती है।
दूसरी अवस्था उत्तेजना की पराकाष्ठा (Plateau) है । यह उत्तेजना की ही अगली स्थिति है जिसमें योनि (Vagina), भगशिश्न (Clitoris), भगोष्ठ (Labia) आदि में रक्त का संचय अधिकतम सीमा पर पहुँच जाता है, जैसे जैसे उत्तेजना बढ़ती जाती है योनि की सूजन तथा फैलाव, हृदयगति, पेशियों का तनाव बढ़ता जाता है। स्तन और बड़े हो जाते हैं, स्तनाग्रों (Nipples) का कड़ापन तनिक और बढ़ जाता है और गर्भाशय ज्यादा अंदर धंस जाता है। लेकिन ये परिवर्तन अपेक्षाकृत धीमी गति से होते हैं।
तीसरी अवस्था चरम-आनंद (Orgasm) की है जिसमें योनि, उदर और गुदा की पेशियों का क्रमबद्ध लहर की लय में संकुचन होता है और प्रचंड आनंद की अनुभूति होती है। यह अवस्था अतितीव्र पर क्षणिक होती है। कई बार स्त्री को चरम-आनंद की अनुभूति भगशिश्न के उकसाव से होती है। कई स्त्रियों को बिना भगशिश्न को सहलाये चरम-आनंद की अनुभूति होती ही नहीं है। कुछ स्त्रियों को संभोग में गर्भाशय की ग्रीवा (Cervix) पर आघात होने पर गहरे चरम-आनंद की अनुभूति होती है। दूसरी ओर कुछ स्त्रियों को गर्भाशय की ग्रीवा पर आघात अप्रिय लगता है और संभोग के बाद भी एंठन रहती है। पुरुषों की भांति स्त्रियां चरम-आनंद के बाद भी पूर्णतः शिथिल नहीं पड़ती, और यदि उत्तेजना या संभोग जारी रहे तो स्त्रियां एक के बाद दूसरा फिर तीसरा इस तरह कई बार चरम-आनंद प्राप्त करती हैं। पहले चरम-आनंद के बाद अक्सर भगशिश्न की संवेदना और बढ़ जाती है और दबाव या घर्षण से दर्द भी होता है।
चरम-आनंद के पश्चात अंतिम अवस्था समापन (Resolution) है जिसमें योनि, भगशिश्न, भगोष्ट आदि में एकत्रित रक्त वापस लौट जाता है, स्तन व स्तनाग्र सामान्य अवस्था में आ जाते हैं और हृदयगति, रक्तचाप और श्वसन सामान्य हो जाता है। यानी सब कुछ पूर्व अवस्था में आ जाता है।
सभी स्त्रियों में उत्तेजना चक्र का अनुभव अलग-अलग तरीके से होता है, जैसे कुछ स्त्रियां उत्तेजना की अवस्था से बहुत जल्दी चरम-आनंद प्राप्त कर लेती हैं। दूसरी ओर कई स्त्रियां सामान्य अवस्था में आने के पहले कई बार उत्तेजना की पराकाष्ठा और चरम-आनंद की अवस्था में आगे-पीछे होती रहती हैं और कई बार चरम-आनंद प्राप्त करती हैं।
विभिन्न लैंगिक विकार
सन् 1999 में अमेरिकन फाउन्डेशन ऑफ यूरोलोजीकल डिजीज़ ने स्त्रियों के सेक्स रोगों का नये सिरे से वर्गीकरण किया है, इस प्रकार है।
महिला अधःसक्रियता यौन इच्छा विकार (Hypoactive Sexual Desire Disorder)
इस विकार में स्त्री को अक्सर यौन विचार नहीं आते और संभोग की इच्छा भी कभी नहीं होती या कभी कभार ही होती है। इस रोग में स्त्री दुखी या कुंठित रहती ही है और अपने साथी से संबन्ध भी प्रभावित होते हैं। कुछ स्त्रियों में यह विकार अस्थाई होता है और कुछ समय बाद ठीक हो जाता है। इसकी व्यापकता दर 10% से 41% आंकी गई है।
महिला यौन घ्रणा विकार (Sexual Adversion Disorder)
इस विकार में स्त्री को यौन-संबन्ध तनिक भी रुचिकर नहीं लगता है। महिला संभोग से बचने के लिए हर संभव प्रयत्न करती है। यदि उसका साथी शारीरिक संबन्ध बनाने की कौशिश करता है तो वह तनाव में आ जाती है, डर जाती है, उसका जी घबराने लगता है, दिल धड़कने लगता है, यहाँ तक कि वह बेहोश भी हो जाती है। साथी से सामना न हो इसलिए वह जल्दी सो जाती है, स्वयं को सामाजिक या अन्य कार्यों में व्यस्त रखती है या फिर किसी भी ऊंच-नीच की परवाह किये बिना घर तक छोड़ देती है।
महिला कामोत्तेजना विकार (Sexual Arousal Disorder)
इस स्थिति में स्त्री को वांछित यौन उत्तेजना नहीं होती है या उत्तेजना पर्याप्त अवधि तक नहीं बनी रहती है। फलस्वरूप न योनि, भगशिश्न, भगोष्ठ आदि में पर्याप्त रक्त का संचय होता है और न ही योनि में रसों का पर्याप्त स्राव तथा सूजन होता है या अन्य शारीरिक परिवर्तन होता हैं। इससे स्त्री को ग्लानि होती है, साथी से मधुरता कम होती है। इसका कारण कोई मानसिक रोग या दवा नहीं है। इस रोग में स्त्रियां संभोग का पूरा आनंद तो लेती हैं पर वे दुखी रहती हैं कि उन्हें यौन उत्तेजना नहीं हुई और योनि में संभोग के लिए आवश्यक रसों का स्राव नहीं हो सका। इस विकार की व्यापकता दर भी 6% से 21% है।
महिला चरम-आनंद विकार (Orgasmic Disorder)
यदि स्त्री को संभोग करने पर यौन उत्तेजना के बाद चरम-आनंद की प्राप्ति कभी भी या अक्सर न होती हो या बड़ी कठिनाई और बड़े विलंब से होती हो तो उसे महिला चरम-आनंद विकार कहते हैं। ऐसा किसी मानसिक रोग या दवा के कारण नहीं होता है। चरम-आनंद न मिलने से स्त्री को सदमा होता है। इसकी दर 5% से 42% है। लगभग 5% स्त्रियों को जीवन में कभी चरम-आनंद मिलता ही नहीं है।
लैंगिक दर्द विकार (Sexual Pain Disorders)
कष्टप्रद संभोग (Dysperunia) में संभोग करते समय कभी कभी या निरंतर दर्द होता है।
योनि आकर्ष (Vaginismus) में हमेशा या कभी कभार जैसे ही योनि में शिश्न का प्रवेश होता है योनि के अग्र भाग में अचानक संकुचन होने के कारण शिश्न का प्रवेश कष्टप्रद हो जाता है, जिससे स्त्री को भी काफी शारीरिक और मानसिक वेदना होती है। इसकी दर भी 3% से 46% है।
कष्टप्रद संभोग भौतिक विकारों जैसे योनि-प्रघाण शोथ (Vestibulitis), योनि क्षय (Vaginal Atrophy) या संक्रमण या मनोवैज्ञानिक कारणों से भी हो सकता है। योनि आकर्ष योनि में शिश्न के कष्टदायक प्रवेश की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप या मनोवैज्ञानिक कारणों से हो सकता है।
महिला सेक्स विकार के कारण
रक्त संचार संबन्धी रोग
उच्च रक्तचाप, कॉलेस्ट्रोल ज्यादा होना, डॉयबिटीज, धूम्रपान और हृदयरोग में स्त्रियों को सेक्स संबन्धी विकार होते ही हैं। पेल्विस या जनन्न्द्रियों में चोट लगना, पेल्विस की हड्डी टूट जाना, जननेन्द्रियों में कोई शल्यक्रिया या अधिक सायकिल चलाने से योनि तथा भगशिश्न में रक्त प्रवाह कम हो सकता है जिससे सेक्स विकार हो सकते हैं।
नाड़ी रोग
जो नाड़ी रोग पुरूषों में स्तंभन दोष पैदा करते हैं वे स्त्रियों में भी सेक्स विकार पैदा करते हैं। मेरुरज्जु आघात (Spinal cord Injury) या डायबिटीज समेत नाड़ी रोग स्त्रियों में सेक्स संबंधी दोष पैदा कर सकते हैं। उन स्त्रियों को चरम-आनंद की प्राप्ति बहुत मुश्किल होती है जिन्हें मेरुरज्जु में चोट लगी हो।
हार्मोन
हाइपोथेलेमिक पिट्युइटरी एक्सिस दोष, औषधि या शल्यक्रिया द्वारा वंध्यकरण (Castration), रजोनिवृत्ति, प्रिमेच्योर ओवेरियन फेल्यर और गर्भ-निरोधक गोलियां स्त्री सेक्स विकार के हार्मोन संबन्धी कारण हैं, जिनमें मुख्य लक्षण शुष्क योनि (Dry Vagina), यौन-इच्छा विकार और कामोत्तेजना विकार हैं।
औषधियां
कई तरह की औषधियां विशेषतौर पर मनोरोग में दी जाने वाली सीरोटोनिन रिअपटेक इन्हिबिटर्स (SSRI) स्त्रियों में सेक्स संबन्धी विकार का महत्वपूर्ण कारण है।
रजोनिवृत्ति (Menopause)
रजोनिवृत्ति में स्त्री के अंडाशय ईस्ट्रोजन हार्मोन बनाना बंद कर देते हैं जिसके फलस्वरूप शरीर में कई परिवर्तन होते हैं, जो उसके लैंगिक संसर्ग को भी प्रभावित करते हैं। एक मुख्य परिवर्तन योनि का शुष्क होना है। योनि में चिकने स्राव न होने से संभोग कष्टप्रद हो जाता है। ईस्ट्रोजन कम होने से योनि की पेशियां सिकुड़ जाती हैं और जख्म लगने की संभावना ज्यादा रहती है। इसके उपचार हेतु ईस्ट्रोजन की गोलियां या क्रीम दी जाती हैं।
सामान्यतः रजोनिवृत्ति में स्त्रियों की काम-इच्छा प्रभावित नहीं होती है और वे जीवन के आखिरी पड़ाव में भी लंबे समय तक लैंगिक संसर्ग का आनंद लेती रहती हैं, बशर्ते स्वास्थ्य अच्छा बना रहे और अपने जीवनसाथी से संबन्धों में मधुरता बनी रहे।
फिर भी उम्र ढलने के साथ साथ स्त्री के लैंगिक व्यवहार में फर्क तो आता है, जैसे उसे उत्तेजित होने में ज्यादा समय लगता है और चरम-आनंद की प्राप्ति भी थोड़ी कठिनाई तथा विलंब से होती है। कई स्त्रियों को चरम-आनंद की स्थिति में योनि की पेशियों के संकुचन भी अपेक्षाकृत कम होते हैं। दूसरी ओर इस उम्र तक आते आते उनके साथी भी स्तंभनदोष के शिकार हो ही जाते हैं और कई बार ऐसे दम्पत्ति लैंगिक संसर्ग के स्थान पर हाथों या मुख से एक दूसरे की जननेन्द्रियों को उत्तेजित करके या अपने यौनांगों को साथी के यौनांगों से रगड़ कर ही अपनी पिपासा शांत कर लेते हैं। इस तरह इस उम्र में भी कई दम्पत्ति नियमित यौन क्रिड़ाएं करते हैं और संतुष्ट होते हैं।
महिला सेक्स विकार के मनोवैज्ञानिक पहलू
स्त्री लैंगिक विकार के कारणों में भौतिक पहलुओं के साथ साथ मनोवैज्ञानिक पहलू भी बहुत महत्व रखते हैं।
व्यक्तिगत
धार्मिक वर्जना, सामाजिक प्रतिबंध, अहंकार, हीन भावना।
पुराने कटु अनुभव
पूर्व लैंगिक, शाब्दिक या शारीरिक प्रताड़ना, बलात्कार, सेक्स संबन्धी अज्ञानता।
साथी से मतभेद
संबन्धों में कटुता, विवाहेतर लैंगिक संबन्ध, वर्तमान लैंगिक, शाब्दिक या शारीरिक प्रताड़ना, कामेचछा मतभेद , वैचारिक मतभेद, संवादहीनता।
दुनियादारी
आर्थिक, काम-काज या पारिवारिक समस्याएं, परिवार में किसी की बीमारी या मृत्यु, अवसाद (Depression)।
निदान
स्त्रियों के सेक्स विकारों के कारण और उपचार के मामले में चिकित्सक दो खेमों में बंट गये हैं। हमें दोनों पर ध्यान देना है और दोनों के हिसाब से ही उपचार करना है।
पहला खेमा वाहिकीय परिकल्पना को महत्व देता है और मानता है कि किसी बीमारी (जैसे डायबिटीज और एथरोस्क्किरोसिस), प्रौढ़ता या तनाव की वजह से जननेन्द्रियों में रक्तप्रवाह कम होने से योनि में सूखापन आता है तथा भगशिश्न की संवेदना कम होती है जिससे यौन उत्तेजना प्रभावित होती है। ये लोग ऐसी औषधियों और मरहम प्रयोग करने की सलाह देते हैं जो जननेन्द्रियों में रक्तप्रवाह बढ़ाती हैं।
दूसरा खेमा हार्मोन की थ्योरी पर ज्यादा विश्वास रखता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ स्त्रियों के शरीर में स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन और पुरूष हार्मोन टेस्टोस्टीरोन का स्राव कम होने लगता है। ईस्ट्रोजन के कारण ही स्त्रियों में यौन-इच्छा पैदा होती है। टेस्टोस्टिरोन पुरुष हार्मोन है लेकिन यह स्त्रियों में भी कई महत्वपूर्ण कार्य करता है। स्त्रियों में इसका स्राव पुरूषों के मुकाबले 5% ही होता है। यह यौवन के आगमन के लिए उत्तरदायी है जिसमें किशोर लड़कियों के जननेन्द्रियों और बगल में बाल आने शुरू हो जाते हैं। स्तन और जननेन्द्रियाँ संवेदनशील हो जाती हैं और इनमें काम-उत्तेजना होने लगती है।
पुरुष हार्मोन्स को एन्ड्रोजन के नाम से भी जाना जाता है। ये स्त्रियों में कामोत्तेजना के लिए प्रमुख हार्मोन हैं। साथ ही यह स्त्रियों में हड्डियों के विकास और घनत्व बनाये रखने के लिए भी अत्यंत आवश्यक हैं।
