Friday, January 28, 2011

एसीएमएम अजय पांडेय ने फर्जीवाड़ों के आरोपित वकील को फर्जी दस्‍तावेजों के आधार पर दी थी जमानत :

एसीएमएम अजय पांडेय ने फर्जीवाड़ों के आरोपित वकील को फर्जी दस्‍तावेजों के आधार पर दी थी जमानत : निशा की तरह गुनिंदर भी उनके फैसले के खिलाफ काट रही अदालतों के चक्‍कर : रॉ की पूर्व महिला अधिकारी निशा प्रिया भाटिया ही नहीं एक और पीड़ित महिला हैं जो एसीएमएम अजय पांडेय के फैसले के खिलाफ ऊंची अदालतों में चक्कर लगा रही हैं। बहुराष्ट्रीय बैंक में बड़े ओहदे पर रहीं गुनिंदर गिल के साथ धोखाधड़ी और शातिराना जालसाजी के आरोपित एक वकील को जज साहब ने जमानत दे दी, जिसे हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक से जमानत नहीं मिली थी।
एसीएमएम अजय पांडेय ने उस वकील के जिन दस्तावेजों को जमानत का आधार बनाया, वे दस्तावेज ही फर्जी थे। दस्तावेज इतने फर्जी थे, जिसे देखकर कोई भी कानून का जानकार पहली नजर में ही भांप जाता कि इसमें गड़बड़झाला है। इतना ही नहीं एसीएमएम पांडेय ने शिकायतकर्ता गुनिंदर गिल को ही फर्जीवाड़ा करने के आरोप में जेल भेजने की चेतावनी दे डाली। गुनिंदर का आरोप है कि वकील की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए जज ने कहा कि मेरा दिल करता है कि मैं इसे जमानत दे दूं, मैं किसी से नहीं डरता, सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं। कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। फर्जीवाड़ा करने के आरोपित वकील बीएन सिंघवी को इस तरह से जमानत देने की शिकायत ले कर गुनिंदर तीस हजारी स्थित सीएमएमए कावेरी बावेजा के यहां पंहुची, लेकिन उनकी अर्जी को तकनीकी आधार पर इसलिए खारिज कर दिया गया क्योंकि अभियोजन निदेशालय के इस बाबत अनुमति के एक पृष्ठ पर दस्तखत नहीं थे। गुनिंदर ने इस मामले की शिकायत हाईकोर्ट से की है, जो अभी लंबित है।
दरअसल मामला कुछ इस तरह का है कि शिकायतकर्ता ने जो कि भारत में एक जर्मन बैंक शाखा में निदेशक के पद पर थीं, अपने सहयोगी के साथ सिंगापुर ट्रेनिंग में गई थीं। वहां उन्होने पाया कि भारतीय अधिकारी व उनके साथ नस्ली भेदभाव किया जा रहा है। जब उन्होने इसकी शिकायत जर्मनी स्थित अपने निदेशक स्तर के अफसर से की, तो वहां उनको सही ठहराया गया। इसी के चलते उन्होंने अपने वकील बीएन सिंघवी (अब आरोपित) द्वारा जर्मनी में मुकदमा दायर करवा दिया। इसके लिए उनके वकील ने आठ बार जर्मनी व एक बार सिंगापुर जाने के खर्चे के अलावा मोटी फीस वसूली। इस मामले में उस पर आरोप है कि वह वहां के वकील के साथ मिल कर उन्हें मिले मुआवजे की करोड़ों की रकम की बाबत समझौता कर बैठा। बाद में गुनिंदर की शिकायत पर दिल्ली में मामला दर्ज किया गया और 10 अगस्त 2004 को आरोपित बीएन सिंघवी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
अदालत में लंबित मामले की सुनवाई के दौरान यह बात सामने आयी कि वकील पर न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के आधार पर फर्जीवाड़ा करने का आरोप है बल्कि फर्जीवाड़े के करीब सात मामले दर्ज हैं। इसी आरोपित वकील के खिलाफ जब एसीएमएम पांडेय के यहां दो जून 2009 को जब जमानत अर्जी संबंधी सुनवाई चल रही थी, तो सरकारी वकील ने दलील दी कि आरोपित पर गंभीर मामले लंबित हैं और उसने जेल में रह कर शिकायती महिला को भी धमकी दी है, ऐसे आरोपित को जमानत नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन गुनिंदर के आरोप के अनुसार, जज पांडेय उसको जमानत देने पर तुले हुए थे और उनके मना करने के बावजूद सोसायटी के फर्जी दस्तावेजों को आधार मान कर आरोपित को जमानत दे दी गयी। सोसायटी के उस दस्तावेज में दरअसल यह साबित करने की कोशिश की गयी थी कि गुनिंदर, उनके पिता आदि उस सोसायटी के मेंबर हैं और वकील सिंघवी उस सोसायटी का सचिव है। कुल मिला कर सोसायटी के झगड़े के चलते गुनिंदर जानबूझ कर सिंघवी को दूसरे मामले में फंसा रहीं हैं।
एसीएमएम की अदालत में गुनिंदर ने जज साहब से फरियाद की कि कथित सोसायटी के दस्तावेज फर्जी हैं और उस पर उनके पिता के फर्जी हस्ताक्षर हैं, परंतु उनकी फरियाद ठुकरा दी गयी। इतना ही नहीं गुनिंदर के अनुसार, जज पांडेय ने अदालत में कहा कि उक्त सोसायटी के दस्तावेज न्यायिक फाइल में है हीं नहीं। लेकिन जब गुनिंदर गिल ने इसके लिए कोर्ट से प्रमाणित प्रति निकलवायी तो यह साबित हो गया कि उक्त दस्तावेज अदालत की फाइल में ही मौजूद थे, जिसे जज पांडेय इनकार कर रहे थे। इस बात की और तस्दीक करने के लिए गुनिंदर ने आरटीआई का भी सहारा लिया, जिसमें स्वीकार किया गया कि संबंधित दस्तावेज फाइल में मौजूद हैं। और तो और रजिस्ट्रार ने भी कथित सोसायटी के दस्तावेजों को फर्जी करार दे दिया। गुनिंदर ने इस मामले में एसीएमएम अजय पांडेय के खिलाफ हाईकोर्ट में शिकायत करते हुए आरोप लगाया है कि उन्होने आरोपित वकील के साथ सहानुभूति दिखायी और इसके चलते सरकारी वकील (उनके) के ऊपर दो हजार रुपए जुर्माना भी लगा दिया (बाद में सरकारी वकील की अर्जी पर सेशन कोर्ट ने जुर्माने को खारिज कर दिया था)। आरोप है कि एसीएमएम ने केस की गंभीरता से नहीं लिया। हमारे संवाददाताओं ने एसीएमएम अजय पांडेय से इस बाबत कई बार बात करने की कोशिश की, लेकिन वे उपलब्ध नहीं हो सके। (साभार : राष्‍ट्रीय सहारा)

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