स्त्रियों के शरीर में सबसे ज्यादा टेस्टोस्टिरोन का स्राव प्रजनन काल में होता है। इस हार्मोन की अधिकतर मात्रा एक विशिष्ट बंधनकारी ग्लोब्युलिन से जुड़ी रहती है। इसका मतलब उपरोक्त महत्वपूर्ण कार्यों के लिए इसकी एक सिमित मात्रा ही रक्त में विद्यमान रहती है। रक्त के परीक्षण द्वारा हम रक्त में मुक्त और बंधित टेस्टोस्टिरोन का स्तर जान सकते हैं और सही निदान कर सकते हैं।
रजोनिवृत्ति में स्त्रियों के अंडाशय ईस्ट्रोजन और टेस्टोस्टिरोन दोनों का ही स्राव कम कर देते हैं। टेस्टोस्टिरोन की कमी के मुख्य लक्षण यौन इच्छा कम होना, लैंगिक कल्पनाएं, स्वप्न और विचार कम आना, स्तनाग्र, योनि और भगशिश्न की स्पर्श संवेदना कम होना है। स्वाभाविक है कि काम-उत्तेजना और चरम-आनंद की अनुभूति भी प्रभावित होगी।
साथ ही शरीर की मांस-पेशियां भी पतली होने लगती हैं, जननेन्द्रियों के बाल कम होने लगते हैं और प्रजनन अंग सिकुड़ने शुरू हो जाते हैं। योनि और आसपास के ऊतक घटने लगते हैं। संभोग में दर्द होने लगता है और सिर के बाल भी पुरुषों की भांति कम होने लगते हैं।
एक तीसरा सिद्धांत और सामने आया है जिसे अतृप्ति या असंतोष परिकल्पना कहते हैं, इसे भी ठीक से समझना जरूरी है। कई स्त्रियों में लैंगिक समस्याओं का कारण हार्मोन्स की कमी या जननेन्द्रियों में रक्त का कम प्रवाह न होना होकर संभोग के समय भगशिश्न और योनि का पर्याप्त घर्षण नहीं होना है। युवा स्त्रियों में यह बहुत महत्वपूर्ण है। कई बार स्त्री और पुरूष सेक्स के मामले में खुलकर वार्तालाप नहीं करते हैं। जिससे वे एक दूसरे की इच्छाओं, पसंद नापसंद, वरीयताओं से अनभिज्ञ रहते हैं। पुरूष को मालूम नहीं हो पाता कि वह स्त्री को किस तरह कामोत्तेजित करे, स्त्री को कौनसी यौन-क्रिड़ाएं ज्यादा भड़काती हैं, उसके शरीर के कौन से क्षेत्र वासनोत्तेजक (Erogenous) हैं और कौनसी लैंगिक मुद्राएं उसे जल्दी चरम-आनंद देती हैं। इस तरह स्त्री को मिलती है सेक्स में असंतुष्टि, आत्मग्लानि, अवसाद और लैंगिक संसर्ग से विरक्ति। यदि समय रहते समस्या का निदान और उपचार न हो पाये तो पहले आपस में तकरार, फिर संबंधों में दरार, आगे चल कर विवाहेतर सम्बंध और तलाक होने में भी देर नहीं लगती।
कुछ ही वर्षों पहले तक माना जाता था कि अधिकतर (90% से ज्यादा) स्त्री लैंगिक रोग मनोवैज्ञानिक कारणों से होते हैं। लेकिन आज धारणायें बदल गयी हैं। अंततः चिकित्सक और शोधकर्ता इसके निदान और उपचार के नये-नये आयाम ढ़ूंढ रहे हैं। आजकल देखा जा रहा है कि स्त्री लैंगिक रोग के ज्यादातर मामले किसी न किसी शारीरिक रोग के कारण हो रहे हैं, न कि मनोवैज्ञानिक कारणों से। इसलिए उपचार भी संभव हो सका है।
चिकित्सक को चाहिये कि वह एकांत और शांत परामर्श कक्ष में स्त्री को अपने पूरे विश्वास में लेकर सहज भाव से विस्तार में पूछताछ करे। रोगी से उसकी माहवारी, लैंगिक संसर्ग, व्यक्तिगत या पारिवारिक सूचनाएं, वर्तमान या अतीत में हुई कोई लैंगिक या अन्य प्रताड़ना आदि के बारे में बारीकी से पूछा जाना चाहिये। रोगी के साथी से भी अच्छी तरह पूछताछ की जानी चाहिये। एक ही प्रश्न कई तरीके से पूछना चाहिये ताकि रोगी की समस्या को समझने में कोई गलती न हो। बातचीत के दौरान उसे बीच-बीच में रोगी की आँखों में आँखे डाल कर बात करनी चाहिये और शारीरिक मुद्राओं पर भी पूरा ध्यान रखना चाहिये। स्त्री को भी बिना कुछ छुपाये अपनी समस्या स्पष्ट तरीके से चिकित्सक को बता देनी चाहिये। चिकित्सक को उन सारी औषधियों के बारे में भी बता देना चाहिये जिनका वह सेवन कर रही है। हो सकता है उसकी सारी तकलीफ कोई दवा कर रही हो और मात्र एक दवा बदलने से ही उसकी सारी तकलीफ मिट जाये।
उपचार
कई बार स्त्रियों की सेक्स समस्याओं के उपचार की आवश्यकता ही नहीं होती है। बस आप अपनी समस्या खुल कर साथी को बताते रहें, आपके साथी से तालमेल अच्छा हो तो छोटी मोटी समस्याएं आप मिल कर ही हल कर लेंगे। जरूरत सिर्फ अपनी नीरस और बोरिंग हो चले सेक्स रूटीन में जोश और रोमांस का तड़का लगाने और छोटी छोटी बुनियादी बातों को व्यवहार में लाने की है।
बुनियादी उपचार सूत्र
शिक्षा
जननेन्द्रियों की संरचना और कार्यप्रणाली, माहवारी, गर्भावस्था, रजोनिवृत्ति, प्रौढ़ता आदि के बारे में स्त्रियों को किताबों, प्रदर्शनियों और टीवी के जरिये पूरी जानकारी दी जानी चाहिये। जब भी रोगी को कोई नई बीमारी का निदान हो या नई दवा दी जाये या कोई शल्यक्रिया हो तो उसे संबन्धित लैंगिक मुद्दों के बारे चर्चा की जानी चाहिये।
तौरतरीकों में बदलाव
लैंगिक संसर्ग के समय बातचीत करें, एकदूसरे की पसंद नापसंद, वरीयताएं जानें और एकदूसरे की उत्तेजना भड़काने वाली यौन-क्रियाएं मालूम करें। लैंगिक संसर्ग की मुद्राएं, समय और स्थान बदल कर जीवन में नयापन लायें। कभी कभी रोमांस के लिए एक दिन निश्चित करें, शहर से बाहर निकलें, सैर-सपाटा मौज मस्ती करें और किसी रोमांटिक रिसोर्ट में रात की पारी खेलें।
इन्हें भी आजमायें
कभी-कभी सप्ताहांत में दोनों साथी रूमानी हो जाये, अगरबत्ती जला कर फिजा को महकाये, शमां जला कर दिव्य माहौल बनाये, सपनों की दुनिया सजायें, बारी-बारी से एक दूसरे का प्यार से किसी अच्छे हर्बल तेल द्वारा मसाज करें, गुफ्तगू करें। एक दूसरे को बतायें कि उन्हें कहाँ और कैसा स्पर्श अच्छा लगता है। ऐसा मसाज से दम्पत्तियों के ऊर्जा चक्र खुल जाते हैं और वे एक दूजे में खो जाते हैं।
कीगल व्यायाम
लाभ
लाभ
• मूलाधार की पेशियां मजबूत होती हैं।
• चरम-आनंद की तीवृता बढ़ती है।
• चरम-आनंद के समय मूत्र निकल जाने की समस्या ठीक होती है।
• संभोग के समय ध्यान का विकर्षण (Distraction) होता है।
• संभोग के आनंद की अनुभूति बढ़ती है।
विधि
विधि सरल है स्त्री योनि में अपनी अंगुली डाल कर मूलाधार (Perineum) की मांसपेशियों को उसी तरह धीरे धीरे दस तक गिनते हुए सिकोड़ें मानो मूत्र-त्याग की क्रिया को रोकना हो, फिर तीन गिनने तक मांसपेशियों को सिकोड़ें रहें और उसी तरह धीरे धीरे दस तक गिनते हुए मांसपेशियों को ढीला छोड़ें। इसे दस से पंद्रह बार रोज करें। बाद में इसे किसी भी समय, कहीं भी, किसी भी मुद्रा में किया जा सकता है।
यौन-इच्छा विकार
यौन-उच्छा विकार का उपचार आसान नहीं है। रजोनिवृत्ति-पूर्व यौन-इच्छा विकार कई बार आधुनिक जीवनशैली के घटकों जैसे बच्चों की पढ़ाई या जिम्मेदारियों का बोझ, ऑफिस के कामों का मनोवैज्ञानिक दबाव, दवाइयां या अन्य सेक्स विकार आदि के कारण भी होता है। कई बार लैंगिक संसर्ग में आई उकताहट से भी यौन-इच्छा कम हो जाती है। रजोनिवृत्ति के दौरान यौन-इच्छा विकार के उपचार हेतु ईस्ट्रोजन का प्रयोग किया जाता है।
कामोत्तेजना विकार
कामोत्तेजना विकार के उपचार में अच्छे स्नेहन द्रव्य प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। ज्यादा उम्र की स्त्रियों में कई बार अपर्याप्त घर्षण के कारण उत्तेजना नहीं होती है। तब चिकित्सक उन्हें मैथुनपूर्व गर्म शावर लेने, मैथुनपूर्व कामक्रिड़ाएं बढ़ाने आदि की सलाह देते हैं।
चरम-आनंद विकार (Anorgasmia)
ऐनोर्गेज्मिया का उपचार संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा और सेन्सेट फोकस द्वारा किया जाता है। इसके औषधीय उपचार में सिलडेनाफिल और बूप्रोपियोन का प्रयोग किया जाता है। लेकिन इनके नतीजे बहुत अच्छे नहीं हैं और ये एफ.डी.ए. द्वारा प्रमाणित भी नहीं है।
कष्टप्रद संभोग
के कई भौतिक कारण हो सकते हैं और उनका समाधान उपचार का पहला कदम होना चाहिये। यदि कारण मालूम न हो सके या अस्पष्ट हो तो उपचार बहु-आयामी और बहु-विषयक होना चाहिये। आवश्यकतानुसार मनोचिकित्सा भी देनी चाहिये जिसमें पुरुष को भी साथ रखना चाहिये और शारीरिक, भावनात्मक और आपसी तालमेल संबन्धी सभी मुद्दों के समाधान हो जाने चाहिये।
लैंगिक दर्द विकार के कुछ कारणों जैसे वलवर वेस्टिब्युलाइटिस और वेजीनिसमस के उपचार में फिजियोथैरेपी (आपसी प्रतिक्रिया, श्रोणि की पेशियों का विद्युत उत्तेजन, श्रोणि का सोनोग्राम, वेजाइनल डाइलेटर्स) काफी लाभदायक है।
योनि आकर्ष के उपचार में मनोचिकित्सक धीरे धीरे रोगी को विश्वास में लेता है। योनि का परीक्षण यह कह कर करता है कि दर्द होने पर परीक्षण रोक देगा और आहिस्ता आहिस्ता योनि को फैला देता है। इस तरह रोगी का डर निकाल देता है।
वेजीनिसमस के औषधीय उपचार हेतु वेजाइनल एट्रोफी में ईस्ट्रोजन, वल्वोवेजाइनल केन्डायसिस में फंगसरोधी और वलवर वेस्टिब्युलाइटिस में एन्टीडिप्रेसेन्ट आदि प्रयोग करते हैं।
औषधियां
यदि आपकी समस्या किसी भौतिक कारण से है तो चिकित्सक आपके उपचार की योजना बतला देगा। योजना में दवाइयां, जीवनशैली में छोटा-मोटा बदलाव या शल्यक्रिया का सुझाव भी हो सकता है। हो सकता है वह आपको मनोचिकित्सक से भी संपर्क करने को कहे। कुछ प्रभावशाली उपचार इस तरह हैं।
योनि स्नेहन द्रव्य
शुष्क योनि के उपचार हेतु बाजार में विभिन्न स्नेहन क्रीम, जेल या सपोजीटरी मिलते है। ये बिना चिकित्सक प्रपत्र के भी खरीदे जा सकते हैं। पानी में घुलनशील क्रीम या जेल अच्छे रहते है। लेटेक्स रबर के बने कंडोम तेल में घुलनशील स्लेहन द्रव्य जैसे पेट्रोलियम जैली, मिनरल तेल या बेबी ऑयल से क्रिया कर फट सकते हैं।
ईस्ट्रोजन क्रीम
रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली शुष्क योनि तथा योनि क्षय में ईस्ट्रोजन क्रीम का प्रयोग काफी लाभप्रद रहता है।
सिलडेनाफिल
सिलडेनाफिल पुरुषों के स्तंभनदोष में काफी प्रयोग की जाती है। स्त्रियों में काम-उत्तेजना पैदा करने के लिए एलोपैथी के पास अभी कोई दवा नहीं है। इसलिए सिलडेनाफिल को स्त्रियों में भी जुगाड़ के रूप में प्रयोग किया गया है, पर नतीजे ज्यादा अच्छे नहीं हैं। कुछ ही स्त्रियों की काम-उत्तेजना में लाभ देखा गया है। एफ.डी.ए. ने भी इसे स्त्रियों में प्रयोग करने के लिए प्रमाणित नहीं किया है। इसके पार्श्वप्रभाव सिरदर्द, जुकाम, चेहरे पर लालिमा, असामान्य दृष्टि, अपच आदि हैं। कभी-कभी उसके प्रयोग से रक्तचाप इतना कम हो सकता है कि घातक दिल का दौरा पड़ सकता है। नाइट्रेट सेवन करने वालों को सिलडेनाफिल लेना जानलेवा साबित हो सकता है। ।
होर्मोन प्रतिस्थापना उपचार (Hormone Replacement Therapy)
रजोनिवृत्ति से होने वाले विकारों के उपचार हेतु होर्मोन्स का प्रयोग किया जाता है। अकेला ईस्ट्रोजन उन स्त्रियों को दिया जाता है जिनका गर्भाशय शल्यक्रिया द्वारा निकाल दिया गया है जबकि गर्भाशय को साथ लिए जी रही स्त्रियों को ईस्ट्रोजन-प्रोजेस्टिन (कृत्रिम प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन) दिया जाता है क्योंकि प्रोजेस्टिन ईस्ट्रोजन की अधिकता के दुष्प्रभाव (गर्भाशय कैंसर) से गर्भाशय की सुरक्षा करते हैं। वर्षों तक यह समझा जाता रहा कि रजोनिवृत्ति में ईस्ट्रोजन-प्रोजेस्टिन उपचार स्त्रियों को हृदयरोग, उच्च-कॉलेस्टेरोल, कैंसर आंत, एल्झाइमर रोग और अस्थिक्षय (Osteoporosis) से बचाता है। परंतु 2002 में हुई खोज के अनुसार रजोनिवृत्ति में ईस्ट्रोजन या इस्ट्रोजन-प्रोजेस्टिन उपचार से स्तन कैंसर, हृदयाघात, स्ट्रोक और अंडाशय कैंसर का जोखिम बहुत बढ़ जाता है। होर्मोन उपचार उन स्त्रियों को बहुत राहत देता है जिनको रजोनिवृत्ति के कारण शुष्क योनि या संभोग में दर्द होता है साथ में हॉट फ्लशेज और अनिद्रा में भी लाभ मिलता है। अनुसंधानकर्ता छोटे अंतराल के लिए दिये गये होर्मोन उपचार को तो सुरक्षित मानते हैं लेकिन लंबे समय तक होर्मोन उपचार देने के पक्ष में नहीं हैं। पांच वर्ष के बाद होर्मोन उपचार बंद कर दिया जाना चाहिये। स्त्रियों में होर्मोन उपचार शुरू करने का निर्णय सोच समझ कर लिया जाना चाहिये और रोगी को इसके फायदे नुकसान अच्छी तरह समझा देने चाहिये।
टेस्टोस्टिरोन
वैज्ञानिकों के पास पर्याप्त सबूत हैं कि स्त्रियों में काम-इच्छा, काम-ज्वाला और लैंगिक संसर्ग के स्वप्न और विचारों को भड़काने में टेस्टोस्टिरोन बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसीलिए इसे स्त्रियों के लिए हार्मोन ऑफ डिजायर कहा जाता है । अब प्रश्न यह है कि इसे कब देना चाहिये। अनुभवी चिकित्सक कहते हैं कि रजोनिवृत्ति में यदि काम-इच्छा का अभाव हो और रक्त में टेस्टोस्टिरोन का स्तर भी कम हो तो इसे अवश्य देना चाहिये।
इसके लिए त्वचा पर चिपकाने वाले टेस्टोस्टीरोन के पेच मिलते हैं। इसकी मात्रा 300 माइक्रोग्राम प्रति दिन है और इसे तीन महीनें तक आजमाना चाहिए। यदि तीन महीनें में फायदा न हो तो बन्द कर दें। इसके पार्श्व प्रभाव जैसे सिर के बाल उड़ना, दाड़ी मूँछ उग आना, मर्दों जैसी आवाज हो जाना आदि जैसे ही दिखे, इसका सेवन बन्द कर देना चाहिए। वैसे मैं आपको टेस्टोस्टीरोन लेने की सलाह नहीं दूंगा, क्योंकि लाभ की संभावना कम और पार्श्व प्रभावों की संभावना ज्यादा रहती है। वैसे भी यह स्त्रियों में एफ.डी.ए. द्वारा प्रमाणित नहीं है।
पीटी-141 नेजल स्प्रे
फीमेल वियाग्रा के नाम से चर्चित पीटी-141 नेजल स्प्रे पेलेटिन टेक्नोलोजीज जोर शोर से बाजार में उतारने की तैयारी कर रही थी और कहा जा रहा था कि जैसे ही स्रियां अपने नाक में इसका स्प्रे लेंगी, 15 मिनट में उनकी कामेच्छा एकदम भड़क उठेगी। लेकिन हृदय पर इसके इतने घातक कुप्रभाव देखे गये कि इसकी शोध पर तुरंत रोक लगानी पड़ी। फिर भी कुछ लोग इसे बेच रहे हैं अतः आप इसे भूल कर भी नहीं खरीदें।
वैकल्पिक चिकित्सा
आपने ऊपर पढ़ा है कि ऐलोपैथी में स्त्री यौन विकारों का उपचार पूर्णतया विकसित नहीं हुआ है और अभी प्रयोगात्मक अवस्था में ही है। लेकिन आयुर्वेद यौन रोगों में 5000 वर्ष पूर्व से शतावरी, शिलाजीत, अश्वगंधा, जटामानसी, सफेदमूसली जैसी महान औषधियाँ प्रयोग कर रहा है। ये पूर्णतः निरापद और सुरक्षित हैं और जादू की तरह कार्य करती हैं।
संभोग से समाधि की ओर ले जाये अलसी
अलसी आधुनिक युग में स्त्रियों की यौन-इच्छा, कामोत्तेजना, चरम-आनंद विकार, बांझपन, गर्भपात, दुग्धअल्पता की महान औषधि है। स्त्रियों की सभी लैंगिक समस्याओं के सारे उपचारों से सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षित है अलसी। “व्हाई वी लव” और “ऐनाटॉमी ऑफ लव” की महान लेखिका, शोधकर्ता और चिंतक हेलन फिशर भी अलसी को प्रेम, काम-पिपासा और लैंगिक संसर्ग के लिए आवश्यक सभी रसायनों जैसे डोपामीन, नाइट्रिक ऑक्साइड, नोरइपिनेफ्रीन, ऑक्सिटोसिन, सीरोटोनिन, टेस्टोस्टिरोन और फेरोमोन्स का प्रमुख घटक मानती है।
• सबसे पहले तो अलसी आप और आपके जीवनसाथी की त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनायेगी। आपके केश काले, घने, मजबूत, चमकदार और रेशमी हो जायेंगे।
• अलसी आपकी देह को ऊर्जावान और मांसल बना देगी। शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी गहेगी, न क्रोध आयेगा और न कभी थकावट होगी। मन शांत, सकारात्मक और दिव्य हो जायेगा।
• अलसी में ओमेगा-3 फैट, आर्जिनीन, लिगनेन, सेलेनियम, जिंक और मेगनीशियम होते हैं जो स्त्री हार्मोन्स, टेस्टोस्टिरोन और फेरोमोन्स ( आकर्षण के हार्मोन) के निर्माण के मूलभूत घटक हैं। टेस्टोस्टिरोन आपकी कामेच्छा को चरम स्तर पर रखता है।
• अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैट और लिगनेन जननेन्द्रियों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाती हैं, जिससे कामोत्तेजना बढ़ती है।
• इसके अलावा ये शिथिल पड़ी क्षतिग्रस्त नाड़ियों का कायाकल्प करती हैं जिससे मस्तिष्क और जननेन्द्रियों के बीच सूचनाओं एवं संवेदनाओं का प्रवाह दुरुस्त हो जाता है। नाड़ियों को स्वस्थ रखने में अलसी में विद्यमान लेसीथिन, विटामिन बी ग्रुप, बीटा केरोटीन, फोलेट, कॉपर आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इस तरह आपने देखा कि अलसी के सेवन से कैसे प्रेम और यौवन की रासलीला सजती है, दिव्य सम्भोग का दौर चलता है, देह के सारे चक्र खुल जाते हैं, पूरे शरीर में दैविक ऊर्जा का प्रवाह होता है और सम्भोग एक यांत्रिक क्रीड़ा न रह कर शिव और उमा की रति-क्रीड़ा का उत्सव बन जाता है, समाधि का रूप बन जाता है।
• सबसे पहले तो अलसी आप और आपके जीवनसाथी की त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनायेगी। आपके केश काले, घने, मजबूत, चमकदार और रेशमी हो जायेंगे।
• अलसी आपकी देह को ऊर्जावान और मांसल बना देगी। शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी गहेगी, न क्रोध आयेगा और न कभी थकावट होगी। मन शांत, सकारात्मक और दिव्य हो जायेगा।
• अलसी में ओमेगा-3 फैट, आर्जिनीन, लिगनेन, सेलेनियम, जिंक और मेगनीशियम होते हैं जो स्त्री हार्मोन्स, टेस्टोस्टिरोन और फेरोमोन्स ( आकर्षण के हार्मोन) के निर्माण के मूलभूत घटक हैं। टेस्टोस्टिरोन आपकी कामेच्छा को चरम स्तर पर रखता है।
• अलसी में विद्यमान ओमेगा-3 फैट और लिगनेन जननेन्द्रियों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाती हैं, जिससे कामोत्तेजना बढ़ती है।
• इसके अलावा ये शिथिल पड़ी क्षतिग्रस्त नाड़ियों का कायाकल्प करती हैं जिससे मस्तिष्क और जननेन्द्रियों के बीच सूचनाओं एवं संवेदनाओं का प्रवाह दुरुस्त हो जाता है। नाड़ियों को स्वस्थ रखने में अलसी में विद्यमान लेसीथिन, विटामिन बी ग्रुप, बीटा केरोटीन, फोलेट, कॉपर आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इस तरह आपने देखा कि अलसी के सेवन से कैसे प्रेम और यौवन की रासलीला सजती है, दिव्य सम्भोग का दौर चलता है, देह के सारे चक्र खुल जाते हैं, पूरे शरीर में दैविक ऊर्जा का प्रवाह होता है और सम्भोग एक यांत्रिक क्रीड़ा न रह कर शिव और उमा की रति-क्रीड़ा का उत्सव बन जाता है, समाधि का रूप बन जाता है।
Dr. O.P.Verma
President, Flax Awareness Society
7-B-43, Mahaveer Nagar III, Kota(Raj.)
Visit us at http://flaxindia.blogspot.com
E-mail – dropvermaji@gmail.com M+919460816360
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Thursday, February 3, 2011
एक स्त्री को अपमानित किया पुलिस वालों ने : बनारस में इंस्पेक्टर ने किया यौन उत्पीड़न :
एक स्त्री को अपमानित किया पुलिस वालों ने : बनारस में इंस्पेक्टर ने किया यौन उत्पीड़न : उत्तर प्रदेश में यही कमाल है कि ये प्रदेश बहुत हर मामले में बहुत बदहाल है. खासकर कानून-व्यवस्था के मामले में तो इस हाल बेहद बेहाल है. और, खासकर यहां महिलाएं सबसे ज्यादा उत्पीड़ित की जा रही हैं. और, मजेदार है कि एक महिला का राज है. पर महिला के राज में उनके मनमाने अफसर सबसे ज्यादा महिलाओं को ही दुख दे रहे हैं.
ढेर सारी गंदी-गंदी घटनाएं होती जा रही हैं लेकिन कुर्सियों पर श्रीमान किंकतर्व्यविमूढ़ जी लोग बिलकुल पत्थर की मूर्ति की तरह पालथी लगाए बैठे हैं. ये श्रीमान किंकतर्व्यविमूढ़ जी लोग कुछ न करने की कसम खा चुके हैं. इसी कारण एक के बाद एक घटनाक्रम होते जा रहे हैं और दोषियों को दंडित किए जाने की जगह पीड़ितों को ही डराया-धमकाया जा रहा है. दिव्या कांड, शीलू कांड जैसे दर्जनों कांडों की निरीह महिलाओं, मृतकताओं व पीड़िताओं के रुहानी अभिशाप को झेल रहे इन मोटी चमड़ी वाले अफसरों के न्याय के नेत्र अब भी नहीं खुल रहे हैं. इसी कारण हर ओर लूट का राज है. दबंगई का आलम है. फर्जीवाड़े का जोर है. अब तक किसी भी आरोपी-दोषी आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है, उल्टे उन्हें अच्छे पदों पर बिठाने का क्रम जारी रखा जा रहा है. सिर्फ दरोगा व थानेदार स्तर के लोगों को कुछ समय तक सस्पेंड कर हर मामले की फाइल को बंद कर दिया जा रहा है.
ताजा मामला बनारस का है. जो युवती न्याय मांगने जिस पुलिस इंस्पेक्टर के पास गई, उसी इंस्पेक्टर ने युवती के साथ रेप कर दिया. पूर्वांचल दीप डॉट काम वेबसाइट पर प्रकाशित खबर के मुताबिक वाराणसी के कैंट थानान्तर्गत सोयेपुर के हाशिमपुर गांव में कथित रूप से बलात्कार की शिकार विवाहिता युवती कल्पना गोड़ (काल्पनिक नाम, 19 वर्ष) ने कैंट इंस्पेक्टर धर्मवीर सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न एवं थाने पर घंटों बैठाये रखने का आरोप लगाया है.
मानव तस्करी एवं बलात् वेश्यावृत्ति के खिलाफ कार्य करने वाली संस्था ’गुड़िया’ के सहयोग से बुधवार को मीडिया तक पहुंची युवती के सनसनीखेज आरोप पर स्थानीय पुलिस प्रशासन गंभीर हुआ और त्वरित कार्रवाई करते हुए पहले तो बलात्कार के आरोपित राजेश को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया और फिर मामले की जांच शुरू की गयी. ज्ञात हो कि इस युवती ने एक युवक राजेश पर बलात्कार का आरोप लगाया था और पुलिस में इसकी शिकायत करने जाने पर उसके साथ तमाम घृणित कार्य हुआ.
पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) लालजी शुक्ल ने बताया कि अपर जिलाधिकारी (नगर) अटल कुमार राय एवं अपर पुलिस अधीक्षक (नगर) विजय भूषण को मामले की जांच की जिम्मेदारी दी गयी है. उन्होंने ’गुड़िया’ संस्था जाकर पीड़िता से पूछताछ की है और मामले की सत्यता के आधार पर कार्रवाई की जाएगी. ’गुड़िया’ संस्था के अध्यक्ष अजीत सिंह ने बताया कि कल्पना का पति विकलांग है और उसकी सास होमगार्ड है. युवती के अनुसार उसके साथ 30 जनवरी को भी बलात्कार की कोशिश की गयी थी, लेकिन सोयेपुर चौकी पर उसकी शिकायत नहीं सुनी गयी. 31 जनवरी की रात आरोपित राजेश अपने मकसद में कामयाब रहा.
मंगलवार दोपहर डीआईजी व आईजी जोन के न मिलने पर कैंट थाने पर वह पहुंची तो जांच के नाम पर उसे लगभग पांच घंटे तक इंस्पेक्टर ने थाने में बैठाया और यौन उत्पीड़न किया. शाम को उसे मेडिकल के लिए ले जाया गया और रात को लौटने के बाद फिर मध्यरात्रि बाद तक थाने में उसे बैठाया गया. बुधवार को इंस्पेक्टर के खिलाफ अपनी लिखित शिकायत आईजी व डीआईजी के कार्यालय में देने के बाद युवती ने शाम को मीडिया को आपबीती सुनायी. यहां सुरक्षात्मक कारणों से युवती द्वारा कही गयी उन बातों को नहीं लिखा जा रहा है जो उसने मीडिया से कहे. उसके आरोप बेहद ही संगीन और मानवता को शर्मसार करने वाले हैं.
भास्कर प्रबंधन जल्द ही महाराष्ट्र में पांव पसारने वाला है.
मुंबई स्टाक एक्सचेंज को आज डीबी कार्प लिमिटेड ने दो लाइन की सूचना दी कि कंपनी अब मराठी भाषा में महाराष्ट्र में विस्तार करते हुए अखबार के प्रकाशन की तैयारी कर रही है. इस एनाउंसमेंट के बाद माना जा रहा है कि भास्कर प्रबंधन जल्द ही महाराष्ट्र में पांव पसारने वाला है. डीबी कार्प की तरफ से हिंदी में दैनिक भास्कर अखबार कई हिंदीभाषी प्रदेशों से प्रकाशित किया जाता है. इसके अलावा गुजराती में दिव्य भास्कर गुजरात के कई शहरों से प्रकाशित किया जा रहा है.
वहीं अंग्रेजी में मुंबई व कई अन्य शहरों में डीएनए नामक अखबार जी ग्रुप की साझीदारी में प्रकाशित किया जा रहा है. मराठी भाषा में अखबार प्रकाशित करने के बाद डीबी कार्प इस मामले में कई अन्य हिंदी अखबारों की कंपनियों से आगे निकल जाएगा कि वह एक साथ चार भाषाओं में अखबार निकाल रहा है. प्रसार के मामले में देश के नंबर वन अखबार दैनिक जागरण को प्रकाशित करने वाली कंपनी जागरण प्रकाशन लिमिटेड अभी हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं में पांव नहीं पसार पाई है.
उर्दू अखबार इंकलाब के टेकओवर के बाद उर्दू हिंदी के अलावा उर्दू का भी प्रवेश इस ग्रुप में हो गया है. अंग्रेजी में छिटपुट किस्म के प्रोडक्ट निकाले जाते हैं, कोई बड़े पैमाने पर प्रसारित अंग्रेजी अखबार जागरण समूह के पास नहीं है. इसके अलावा गुजराती व मराठी में भी यह समूह नहीं है. फिलहाल डीबी कार्प ने अपने तेवर व विस्तार के जरिए दूसरे मीडिया समूहों में हड़कंप मचा रखा है. डीबी कार्प ने कंटेंट पर बहुत जोर दिया है और इसी के कारण कुछ दिनों पहले दैनिक भास्कर के लेआउट, कंटेंट आदि को काफी मजबूत किया गया है.
संडे के दिन खासतौर पर दैनिक भास्कर अलग तरह का कंटेंट अपने पाठकों को देता है जो दूसरे अखबार फिलहाल दे पाने में सफल नहीं है. कह सकते हैं कि कंटेंट के मामले में भास्कर ने दूसरे अखबारों को पीछे कर रखा है. तमाम तरह के विवादों, आरोपों के बावजूद डीबी कार्प के कर्ताधर्ता देश का नंबर वन मीडिया हाउस बनने के अपने मिशन की ओर लगातार व तेजी से अग्रसर हैं. ऐसे में दूसरे मीडिया प्लेयरों में बेचैनी स्वाभाविक है. महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण प्रदेश जहां देश की आर्थिक राजधानी मुंबई है, में मराठी में अखबार निकालकर डीबी कार्प उस तबको पर पकड़ बनाना चाहता है जो आर्थिक रूप से काफी समृद्ध और निर्णायक है. बीएसई में डीबी कार्प की तरफ से दायर की गई सूचना इस प्रकार है....
जनविद्रोह की धमक ने मिस्र को पूरी तरह से अपने आगोश में ले लिया है. मिस्र में जिस तरह से राजधानी काहिरा, सुएज, अलेक्जेंडिन्या समेत अनेक शहरों में लाखों लोग सड़कों पर रैली की शक्ल में उतरे और राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक के तीन दशक के शासन के खात्मे की मांग की, उसने दुनिया भर में अनेक सर्वसत्तावादी तानाशाही तंत्रों को भयभीत कर दिया है.
उम्मीद-आशंकाओं के बीच : ट्यूनीशिया से शुरू हुई जनविद्रोह की धमक ने मिस्र को पूरी तरह से अपने आगोश में ले लिया है. मिस्र में जिस तरह से राजधानी काहिरा, सुएज, अलेक्जेंडिन्या समेत अनेक शहरों में लाखों लोग सड़कों पर रैली की शक्ल में उतरे और राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक के तीन दशक के शासन के खात्मे की मांग की, उसने दुनिया भर में अनेक सर्वसत्तावादी तानाशाही तंत्रों को भयभीत कर दिया है.
खबर है कि जार्डन के राजा अब्दुल्लाह ने भी अपने प्रधानमंत्री रिफाई को हटा दिया है. उनकी जगह पूर्व जनरल और सैन्य सलाहकार मारुफाल बखीत को नया प्रधानमंत्री बनाया है और शासन में अनेक सुधारों की बात कही है. फलस्तीन में भी नए चुनाव कराने की बात शासन स्तर पर उठ रही है. वहां पांच साल पहले चुनाव हुए थे. सीरिया में भी फेसबुक और ट्विटर पर राष्ट्रपति असद की मुखालफत शुरू हो गई है और राजधानी दमिश्क में विरोध मार्च की चर्चा सुर्खियों में है. ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति के सऊदी अरब भागने के बाद से ही पड़ोसी राष्ट्र अल्जीरिया, यमन में भी गरीबी, तानाशाही, भ्रष्टाचार, कुव्यवस्था के विरोध के साथ ही लोकतांत्रिक आजादी की मांग जोर पकड़ रही है. लेबनान और अन्य देश भी इस जम्हूरी हवा के असर से अछूते नहीं हैं. लेकिन ये तो रही पड़ोसी देशों की बात, दिलचस्प तो ये है कि चीन, रूस और ईरान जैसे तानाशाही तंत्र भी अब सकते में हैं. चीन में वेब पर नियंत्रण और बढ़ा दिया गया है. ईरान में 2009 में राष्ट्रपति अहमदीनेजाद के फिर राष्ट्रपति बनने पर हुए जन विरोध को फिर से हवा मिल गई है. आगामी 12 फरवरी को वहां भी छात्रों की रैली का आयोजन है. इसी तरह रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को हटाए जाने की आवाज रूस में भी उठनी शुरू हो गई है.
फिलहाल दुनिया मिस्र के घटनाक्रम को खासे कौतुहल के साथ देख रही है. लाखों की तादाद में जनता सेना के टैंकों के साथ सड़कों पर है. सेना ने गोली चलाने से इनकार कर दिया है. लेकिन स्थिति पर उसकी निगाह है. खबर है कि मुबारक-समर्थक और विरोधियों में बुधवार को संघर्ष हुआ है. कुछ दिनों पूर्व तक जनता पर गोली और आंसू गैस का प्रयोग कर रही पुलिस फिलहाल सड़क पर नहीं है. शायद वो जेल तोड़ कर भागे अपराधियों और लूटपाट की बढ़ती घटनाओं के बीच अपनी अपरिहायर्ता साबित करने की कोशिश में है. सारी व्यवस्था ठप है. बैंक, स्कूल, कालेज, दफ्तर सभी कुछ. जनता अब 82 वर्षीय मुबारक के सत्ता से हटने से कम पर वापस घर लौटने को तैयार नहीं है और मुबारक हैं कि वो आगामी सितंबर तक अपना कार्यकाल पूरा करना चाहते हैं. उन्होंने सारा दोष गृह मंत्री पर डालते हुए उसे पद से हटा दिया है और खुफिया प्रमुख उमर सुलेमान को उपराष्ट्रपति नियुक्त कर विपक्ष से बात कर संवैधानिक सुधारों की बाबत कदम उठाने को अधिकृत किया है, लेकिन जनता अब कुछ भी सुनने को तैयार हो, ऐसा नहीं लगता. कुल मिलाकर स्थिति यही है कि मुबारक अपने बेटे जमाल को अपना उत्तराधिकारी घोषित करना चाहते हैं, विपक्ष को अभी भी काबू में रखना चाहते हैं, फेसबुक, ट्विटर को नियंत्रित करके विरोध को दबाना चाहते हैं तो दूसरी ओर भरसक लोकतांत्रिक होते हुए भी दिखना चाहते हैं. मुबारक के इस द्वंद्व के बीच जनता ने उन्हें सत्ता से हटने के लिए अगले शुक्रवार तक का समय दिया है.
उधर, अमेरिका और इस्राइल इस सारे घटनाक्रम से सबसे ज्यादा परेशान हैं. उनकी नींद उड़ी हुई है. उनकी परेशानी का कारण यह है कि अब तक पश्चिमी नेताओं और अरब जगत के नेताओं के बीच के गठबंधन के केंद्रीय स्तंभ हुस्नी मुबारक ही रहे हैं. मुबारक के बिना यह गठबंधन कायम नहीं रह पाएगा. मुबारक ही एकमात्र प्रमुख अरब नेता हैं, जिन पर इस्राइल का पूरा भरोसा रहा है. मुबारक के बिना मध्यपूर्व शांति वार्ता भी खतरे में पड़ जाएगी. 1928 में बने मुस्लिम ब्रदरहुड पर लगाम लगाने का काम भी मुबारक ने किया था. खबरों में ब्रदरहुड के रिश्ते अतिवादी संगठनों हिज्बुल्ला और हमास से भी उजागर हुए थे. जाहिर है ऐसे में अनवर सादात के बाद पिछले तीन वर्षों से पूरे मध्यपूर्व में पश्चिम के खासमखास मुबारक के हटने को पश्चिमी खेमा कैसे स्वीकार कर ले, इस्राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भी अपनी आशंका जताते हुए कहा है, 'हमें डर है कि मिस्र की बागडोर किसी इस्लामी गुट के हाथ में न चली जाए. ईरान और कई अन्य जगहों पर ऐसा हो चुका है..'
इस डर का कारण यह भी है कि मिस्र में सत्तारूढ नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के बाद एकमात्र प्रमुख संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड ही है. वैसे तो यह संगठन प्रतिबंधित है लेकिन यह जनता के बीच अनेक कल्याणकारी कार्यक्रम चलाता रहा है, इसलिए इसका असर भी है. वैसे अभी जनता के स्तर पर जो विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, उनमें मुस्लिम ब्रदरहुड की प्रमुखता हो, ऐसा नहीं है, लेकिन पश्चिम और इस्राइल का डर यही है कि ब्रदरहुड किसी भी चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. खासकर मौजूदा अव्यवस्था के बाद ये इसलिए संभव है क्योंकि सांगठनिक स्तर पर वे बेहतर हैं. कहने को ब्रदरहुड जिहादियों से अलग हैं, लेकिन अनेक देशों में ये उग्रवादी संगठनों से भी संबद्ध हैं. चूंकि ये पश्चिमी नीतियों के भी कटु आलोचक हैं और पिछले चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में इनके सांसदों की संख्या भी मिस्र में प्रभावी रूप से बढ़ चुकी है इसलिए भी इन्हें लेकर संशय है.
बहरहाल मिस्र में जनविद्रोह की मौजूदा स्थिति में अमेरिका ने शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक बदलाव की बात कही है और भारत ने भी जनांदोलन के प्रति सतर्क सकारात्मक टिप्पणी की है. इसी तरह दुनिया भर की निगाहें लगी हुई हैं, लेकिन निर्णायक रुख तो वहां जनता के साथ सेना को व्यक्त करना है. तो क्या सेना ट्यूनीशिया की तर्ज पर राष्ट्रपति को पद से हटने को कहेगी या फिर 1989 के चीन के थ्यान आनमन चौक पर टैंकों के दमन की पुनरावृत्ति काहिरा के तहरीर चौक पर भी होगी? फिलहाल संकेत तो यही है कि अमेरिका जिस तरह से बदलावकारी प्रवृत्तियों का समर्थन कर रहा है और मंगलवार को राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मुबारक से फोन पर आधे घंटे बात की है - वो 'नए' का ही संकेत देता है. संभवतः इस संकेत को सेना ने पहले ही समझते हुए जनता पर गोली चलाने से इनकार भी कर दिया था. इसके अलावा, एक बड़ा पक्ष ये भी है कि मिस्री सेना को हर साल अमेरिका से लगभग डेढ़ बिलियन डालर की जो मदद मिलती है, उसे सेना खोना नहीं चाहती है. लेकिन इन सबके बीच विचित्र द्वंद्व यह भी है कि जन आकांक्षा मुबारक विरोध के साथ ही उन्हें सत्ता में बनाए रखने वाले अमेरिका के खिलाफ भी है.
अमेरिका की परेशानी भी यही है कि एक ओर वह लोकतांत्रिक जन आकांक्षा की अभिव्यक्ति का समर्थन कर रहा है, दूसरी ओर उसे लोकतांत्रिक चुनाव में मुस्लिम ब्रदरहुड और जिहादियों की सफलता का डर सता रहा है. ले-देकर संयुक्त विपक्ष द्वारा संभावित प्रत्याशी मोहम्मद मुस्तफा अल बारादेई पर नजर टिकती है - लेकिन बारादेई एक स्वतंत्र, उदारवादी, आधुनिक शख्सियत हैं. वो अमेरिका के चहेते भी नहीं हैं. आखिर बारादेई ने ही इराक में अमेरिकी हमले का विरोध किया था और उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख के रूप में ईरान के परमाणु ठिकानों के खिलाफ कार्रवाई पर भी अमेरिकी मत का समर्थन नहीं किया था - ऐसे में अमेरिका उन पर कितना भरोसा करेगा ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन इन संशयों-दुविधाओं के बीच अमेरिका की मजबूरी यही है कि फिलहाल बारादेई ही सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्ति हैं. जिनकी छवि न केवल मिस्री जनता के बीच सम्मानित है, बल्कि संयुक्त विपक्ष के बीच वही सबसे उपयुक्त और समझदार व्यक्ति माने जाते हैं. पिछले महीनों में मुस्लिम ब्रदरहुड समेत विपक्षी संगठनों की संयुक्त बैठक में उन्हें विपक्ष का प्रतिनिधि भी चुना गया है. उसके बाद से अरब लीग और अमेरिकी प्रतिनिधियों ने भी उनसे मुलाकात की है. बहरहाल, इन स्थितियों के बीच बहस की दो धाराएं प्रमुखता से सामने आ रही हैं. पहली आशावादी धारा है कि मिस्र में स्वतंत्र चुनाव हों, जो कि दशकों से नहीं हुए हैं, तो युवा आकांक्षा पर आधारित लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी. दूसरी यह कि यदि मौजूदा हालात में हिंसा-अराजकता बढ़ी तो उसका फायदा वे जिहादी गुट उठा लेंगे, जिन्हें हुस्नी मुबारक ने लंबे समय से कठोर नियंत्रण में रखा है.
लेखक गिरीश मिश्र वरिष्ठ पत्रकार हैं. इन दिनों वे लोकमत समाचार, नागपुर के संपादक हैं. उनका ये लिखा आज लोकमत में प्रकाशित हो चुका है, वहीं से साभार लेकर इसे यहां प्रकाशित किया गया है. गिरीश से संपर्क girishmisra@lokmat.com This e-mail address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it के जरिए किया जा सकता
महुआ चैनल. तीन महीने में यहां तीन संपादक बदल चुके
ज्वाइन करने से पहले दस बार सोचें : मैनेजमेंट घटिया गेम खेल रहा : नए संपादक ने परेशान करने का खेल शुरू किया : प्रोड्यूसर श्रीनिवास ने सौंपा इस्तीफा : कुछ अन्य लोग भी जल्द दे सकते हैं इस्तीफा : कुछ ऐसे न्यूज चैनल हैं, जिनमें काम करने से पहले दस बार सोचना चाहिए. उन्हीं में से एक हो गया है महुआ चैनल. तीन महीने में यहां तीन संपादक बदल चुके हैं.
न्यूज रूम के वरिष्ठों के साथ मैनेजमेंट के लोग ट्रेनियों वाली पालिटिक्स खेल रहे हैं. किसी को टीआरपी के नाम पर तो किसी का दिमाग ठिकाने करने के नाम पर तो किसी को कुछ वजहों से हटाया, परेशान किया जा रहा है या फिर साइड लाइन किया जा रहा है. तीन महीने में तीन संपादक चेंज करने का रिकार्ड महुआ ने बना दिया है. पहले अंशुमान त्रिपाठी गए, उनकी जगह ओमप्रकाश आए तो उन्हें डिमोट कर दिया गया. ओमप्रकाश के उपर संतोष पांडेय को ईटीवी से लाया गया और 44 दिन इस पद पर रहने के बाद अब संतोष पांडेय को यह कहकर कि चैनल की टीआरपी ठीक नहीं है, साइड लाइन कर दिया गया है. संतोष से कहा गया है कि वे महुआ के यूपी चैनल में जाएं और वहां प्रोग्रामिंग देखें.
अंशुमान को फिर से संपादक की कुर्सी दे दी गई है और कुर्सी पाते ही अंशुमान ने खेल शुरू कर दिया है. उन्होंने कई प्रोड्यूसरों और अन्य को तरह-तरह से परेशान करना शुरू कर दिया है. जिनको उन्हें निपटाना है उनके लिए आदेश जारी कर दिया है कि सुबह 9 बजे आओ और रात में दो बजे जाओ. वे इंटर्न के सामने वरिष्ठों को डांटने-डपटने और काम न आने जैसी टिप्पणियां करने का दौर शुरू कर चुके हैं. जाहिर है, वे कोशिश में हैं कि उनके पतन के दिनों में जो-जो नए लोग आए हैं, उन्हें निपटाया जाए और अपने प्रिय पात्रों की भर्ती कर ली जाए.
ताजी सूचना है कि महुआ न्यूज चैनल के प्रोड्यूसर श्रीनिवास ने अंशुमान के उत्पीड़न से तंग आकर अपना इस्तीफा प्रबंधन को मेल कर दिया है. हालांकि उन्होंने अपने इस्तीफे में किसी पर कोई आरोप नहीं लगाया है लेकिन उनके करीबियों का कहना है कि श्रीनिवास ने सिर्फ और सिर्फ प्रबंधन की गंदी पालिटिक्स और अंशुमान के उत्पीड़न की वजह से इस्तीफा दिया है. बताया जा रहा है कि अगले कुछ दिनों में कई अन्य लोग महुआ से इस्तीफा दे सकते हैं. सूत्रों का कहना है कि महुआ चैनल की सफलता से इसके मालिक पीके तिवारी और उनके परिजन खुद को संयमित नहीं रख पा रहे हैं. इसी कारण ये लोग अपने यहां काम करने वाले मीडियाकर्मियों को कीड़े-मकोड़े की तरह ट्रीट कर रहे हैं और ऐसा माहौल बनाकर रखा है कि किसी का भी बोरिया बिस्तर किसी भी दिन बंध सकता है
दारूल उलूम देवबंद परिसर में 23 फरवरी तक मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई है
दारूल उलूम देवबंद परिसर में 23 फरवरी तक मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई है. इस दौरान मीडियाकर्मियों का प्रवेश पूरी तरह वर्जित कर दिया गया है. संस्थान का मानना है कि मीडिया के प्रवेश से परीक्षाओं की तैयारी में लगे छात्रों पर असर पड़ता है.
सूत्रों का कहना है कि संस्था के कुलपति मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी की गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी पर दी गई टिप्पणी के बाद इस परिसर में मीडियाकर्मी की हलचल बढ़ गई थी. आए दिन अच्छी खासी संख्या में मीडियाकर्मी परिसर में पहुंचने लगे थे. जिसके बाद संस्थान ने मीडिया पर प्रतिबंध का निर्णय लिया.
न्यूज़ चैनल ''न्यूज़ एक्सप्रेस'' एक राजनीतिक चैनल होगा. ये चैनल राजनीतिक के तमाम रंगों को समेटेगा और आम लोगों में
चैनल हेड मुकेश कुमार बोले- राजनीति को ढंग से पेश किया जाए तो दर्शक उसे देखने के लिए वापस लौट सकते हैं : साई प्रसाद ग्रुप ऑफ कंपनीज़ का न्यूज़ चैनल ''न्यूज़ एक्सप्रेस'' एक राजनीतिक चैनल होगा. ये चैनल राजनीतिक के तमाम रंगों को समेटेगा और आम लोगों में राजनीति के प्रति रुचि पैदा करने और उन्हें राजनीतिक रूप से सक्रिय बनाने के उद्देश्य से कंटेंट को गढ़ेगा.
चैनल हेड मुकेश कुमार ने भड़ास4मीडिया के संपादक यशवंत सिंह से बातचीत के दौरान पहली बार अपनी रणनीति का खुलासा करते हुए उपरोक्त विचार व्यक्त किए. बातचीत न्यूज़ एक्सप्रेस के नोएडा स्थित नवनिर्मित भवन में हुई. ये पूछे जाने पर कि ऐसे समय जब लोगों में राजनीति को लेकर विरक्ति का भाव है राजनीतिक सामग्री पर इतना ज़ोर देना दुस्साहस नहीं कहा जाएगा, उन्होंने माना कि हाँ ये दुस्साहस है मगर ऐसा न करना तो आत्मघाती होगा.
उनका कहना था कि ऐसे समय में जब ढेर सारे न्यूज़ चैनल पहले से हों तो आप भी उसी कंटेंट के साथ आकर कुछ नहीं कर सकते. मुकेश कुमार ने इस क्रम में ये भी जोड़ा कि ये ग़लत धारणा बना दी गई
है कि राजनीति को लोग देखना पसंद नहीं करते. उनके मुताबिक राजनीति अभी भी हिंदी पट्टी में सबसे ज़्यादा देखी जाने वाली चीज़ों में से है. तमाम राजनीतिक हलचलों को लोग दिलचस्पी के साथ देखते हैं और उन पर बहस करते हैं. चुनाव के समय तो राजनीति दूसरे तमाम विषयों को पछाड़कर आगे निकल जाती है. इसलिए अगर राजनीति को ढंग से पेश किया जाए तो दर्शक उसे देखने के लिए वापस लौट सकते हैं.

धीरे-धीरे तमाम चैनल राजनीति पर लौट रहे हैं और उसे ज़्यादा कवरेज भी देने लगे हैं ऐसे में न्यूज़ एक्सप्रेस अतिरिक्त क्या करेगा, इस सवाल के जवाब में उनका कहना है कि टेलीविज़न पर राजनीति को कवर करने का एक फार्मूला सा बन गया है और सब उसी पर काम कर रहे हैं. अगर इसे बदला जाए और राजनीति को सत्ता के ढाँचे से निकालकर घर-समाज तक ले जाकर देखा जाए तो शायद सूरत-ए-हाल बदल सकती है.
हो सकता है कि लोग राजनीति के महापतन और नेताओं के धतकर्मों से निराश हो गए हों और राजनीति से लोगों को दूर करने में बाज़ार की भी साज़िश कम कर रही हो. मगर राजनीति को बदलने के लिए ज़रूरी है कि उसे तमाम गतिविधियों के केंद्र में लाया जाए. अगर बुरी राजनीति से मुक्ति पानी है तो अच्छी राजनीति को बढ़ावा देना होगा और ये तभी होगा जब अच्छी राजनीति की समझ लोगों में पैदा की जाए. मीडिया ये कर सकता है और हम अपनी ओर से एक विनम्र प्रयास इस दिशा में करना चाहते हैं. सफल होंगे या नहीं ये तो वक्त बताएगा मगर हमें यकीन है कि एक अच्छी टीम एक अच्छा राजनीतिक चैनल ज़रूर गढ़ेगी और अगर ऐसा हुआ तो ये देश का ही नहीं दुनिया का पहला राजनीतिक चैनल होगा
भास्कर कार्यालय में ताला लगा
अपने को देश का सबसे बड़ा समाचार पत्र समूह कहने वाले दैनिक भास्कर की स्थिति यह है कि किराया भुगतान नहीं करने से उसके ब्यूरो कार्यालय में ताला लगा दिया गया। यह माजरा है छत्तीसगढ़ के महासमुंद ब्यूरो का। भड़ास ने पहले ही खबर दी थी कि यदि भास्कर प्रबंधन ने महासमुंद भास्कर ब्यूरो के मकान मालिक योगेश कुमार की बात नहीं मानी तो वे एक फरवरी को भास्कर कार्यालय में ताला लगा देंगे। हुआ भी यही।
दिसंबर और जनवरी महीने का किराया भुगतान नहीं करने और लगातार अल्टीमेटम देने के बावजूद 4 महीने से मकान खाली नहीं किए जाने से नाराज योगेश कुमार ने दो फरवरी की सुबह भास्कर के ब्यूरो कार्यालय में ताला जड़ दिया। इससे हड़कंप मच गया और भास्कर के कुछ कर्मचारी मकान मालिक योगेश को बडे़ बैनर का धौंस जमाते हुए देख लेने और निपटा देने तक की धमकी देने लगे। इसका मकान मालिक पर कोई असर नहीं हुआ और वह किराया भुगतान तत्काल करने की मांग पर अड़े रहे।
अंततः महासमुंद में दैनिक भास्कर के 20 साल पुराने कर्ताधर्ता बाबूलाल साहू ने 10 फरवरी तक मकान खाली करा लेने और किराया भुगतान की पूरी जिम्मेदारी खुद ली, तब कहीं जाकर दोपहर में तालाबंदी खत्म हुई। अपने को बड़ा बैनर और ब्रांड कहने वाले अखबार के ब्यूरो कार्यालय का मासिक 3000 रूपए किराया भुगतान नहीं करना समझ से परे है। दैनिक भास्कर समूह के इस अड़ियल रवैया को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही है।
आजतक वालों का ही स्टिंग होने लगा है.
अभी तक आजतक वाले स्टिंग व पोलखोल खबरों के पर्याय माने जाते थे लेकिन बदले दौर में अब आजतक वालों का ही स्टिंग होने लगा है. खबर है कि आजतक के पंजाब, हरियाणा व हिमाचल के ब्यूरो चीफ भूपेंद्र नारायण सिंह उर्फ भुप्पी एक गंभीर मामले में फंस चुके हैं. उन पर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री धूमल ने आरोप लगाया है कि भुप्पी ने उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश की.
साथ ही यह भी कि कुछ खास लोगों के काम न करने पर कई तरह की उलटी-सीधी खबरें दिखाने की धमकी दी. बताया जाता है कि धूमल ने भुप्पी की पूरी बातचीत को रिकार्ड कर लिया और उस टेप को टीवी टुडे ग्रुप के मालिक अरुण पुरी के पास भेज दिया. अरुण पुरी ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्काल दो वरिष्ठों की एक जांच टीम बनाकर चंडीगढ़ रवाना कर दी है. सूत्रों का कहना है कि इस जांच टीम में एक सदस्य शैलेंद्र झा हैं. पता चला है कि भुप्पी की आवाज का सैंपल लिया जा रहा है ताकि आडियो टेप में उनकी आवाज को चेक किया जा सके.
उधर, भुप्पी के करीबी लोगों का कहना है कि धूमल ने खुद ही खबर न दिखाने के लिए प्रलोभन दिया था जिसे न स्वीकारे जाने पर चैनल प्रबंधन से उटपटांग शिकायत कर दी. धूमल की गड़बड़ियों से संबंधित कुछ कागजात भुप्पी के हाथ लगे हैं और इस पर भुप्पी स्टोरी कर रहे हैं, जिसे रुकवा पाने असफलल होते देख धूमल व उनके लोगों ने भुप्पी पर आरोप मढ़ दिया ताकि आजतक प्रबंधन भुप्पी पर कार्रवाई कर दे और खबर भी ड्राप कर दे.
पर दूसरी ओर के लोगों का कहना है कि भूपेंद्र नारायण सिंह बुरी तरह फंस चुके हैं. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि धूमल उनका स्टिंग कर लेंगे. यह भी कहा जा रहा है कि भूपेंद्र नारायण सिंह सिर्फ अकेले दोषी नहीं साबित होंगे, दिल्ली स्थित आजतक मुख्यालय के कुछ वरिष्ठ भी इस मामले में फंस सकते हैं. हालांकि पूरी तैयारी है कि दिल्ली के वरिष्ठों को बचा लिया जाए. इस प्रकरण में धूमल खेमा और भुप्पी खेमा, दोनों अलग-अलग बातें कर रहा है. दोनों की बातें एक दूसरे के खिलाफ हैं. सच्चाई क्या है, यह पता कर पाना फिलहाल मुश्किल है. संभवतः कुछ दिनों बाद इस प्रकरण की सच्चाई पर से पर्दा उठ सके.
टीवी न्यूज़ का स्थायी भाव बनाना पड़ेगा
राजनीति की बारीक समझ को टीवी न्यूज़ का स्थायी भाव बनाना पड़ेगा : मिस्र में जनता सड़कों पर है. अमरीकी हुकूमत की समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करे. दुविधा की स्थिति है. होस्नी मुबारक का जाना तो तय है लेकिन उनकी जगह किसको दी जाए, यह अमरीका की सबसे बड़ी परेशानी है.
मुबारक ने जिस पुलिस वाले को अपना उपराष्ट्रपति तैनात किया है, उसको अगर गद्दी देने में अमरीका सफल हो जाता है तो उसके लिए आसानी होगी लेकिन उसके सत्ता संभालने के बाद अवाम को शांत कर पाना मुश्किल होगा. जिस तरह से भ्रष्ट सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए लोग सड़क पर उतरे हैं, उनके तेवर अलग हैं. लगता नहीं कि वे आसानी से बेवक़ूफ़ बनाए जा सकते हैं. अमरीका की सबसे बड़ी चिंता यह है कि इस्लामी बुनियादपरस्त लोग सत्ता पर काबिज़ न हो जाएँ. अगर ऐसा हुआ तो अमरीकी विदेश नीति का एक मज़बूत किला ज़मींदोज़ हो जाएगा. काहिरा के तहरीर चौक पर जो दस लाख से भी ज्यादा लोग मंगलवार को दिन भर जमे रहे वे सरकार बदलने आये थे, लालीपाप खरीदने नहीं. दिलचस्प बात यह है कि मिस्र की फौज भी अब जनता के जायज़ आन्दोलन को समर्थन दे रही है. उसने साफ़ कह दिया है कि निहत्थे लोगों पर हथियार नहीं चलाये जायेंगे. नतीजा यह हुआ कि मुबारक के हुक्म से तहरीर चौक पर फौजी टैंक तो लगा दिए गए लेकिन उनसे आम तौर पर जो दहशत पैदा होती है वह गायब थी.
लोग टैंकों को भी अपना माना कर घूम रहे थे. फौज और सुरक्षा बलों के इस रुख के कारण जनता में संघर्ष की कोई बात नज़र नहीं आ रही थी. लगता था कि मेला लगा हुआ है और लोग पूरे परिवार के साथ तहरीर चौक पर पिकनिक का आनंद ले रहे हैं. लेकिन बुधवार को हालात बिगड़ गए. मुबारक ने ऊंटों और घोड़ों पर सवार अपने गुंडों को तहरीर चौक पर मार पीट करने के लिए भेज दिया .आरोप तो यह भी है कि वे पुलिस वाले थे और सादे कपड़ों में आये थे. उनको हिदायत दी गयी थी कि तहरीर चौक पर जो अवाम इकट्ठा है उसे मारपीट कर भगाओ. ज़ाहिर है कि पिछले दस दिनों से जो कुछ भी काहिरा में हो रहा है वह सत्ता से पंगा लेने की राजनीति का नया उदाहरण है. जिस लोक शाही की बात बड़े बड़े विचारकों ने की है, उसी का एक नया आयाम है.
इस सारे प्रकरण में बीबीसी, अल जजीरा, अल अरबिया और सीएनएन के टेलिविज़न कैमरों की रिपोर्टिंग देखने का मौक़ा मिला. सीएनएन ने पहले भी इराक युद्ध में अपनी काबिलियत के झंडे गाड़े थे जब अमरीकी राष्ट्रपति बुश सीनियर ने कहा था कि उन्होंने इराक पर हमले का आदेश तो दे दिया था लेकिन उस आदेश को लागू होने की सबसे पहले जानकारी उनको भी सीएनएन से मिली. भारत में उन दिनों डिश टीवी सबके घरों में नहीं लगे थे लिहाज़ा कई होटलों में लोगों ने सीएनएन की कवरेज देखी थी. इस बार भी विदेशी चैनलों ने जिस तरह से काहिरा में करवट ले रहे इतिहास को दिखाया है उसकी तारीफ की जानी चाहिए.
काहिरा के तहरीर चौक पर चारों तरफ राजनीति बिखरी पड़ी है और दुनिया भर के समाचार माध्यम उसको अपने दर्शकों को बता रहे हैं, उसकी बारीकियों को समझा रहे हैं. दुनिया भर से अरब मामलों के जानकार बुलाये जा रहे हैं और उनसे उनकी बात टेलिविज़न के माध्यम से पूरी दुनिया को दिखाई जा रही है लेकिन हमारे भारतीय चैनल इस बार भी पिछड़ गए हैं. खैर पिछड़ तो अपनी सरकार भी गयी है लेकिन वह फिर कभी. हमारे जिन चैनलों के पास काहिरा से लाइव टेलीकास्ट की सुविधा भी है वह भी बिलकुल बचकाने तरीके से काहिरा की जानकारी दे रहे हैं. देश के सबसे बड़े अंग्रेज़ी अखबार और दुनिया की सबसे बड़ी वायर एजेंसी की मदद से चल रहे एक अंग्रेज़ी चैनल की काहिरा की कवरेज बहुत ही निराशाजनक है. सबसे ज्यादा निराशा तो तब होती है जब करीब चार घंटे पहले हुई किसी घटना को अपना यहां सबसे अच्छा अंग्रेज़ी चैनल ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह पेश करता है.
अफ़सोस की बात यह है कि चैनल के कर्ताधर्ता यह मानकर चलते हैं कि सारा देश उनका चैनल ही देख रहा है. जबकि सच्चाई यह है कि बस तो दो बटन दूर बीबीसी पर वही घटनाएं घंटों पहले दिखाई जा चुकी होती हैं. और उसकी व्याख्या भी विशेषज्ञों से करवाई जा चुकी होती है. उसी रायटर्स के फुटेज को लाइव देखे घंटों हो चुके होते हैं जब अपना रायटर्स का पार्टनर यह चैनल उनको अभी अभी आई ताज़ा तस्वीरें कह कर दिखाता है. अंग्रेज़ी के बाकी चैनलों का ज़िक्र करना यहाँ ठीक नहीं होगा क्योंकि किसी की कमी को उदाहरण के तौर पर एकाध बार तो इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन उनकी कमजोरी का बार बार ज़िक्र करके उनके घाव पर नमक छिड़कना बदतमीजी होगी. हिन्दी के समाचार माध्यमों की तो बात ही और है. उनको तो दिल्ली में रहने वाले उनके मित्र नेताओं के ज्ञान को ही हर जगह दिखाना होता है. उनका ज़िक्र न किया जाए तो ही सही रहेगा. सवाल यह उठता है कि एक ही तरह की घटना, एक ही तरह की सूचना और एक ही तरह की सच्चाई को हमारे चैनलों के सर्वज्ञानी भाई लोग पकड़ क्यों नहीं पाते. क्यों नहीं हमें अपने माध्यमों से सारी जानकारी मिल जाती जबकि विजुअल वही होते हैं जो विदेशी चैनलों की पास होते हैं.
ऐसा लगता है कि अपने खबरिया माध्यमों में बैठे लोग राजनीति की बारीक समझ का कौशल नहीं रखते. एक नामी टीवी न्यूज़ चैनल को कुछ वर्षों तक अन्दर से देखने पर यह समझ में आया था कि खबर को उसके सही संदर्भ में पेश करना कोई आसान काम नहीं है. अखबार में तो बड़ा-सा लेख लिखकर अपनी बात को समझा देने की आज़ादी रहती है लेकिन टीवी में ऐसा नहीं होता. उसी चैनल के संस्थापक ने अंतरराष्ट्रीय ख़बरों को उनकी सही पृष्ठभूमि के साथ पेश करने की परंपरा कायम की थी लेकिन समझ में नहीं आता था कि उनके ही संगठन में लोग आन क तान खबरें क्यों पेश करते थे. गहराई से गौर करने पर समझ में आया कि उन बेचारों को सारी बातें मालूम ही नहीं होतीं थीं और दंभ इतना होता था कि वे किसी और से पूछते नहीं. नतीजा यह होता है कि घंटों तक चीन की राजधानी बीजिंग के बजाए शंघाई को बताया जाता था.
देश की आतंरिक राजनीति में भी इसी तरह के लाल बुझक्कड़ शैली के ज्ञान से श्रोता को अभिभूत करने की होड़ लगी रहती है. ज़ाहिर है कि अगर देश के समाचार माध्यमों को सूचना क्रान्ति की रफ्तार के साथ आगे बढ़ना है तो राजनीति की बारीक समझ को टीवी न्यूज़ का स्थायी भाव बनाना पड़ेगा. टेलिविज़न के श्रोता को वही खबर चाहिए चाहिए जो राजनीति की बारीकियों को स्पष्ट करे. यह राजनीति सत्ता की भी हो सकती है, सिनेमा की भी, परिवार की भी या खेती किसानी की भी. खबरें स्तरीय तभी होंगी जब हर तरह की राजनीति के विश्लेषण को खबरों की आत्मा की तरह प्रस्तुत किया जाएगा. वरना हमारे समाचार माध्यमों के हाथ आया सूचना क्रान्ति का यह स्वर्णिम मौक़ा हाथ से निकल जाएगा.
लेखक शेष नारायण सिंह देश के जाने-माने पत्रकार व स्तंभकार हैं.
Sunday, January 30, 2011
अमर उजाला के फोटोग्राफ़र रमेश चौहान के कान के पर्दे फटे : प्रशासन की चुप्पी से पत्रकार जगत में रोष व्याप्त : 2 फरवरी को जनपद के सभी पत्रकार निकलेगे मौन जुलूस : मुज़फ्फरनगर में वकीलों की मार का दंश झेल रहे अमर उजाला के रमेश चौहान और हिंदुस्तान के कैमरामैन मनीष चौहान की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है. डॉक्टरो ने जाँच के दौरान रमेश चौहान के दोनों कानों के पर्दों को फटा बताया है.
इस मामले में जनपद भर के पत्रकारों सहित कई सामाजिक और व्यापारिक संघटन एकजुट हो गये हैं. इन लोगों ने कार्यवाही न होने की स्तिथि में आगामी 2 फरवरी को मौन जुलूस और जिलाधिकारी
कार्यालय पर जबदस्त धरना प्रदर्शन करने की घोषणा की है. इस मामले को लेकर रविवार को नगर के महावीर चौक के पास एक स्कूल में विभिन दैनिक समाचार पत्रों के प्रभारियो और पत्रकारों की बैठक हुई. इसमें निर्णय लिया गया कि अगर पुलिस इस मामले में दो दिन के अंदर रिपोर्ट दर्ज कर आरोपी वकीलों को जेल नही भेजती है तो 2 फरवरी को जनपद भर के पत्रकर टाउनहाल में इकट्ठा होंगे, जहां से मौन जुलूस निकालते हुए पत्रकारों का हुजूम डीएम ऑफिस पर जायेगा. वहां पर जबरदस्त धरना-प्रदर्शन किया जायेगा. इस जुलुस में विभिन सामाजिक, राजनेतिक और व्यापारिक संघटन एवं दल भी भाग लेंगे. साथ ही आरोपी वकीलों की प्रेस कौंसिल ऑफ
इंडिया, बार संघ आदि में भी शिकायत की जाएगी.


वहीं दूसरी और डॉक्टरो ने बताया कि घायल रमेश चौहान के दोनों कानो के पर्दों में छेद हो गया है. उनका उपचार किया जा रहा है. अगर दवाइयों से ठीक नहीं हुए तो आपरेशन किया जायेगा. मनीष चौहान की हालत में भी कोई सुधार नहीं हुआ है. इतना सब कुछ होने के बावजूद जिला और पुलिस प्रशासन अभी मौन है. बैठक में मुख्य रूप से अमर उजाला प्रभारी ब्रजेश चौहान, जागरण प्रभारी नीरज गुप्ता, हिंदुस्तान प्रभारी नीरज गुप्ता, पश्चिम सन्देश सम्पादक रविंदर चौधरी, मुज़फ्फरनगर बुलेटिन के प्रभारी अंकुर दुआ, शाह टाइम्स प्रभारी गुलफाम अहमद, टाइम्स ऑफ इंडिया प्रभारी वशिष्ठ भारद्वाज सहित अरविन्द भारद्वाज, राकेश शर्मा, अमित सैनी, अमित पुंडीर, सर्वेन्दर पुंडीर, नासिर खान, संजय झा सहित सैकड़ों पत्रकारों ने भाग लिया.
मुजफ्फरनगर से अमित सैनी की रिपोर्ट
अजीज बर्नी इन दिनों खबर में हैं.
अजीज बर्नी इन दिनों खबर में हैं. आज जनसत्ता अखबार में भी फ्रंट पेज पर अजीज बर्नी से संबंधित दो कालम की स्टोरी छपी है. इसके पहले कई जगहों पर अजीज बर्नी के खिलाफ खबरें छपती रही हैं. खासकर अपनी किताब को लेकर अजीज बर्नी बुरी तरह फंसे हैं जिसमें उन्होंने मुंबई पर आतंकी हमले में आरएसएस का हाथ होने का शक जताया था. उधर कहने वाले खुद अजीज बर्नी की आतंकी हमले में मिलीभगत बता रहे हैं क्योंकि आतंकी हमले के दिन बर्नी पाकिस्तान में थे.
खैर, ये तो बात आरोप-प्रत्यारोप की है लेकिन ताजी सूचना ये है कि अजीज बर्नी सबसे ज्यादा परेशान सहारा में खतरे में पड़ चुकी अपनी नौकरी को लेकर हैं. इसी नौकरी को बचाने के लिए अजीज बर्नी ने सहारा में फ्रंट पेज पर दो कालम का माफीनामा प्रकाशित कर अपनी किताब के लिए खेद जताया और भरपूर माफी की मांग की. पर इतने से लगता है बात नहीं बनती दिख रही है. ताजी सूचना ये है कि सहारा और अजीज बर्नी के खिलाफ राष्ट्रद्रोह समेत कई तरह के मुकदमे दायर कराने वाले मुंबई के विनय जोशी से भी अजीज बर्नी ने मेल कर माफी मांगी है. इस माफीनामें में खासबात ये है कि बर्नी ने ये जाहिर कर दिया है कि उनकी नौकरी खतरे में है क्योंकि किताब पर हुए मुकदमें के कारण कोर्ट ने जो गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया है, उससे परेशानी बढ़ी हुई है.
ज्ञात हो कि विनय जोशी की तरफ से उनके वकील प्रशांत मग्गू ने दो साल पहले अजीज बर्नी के खिलाफ मुकदमा दायर करना शुरू किया और एक के बाद एक कई मुकदमें दायर किए. भड़ास4मीडिया के पास अजीज बर्नी द्वारा विनय जोशी से मांगी गई माफी से संबंधित मेल मौजूद है. उसे हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं. पर बड़ा सवाल ये है कि माफीनामों की इस श्रृंखला के बावजूद अजीज बर्नी की नौकरी सहारा में बच पाएगी?
कभी सुब्रत राय सहारा के काफी करीबी रहे अजीज बर्नी के दिन उपेंद्र राय के आने के बाद से जो लदने शुरू हुए हैं तो वापस आने के नाम नहीं ले रहे. और, अपनी स्थिति मजबूत करने के चक्कर में जो माफीनामें अजीज बर्नी प्रकाशित करा रहे हैं, उससे उनकी स्थिति और खराब होती दिख रही है क्योंकि अब ये बात ज्यादा लोगों को पता चल चुकी है कि अजीज बर्नी ने कैसे कैसे आरोप किन किन पर लगाए और अब उन्हीं लिखे-पढ़े के लिए माफी मांगते घूम रहे हैं. अजीज बर्नी लंबी छुट्टी पर भेजे जा चुके हैं. देखिए, उनकी छुट्टी कब खत्म होती है या उनकी एकदम से छुट्टी हो जाती है. यहां हम अजीज बर्नी द्वारा विनय जोशी को प्रेषित मेल को प्रकाशित कर रहे हैं...
चंडीगढ़ : वयोवृद्ध पत्रकार बलराम दत्त शर्मा का आज लंबी बीमारी के बाद पंचकूला में उनके निवास पर निधन हो गया. वह लगभग ७० वर्ष के थे
चंडीगढ़ : वयोवृद्ध पत्रकार बलराम दत्त शर्मा का आज लंबी बीमारी के बाद पंचकूला में उनके निवास पर निधन हो गया. वह लगभग ७० वर्ष के थे तथा अपने पीछे चार पुत्र और एक पुत्री छोड़ गये हैं. उनका अंतिम संस्कार कल दोपहर १२ बजे मनीमाजरा के शहदाह गृह में किया जायेगा. बलराम दत्त शर्मा ने अपना करियर बीकानेर में १९६४ में जिला लोक संपर्क अधिकारी के तौर पर शुरू किया था. वहां वह १९७४ तक रहे. इसके पश्चात् १९७४ से १९७८ तक उन्होंने पंजाब केसरी, जालधंर में काम किया.
१९७८ में वह दैनिक ट्रिब्यून में उप संपादक के पद पर आये थे. वहां उन्होंने मुख्य संपादक, समाचार संपादक तथा वरिष्ठ सहायक संपादक के पद पर कार्य किया. वर्ष १९९९ से वर्ष २००४ तक वह दिव्य हिमाचल में समाचार संपादक के पद पर कार्य करते है। पत्र-पत्रिकाओं में बलराम दत्त शर्मा एक चर्चित नाम रहा है. दिल्ली प्रेस की पत्रिकाओं सरिता, मुक्ता आदि से वह लंबे समय तक जुड़े रहे. उनकी दिल्ली प्रेस में हजारों रचनाएं छपी हैं. बलराम दत्त शर्मा ने विदेश, राजनीति, फिल्मों आदि के विषय में अनेक पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख लिखे हैं. वह एक साहित्यकार और व्यंग्यकार भी रहे हैं. पंजाब विश्वविद्यालय के प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के लिए भी उन्होंने बहुत सारा साहित्य लिखा है.
वह पंजाब चंडीगढ़ पत्रकार परिषद के संस्थापक सदस्य भी रहे तथा इस संस्था के महासचिव भी रहे. पत्रकारिता और साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें कईं बार पंजाब एवं हरियाणा सरकारों द्वारा सम्मानित भी किया गया. हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने बलराम दत्त शर्मा के निधन पर शोक व्यक्त किया है. मुख्यमंत्री ने शोक संदेश में उन्हें एक प्रबुद्ध पत्रकार बताया जिन्हें उनकी निष्पक्ष लेखनी के लिए सदैव याद किया जाएगा. उन्होंने बताया कि बलराम दत्त शर्मा ने हिन्दी पत्रकारिता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. हुड्डा ने प्रार्थना की कि भगवान दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे. उन्होंने शोक संतप्त परिवार के सदस्यों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त की.
साधना न्यूज मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ के पॉलिटिकल एडीटर एसपी त्रिपाठी ने साधना न्यूज को अलविदा कह दिया है.
साधना न्यूज मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ के पॉलिटिकल एडीटर एसपी त्रिपाठी ने साधना न्यूज को अलविदा कह दिया है. एसपी त्रिपाठी ने शनिवार को साधना न्यूज के चेयरमैन दिनेश गुप्ता से दिल्ली में भेंट करने के बाद प्रबंधन अपना इस्तीफा सौंप दिया है. वे अपनी नई पारी की शुरुआत जल्द लांच होने वाले नेशनल हिंदी न्यूज चैनल 'न्यूज एक्सप्रेस' के साथ 'सेन्ट्रल इंडिया हेड' के रूप में करने जा रहे हैं.
एक फरवरी से वे भोपाल में अपने नए कार्यालय में कार्यभार संभालेंगे. एसपी त्रिपाठी पिछले 27 सालों से प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में हैं. साधना से पहले परख, सहारा समय के ब्यूरो चीफ और वीओआई में मप्र के स्टेट हैड के रूप में मुकेश कुमार के साथ काम कर चुके हैं. वीओआई के बाद प्रभात डबराल की टीम के साथ साधना न्यूज में पॉलिटिकल एडीटर के रूप में जुड़े थे. प्रभात डबराल के करीबी माने जाने वाले एसपी त्रिपाठी ने साधना को अलविदा कह एक बड़ा झटका प्रबंधन को दिया है.
प्रभात डबराल के साधना छोडने के बाद उनके करीबियों का साधना से जाने का दौर चल निकला है. इससे पहले बिहार-झारखंड के चैनल हेड शशि रंजन ने इस्तीफा देकर टोटल टीवी में वीपी के रूप में ज्वाइंन किया था. कई सीनियर इन दिनों लंबी छुट्टी पर चले गए हैं. आने वाले समय में साधना न्यूज से कई विकेट गिरने की बात कही जा रही है. इस संबंध में एसपी त्रिपाठी ने बताया कि मुकेश जी के साथ एक बार फिर उन्हें काम करने का मौका मिला है और उनके लिए एक नया अनुभव होगा
Friday, January 28, 2011
एसीएमएम अजय पांडेय ने फर्जीवाड़ों के आरोपित वकील को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर दी थी जमानत :
एसीएमएम अजय पांडेय ने फर्जीवाड़ों के आरोपित वकील को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर दी थी जमानत : निशा की तरह गुनिंदर भी उनके फैसले के खिलाफ काट रही अदालतों के चक्कर : रॉ की पूर्व महिला अधिकारी निशा प्रिया भाटिया ही नहीं एक और पीड़ित महिला हैं जो एसीएमएम अजय पांडेय के फैसले के खिलाफ ऊंची अदालतों में चक्कर लगा रही हैं। बहुराष्ट्रीय बैंक में बड़े ओहदे पर रहीं गुनिंदर गिल के साथ धोखाधड़ी और शातिराना जालसाजी के आरोपित एक वकील को जज साहब ने जमानत दे दी, जिसे हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक से जमानत नहीं मिली थी।
एसीएमएम अजय पांडेय ने उस वकील के जिन दस्तावेजों को जमानत का आधार बनाया, वे दस्तावेज ही फर्जी थे। दस्तावेज इतने फर्जी थे, जिसे देखकर कोई भी कानून का जानकार पहली नजर में ही भांप जाता कि इसमें गड़बड़झाला है। इतना ही नहीं एसीएमएम पांडेय ने शिकायतकर्ता गुनिंदर गिल को ही फर्जीवाड़ा करने के आरोप में जेल भेजने की चेतावनी दे डाली। गुनिंदर का आरोप है कि वकील की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए जज ने कहा कि मेरा दिल करता है कि मैं इसे जमानत दे दूं, मैं किसी से नहीं डरता, सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं। कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। फर्जीवाड़ा करने के आरोपित वकील बीएन सिंघवी को इस तरह से जमानत देने की शिकायत ले कर गुनिंदर तीस हजारी स्थित सीएमएमए कावेरी बावेजा के यहां पंहुची, लेकिन उनकी अर्जी को तकनीकी आधार पर इसलिए खारिज कर दिया गया क्योंकि अभियोजन निदेशालय के इस बाबत अनुमति के एक पृष्ठ पर दस्तखत नहीं थे। गुनिंदर ने इस मामले की शिकायत हाईकोर्ट से की है, जो अभी लंबित है।
दरअसल मामला कुछ इस तरह का है कि शिकायतकर्ता ने जो कि भारत में एक जर्मन बैंक शाखा में निदेशक के पद पर थीं, अपने सहयोगी के साथ सिंगापुर ट्रेनिंग में गई थीं। वहां उन्होने पाया कि भारतीय अधिकारी व उनके साथ नस्ली भेदभाव किया जा रहा है। जब उन्होने इसकी शिकायत जर्मनी स्थित अपने निदेशक स्तर के अफसर से की, तो वहां उनको सही ठहराया गया। इसी के चलते उन्होंने अपने वकील बीएन सिंघवी (अब आरोपित) द्वारा जर्मनी में मुकदमा दायर करवा दिया। इसके लिए उनके वकील ने आठ बार जर्मनी व एक बार सिंगापुर जाने के खर्चे के अलावा मोटी फीस वसूली। इस मामले में उस पर आरोप है कि वह वहां के वकील के साथ मिल कर उन्हें मिले मुआवजे की करोड़ों की रकम की बाबत समझौता कर बैठा। बाद में गुनिंदर की शिकायत पर दिल्ली में मामला दर्ज किया गया और 10 अगस्त 2004 को आरोपित बीएन सिंघवी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
अदालत में लंबित मामले की सुनवाई के दौरान यह बात सामने आयी कि वकील पर न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के आधार पर फर्जीवाड़ा करने का आरोप है बल्कि फर्जीवाड़े के करीब सात मामले दर्ज हैं। इसी आरोपित वकील के खिलाफ जब एसीएमएम पांडेय के यहां दो जून 2009 को जब जमानत अर्जी संबंधी सुनवाई चल रही थी, तो सरकारी वकील ने दलील दी कि आरोपित पर गंभीर मामले लंबित हैं और उसने जेल में रह कर शिकायती महिला को भी धमकी दी है, ऐसे आरोपित को जमानत नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन गुनिंदर के आरोप के अनुसार, जज पांडेय उसको जमानत देने पर तुले हुए थे और उनके मना करने के बावजूद सोसायटी के फर्जी दस्तावेजों को आधार मान कर आरोपित को जमानत दे दी गयी। सोसायटी के उस दस्तावेज में दरअसल यह साबित करने की कोशिश की गयी थी कि गुनिंदर, उनके पिता आदि उस सोसायटी के मेंबर हैं और वकील सिंघवी उस सोसायटी का सचिव है। कुल मिला कर सोसायटी के झगड़े के चलते गुनिंदर जानबूझ कर सिंघवी को दूसरे मामले में फंसा रहीं हैं।
एसीएमएम की अदालत में गुनिंदर ने जज साहब से फरियाद की कि कथित सोसायटी के दस्तावेज फर्जी हैं और उस पर उनके पिता के फर्जी हस्ताक्षर हैं, परंतु उनकी फरियाद ठुकरा दी गयी। इतना ही नहीं गुनिंदर के अनुसार, जज पांडेय ने अदालत में कहा कि उक्त सोसायटी के दस्तावेज न्यायिक फाइल में है हीं नहीं। लेकिन जब गुनिंदर गिल ने इसके लिए कोर्ट से प्रमाणित प्रति निकलवायी तो यह साबित हो गया कि उक्त दस्तावेज अदालत की फाइल में ही मौजूद थे, जिसे जज पांडेय इनकार कर रहे थे। इस बात की और तस्दीक करने के लिए गुनिंदर ने आरटीआई का भी सहारा लिया, जिसमें स्वीकार किया गया कि संबंधित दस्तावेज फाइल में मौजूद हैं। और तो और रजिस्ट्रार ने भी कथित सोसायटी के दस्तावेजों को फर्जी करार दे दिया। गुनिंदर ने इस मामले में एसीएमएम अजय पांडेय के खिलाफ हाईकोर्ट में शिकायत करते हुए आरोप लगाया है कि उन्होने आरोपित वकील के साथ सहानुभूति दिखायी और इसके चलते सरकारी वकील (उनके) के ऊपर दो हजार रुपए जुर्माना भी लगा दिया (बाद में सरकारी वकील की अर्जी पर सेशन कोर्ट ने जुर्माने को खारिज कर दिया था)। आरोप है कि एसीएमएम ने केस की गंभीरता से नहीं लिया। हमारे संवाददाताओं ने एसीएमएम अजय पांडेय से इस बाबत कई बार बात करने की कोशिश की, लेकिन वे उपलब्ध नहीं हो सके। (साभार : राष्ट्रीय सहारा)
भरी अदालत में कपड़े उतारने पर क्यों मजबूर हुई रॉ की पूर्व अधिकारी निशा प्रिया भाटिया : निशा ने तत्कालीन संयुक्त सचिव और सचिव पर लगाया था यौन शोषण का आरोप : सुप्रीम कोर्ट, पीएमओ और महिला आयोग में भी लगाई थी गुहार : न्याय न मिलने पर पीएमओ के सामने खुदकुशी का भी प्रयास किया
भरी अदालत में कपड़े उतारने पर क्यों मजबूर हुई रॉ की पूर्व अधिकारी निशा प्रिया भाटिया : निशा ने तत्कालीन संयुक्त सचिव और सचिव पर लगाया था यौन शोषण का आरोप : सुप्रीम कोर्ट, पीएमओ और महिला आयोग में भी लगाई थी गुहार : न्याय न मिलने पर पीएमओ के सामने खुदकुशी का भी प्रयास किया : देश की सबसे महत्वपूर्ण खुफिया एजेंसी रॉ की पूर्व महिला अधिकारी, जिसने विभाग में अपनी प्रशासनिक कार्यकुशलता से सबको हैरान कर दिया था, आखिर भरी अदालत में अर्धनग्न होने के लिए क्यों मजबूर हुई।
हालांकि हाईकोर्ट ने पहली नजर में इस पूर्व महिला अधिकारी की मानसिक स्थिति को ठीक न मानते हुए शाहदरा स्थित मानव व्यवहार व संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) भेजने का आदेश दे दिया, जहां उन्हें भर्ती कर लिया गया है। बेहद प्रतिभाशाली यह पूर्व महिला अधिकारी क्या वाकई में मानसिक झंझावातों के चलते अपना दिमागी संतुलन खो चुकी है, इसकी रिपोर्ट तो इहबास ही देगा। दरअसल, पूर्व महिला अधिकारी निशा प्रिया भाटिया ने हाईकोर्ट में पटियाला हाउस अदालत के तत्कालीन एसीएमएम अजय पांडेय व एक अन्य मजिस्ट्रेट के खिलाफ शिकायत कर रखी थी। साथ ही उनकी मांग थी कि उनके खिलाफ वर्ष 2008 में पीएमओ के समक्ष खुदकुशी के प्रयास का जो मामला अदालत में चल रहा है, उसका जल्द से जल्द निपटारा किया जाए। बाद में हाईकोर्ट में उन्होंने एसीएमएम अजय पांडे के खिलाफ अपनी शिकायत तो जारी रखी लेकिन मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट प्रीतम सिंह का नाम हटवा दिया। न्यायमूर्ति अजीत भरिहोक की पीठ के समक्ष दायर मामले में निशा प्रिया भाटिया ने आरोप लगाया है कि तत्कालीन एसीएमएम अजय पांडेय बजाय उनकी शिकायत सुनने के, उन्हें रविंद्रनाथ टैगोर व स्वामी विवेकानंद के किस्से सुनाते रहे, जिनका पूरा सार यह था कि समाज के कल्याण के लिए लड़ाई जारी रखो।
निशा ने हाईकोर्ट के प्रशासनिक विभाग में अजय पांडेय के खिलाफ यह शिकायत कर रखी थी कि वह 6 मई 2009 को उनकी अदालत में पेश हुई थी, लेकिन सुनवाई करने के बजाए उन्होंने यह कहा कि वह अगली तारीख डालने जा रहे हैं। इस पर निशा ने अनुरोध किया वह उनके मामले की सुनवाई करें और उनकी तत्कालीन रॉ सचिव अशोक चतुव्रेदी व संयुक्त सचिव सुनील उके के खिलाफ जो 232 पृष्ठों की सेक्सुअल हरॉसमेंट की शिकायत है, उसे भी रिकार्ड पर ले लें। लेकिन अदालत ने पहले तो ऐसा करने से मना कर दिया लेकिन बाद में वह दस्तावेज ले लिए और सरकारी वकील से भी कहा कि वह भी एक प्रति रख लें। इसके बाद इस मामले की सुनवाई के लिए 4 जुलाई 2009 की तारीख लगा दी गई। चार जुलाई को जब निशा अपने मामले की सुनवाई के लिए इंतजार कर रही थीं, तभी सरकारी वकील अंजू राठी राना ने उन्हें बताया कि 2 जुलाई को उनके पास एक महिला का फोन आया था, जिसने बताया कि वह रॉ से बोल रही है। यह फोन उनके मोबाइल पर आया था और प्राइवेट नंबर शो कर रहा था। सरकारी वकील ने बताया कि फोन करने वाली महिला ने अपना नाम तारा बताया और वह केस के बारे में पूछ रही थी। इस पर निशा ने अदालत से कहा कि वह अपना केस लड़ना चाहती है।
निशा का एसीएमएम के खिलाफ यह आरोप है कि उन्होंने बिना किसी चार्जशीट के महिला कांस्टेबल से पकड़वा कर उन्हें नारी निकेतन भेजने का आदेश कर दिया। हालांकि अदालत के रिकार्ड के अनुसार जब उस दिन सुनवाई शुरू हुई तो निशा ने शोर मचाना शुरू कर दिया और कहा कि ‘यह मामला आज खत्म नहीं होता तो वह अपना जीवन आज ही खत्म कर देगी और किसी बिल्डिंग से कूद जाएगी। उसने चिल्ला कर कहा कि आज के बाद हिंदुस्तान की रूह कांपेगी और मैं हर औरत को इंसाफ दिलाउंगी।' निशा को आपे से बाहर होता देख अदालत ने निशा को समझाने की कोशिश की लेकिन तब भी बात नहीं बनी तो सुरक्षा के मद्देनजर उन्हें नारी निकेतन भेजने की बात कही। निशा की इसी शिकायत की बाबत बृहस्पतिवार को हाईकोर्ट में सुनवाई होनी थी लेकिन तारीख आगे बढ़ाने के चलते निशा ने भरी अदालत में वह हरकत कर डाली, जिसे कोई सभ्य समाज मान्यता नहीं देता। निशा की मानसिक स्थिति क्या है, इसकी रिपोर्ट इहबास को अगली सुनवाई के दिन हाईकोर्ट में पेश करनी है।
सेंट स्टीफंस कॉलेज से पढ़ी रॉ की पूर्व महिला अधिकारी निशा प्रिया भाटिया क्या वास्तव में अपनी सोच-समझ खो चुकी थीं या अपने वरिष्ठ अधिकारियों पर लगाए यौन उत्पीड़न की शिकायत पर कोई कार्रवाई न होने से इतना परेशान हो गई थीं कि व्यवस्था से उनका मोहभंग हो गया। जब उनके द्वारा की गई शिकायत पर आरोपितों के खिलाफ कुछ नहीं किया गया तो वह अपना आपा खो बैठीं और पीएमओ के समक्ष खुदकुशी का प्रयास तक कर बैठीं। इस मामले में उनके खिलाफ आत्महत्या की कोशिश करने का मामला दर्ज हो गया और जब वह अदालत पहुंची तो उन्हें लगा कि उसका विभाग वहां भी अपना प्रभाव जमाने की कोशिश कर रहा है। निशा के अनुसार लाख गुहार करने पर भी उनकी शिकायत नहीं सुनी गई और अदालत ने उन्हें ही नारी निकेतन भेजने का आदेश दे दिया।
अदालत के इस रवैये से त्रस्त होने के बाद उन्होंने तत्कालीन एसीएमएम अजय पांडेय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णनन से भी न्याय की गुहार की। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को 28 नवम्बर 2009 को लिखी शिकायत में उन्होंने कहा कि वह रॉ में 1987 बैच की क्लास वन अफसर है। अक्टूबर 2007 में उसने विभाग के सचिव अशोक चतुव्रेदी के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी। शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। मेरा संघर्ष इसलिए था कि विभाग में महिलाओं को सुरक्षित माहौल मिले। न्याय न मिलने पर मैं पीएमओ के समक्ष खुदकुशी का प्रयास तक कर बैठी। इस बाबत दर्ज धारा 309 के तहत जब मामला तत्कालीन एसीएमएम अजय पांडेय की अदालत में चल रहा था तो उनका व्यवहार गैर जिम्मेदाराना व अदालत के मानदंडों के अनुरूप नहीं रहा। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को लिखी शिकायत में 4 जुलाई 2009 की घटना बताते हुए निशा ने कहा कि बिना चार्जशीट व संबंधित दस्तावेज दिए हुए अदालत ने वहां मौजूद सरकारी वकील डाक्टर अंजू राना राठी को कहा कि मुझे नारी निकेतन भेजने का इंतजाम किया जाए।
निशा भाटिया ने आरोप लगाया कि एसीएमएम ने जानबूझ कर ऐसा आदेश लिखवाना शुरू कर दिया ताकि उसे नारी निकेतन भेज दिया जाए। निशा का आरोप है कि यह सब सजा उसे सिर्फ इसलिए दी जा रही है, क्योंकि उसने अशोक चतुव्रेदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। पत्र में निशा ने कहा है कि उसने तत्कालीन एसीएमएम के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर रखी है, जिसमें कहा गया है कि एसीएमएम ने प्रेरित होकर दुर्भावना के तहत उसे ह्यूमिलेट किया है। पत्र में एसीएमएम के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करते हुए यह भी आरोप लगाया गया है कि एक भी सुनवाई कानून के दायरे में नहीं की गई है। पत्र में कहा गया कि मुझे नारी निकेतन सिर्फ इसलिए भेजा गया, क्योंकि मेरे विभाग से तत्कालीन सरकारी वकील के पास फोन आ गया था। पत्र में कहा गया है कि यह बात झकझोर देने वाली है कि एक न्यायिक अधिकारी बजाय न्याय करने के अदालत में बैठ कर एक यौन उत्पीड़न की शिकार बनी महिला को आध्यात्मिक गुरु की तरह उपदेश दे रहा है। इसके साथ ही शिकायत में एसीएमएम द्वारा दिए आदेशों की प्रति भी शामिल की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जवाब देते हुए कहा कि फिलहाल मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में लंबित है, इसलिए कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
रॉ की पूर्व महिला अधिकारी निशा प्रिया भाटिया ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत पर जांच कराने के लिए हर संभव कोशिश की थी। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, यूपीए चेयरमैन सोनिया गांधी, राष्ट्रीय महिला आयोग, तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबउल्लाह आदि सबसे फरियाद की थी लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। इस बीच रॉ से उन्हें न सिर्फ निलंबित कर दिया गया, बल्कि रिटायरमेंट लेने की सलाह भी दी गई। यह ब्यौरा निशा भाटिया ने हाईकोर्ट में दायर अपनी मूल याचिका (तत्कालीन एसीएमएम अजय पांडेय व अन्य के खिलाफ) में दिया है। निशा का आरोप है कि रॉ के एक सीनियर अधिकारी ने ही उनका यौन उत्पीड़न किया। यह अधिकारी उनके साथ सेंट स्टीफंस कॉलेज में था। अधिकारी के खिलाफ विभागीय जांच के लिए उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी लेकिन गोपनीयता के नाम पर उन्हें जांच रिपोर्ट नहीं दी गई।
हाईकोर्ट में एसीएमएम अजय पांडेय व अन्य के खिलाफ दायर याचिका में निशा भाटिया ने कहा है कि उनका विभाग में सेवा का बीस साल का बेहतरीन रिकार्ड है। उनकी दो बेटियां हैं, जिनकी उम्र 20 व 17 साल है। उन्होंने विभाग में सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेशन ऑफ वूमेन एम्लाइज के विषय पर 26 अक्टूबर 2007 को एक ज्ञापन दिया था। उनकी मांग थी कि सुप्रीम कोर्ट के विशाखा मामले में दिए निर्देश को विभाग में भी लागू किया जाए। इसके बाद उन्होंने 2007 में विभाग के सचिव अशोक चतुव्रेदी व अन्य के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी। 18 व 20 दिसम्बर 2007 को उन्हें विभाग से दो पत्र मिले, जिसमें उन्हें सबूतों के साथ पेश होने को कहा गया। इस पर उन्होंने इसलिए पेश होने से इनकार कर दिया था, क्योंकि जांच कमेटी मेंबर चतुव्रेदी से पद में जूनियर थे। निशा की हाईकोर्ट में दायर याचिका में दलील थी कि एक जूनियर अधिकारी अपने से सीनियर अधिकारी की जांच कैसे कर सकता है, जबकि इसमें किसी र्थड पार्टी (स्वयंसेवी संस्था) को भी शामिल नहीं किया गया। इसके बाद उन्हें पता चला कि उनके फोन की टैपिंग की जा रही है। इस पर उन्होंने अपनी शिकायत की बाबत प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की। 10 अप्रैल 2008 को सेक्रेटरी (पीजी एंड कूड) डा. रेणुका विनाथन ने उन्हें समन कर ऑफिस में बुलाया और कहा कि उनकी शिकायत पर जांच शुरू कर दी गई है। इस बीच 23 जुलाई 2008 को उनके ऑफिस में यह आरोप लगाते हुए रेड की गई कि स्थापित नियमों का पालन नहीं किया गया है। इसकी शिकायत राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती गिरिजा व्यास को की गई, जिस पर उन्होंने मदद करने का आश्वासन दिया।
याचिका में कहा गया कि 20 व 31 अगस्त 2008 के बीच उनसे आधिकारिक जिम्मेदारियां ले ली गई और उनके ऑफिस को सील कर दिया गया, जिसमें उनका निजी सामान भी था। जब उन्होंने ऑफिस में प्रवेश करना चाहा तो एसएबी कमांडरों ने उन्हें रोक दिया। बाद में उन्हें मार्च 2009 में जांच कमेटी की सदस्य इंदू अग्निहोत्री ने बताया कि उनकी शिकायत पर जांच 31 जनवरी 2009 को पूरी हो गई थी और उसके सीनियर अशोक चतुव्रेदी को दोषी नहीं पाया गया है। बाद में इस जांच रिपोर्ट की प्रति पाने के लिए राष्ट्रपति भवन स्थित पीजी एंड कूड विंग को पत्र व फोन से माध्यम से दरख्वास्त की गई, लेकिन जब कुछ हासिल नहीं हुआ तो 2 अप्रैल 2009 को मुख्य सूचना अधिकारी के यहां जांच की प्रति देने का निर्देश देने की मांग निशा ने की। उनकी अर्जी को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया गया। इसके बाद परेशान होकर वह कैबिनेट सेक्रेटरी केएम चंद्रशेखर से भी मिली और उन्हें बताया कि यौन उत्पीड़न का विरोध करने पर उन्हें अशोक चतुव्रेदी के अनुमोदन पर नौकरी से डिसमिस कर दिया गया है। इस पर चंद्रशेखर ने आश्वासन दिया कि वे मामले को देखेंगे। इसी तरह के विभिन्न वायदों से तंग आकर आखिर में निशा ने पीएमओ के समक्ष खुदकुशी का प्रयास किया, जिसके चलते उनके खिलाफ थाने में मामला दर्ज कर लिया गया। फिलहाल यह मामला हाईकोर्ट में लंबित है और मामले की सुनवाई जारी है। रॉ की पूर्व महिला अधिकारी द्वारा लगाए गए विभिन्न लोगों के खिलाफ आरोप में कितनी सचाई है यह तो हाईकोर्ट के फैसले से ही पता चलेगा। (साभार : राष्ट्रीय सहारा)
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