उगांडा में नकारात्मक लेखन का प्रचलन जरा कम है। ऐसा नहीं है कि है ही नहीं, पर कम है। राजधानी कंपाला से अनेक अखबार प्रकाशित होते हैं लेकिन सबसे लोकप्रिय अखबार है-द न्यू विजन। उसके बाद सबसे ज्यादा बिकने और पढ़ा जाने वाला अखबार है-द मोनिटर और ईस्ट अफ्रीकन। इसके अलावा ऑबजर्बर और रेड पेप्पर भी काफी लोग पढते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सारे के सारे अखबार टेबलायड में ही छपते हैं। इनकी कीमत भी स्थानीय मुद्रा शिलिंग में कम से कम 800 और अधिकतम 1500 शिलिंग है। भारतीय रुपए के हिसाब से देखें तो लगभग 50 शिलिंग का एक भारतीय रुपया होता है। रविवार को और जगहों की तरह यहां के अखबार भी सप्लीमेंट छापते हैं और कीमतों में कम से कम 300 शिलिंग की बढ़ोतरी भी करते हैं।
इनमें रेड पेप्पर को आम तौर पर जवानों के हाथ देखा जाता है क्योंकि उसमें नंगी तस्वीरों की संख्या ज्यादा होती है। यह सच है कि उगांडा और खासतौर से कंपाला की संस्कृति पर अमरीकी संस्कृति ही हावी है, पर ब्रिटेन की छाप भी कई जगहों पर दिख जाती है। पेप्पर जैसे अखबार यहां की महिलाएं और युवतियां भी खूब पढ़ती हैं और कुछ भी छुपाकर नहीं पढ़तीं। लेकिन नंगी तस्वीरों के बावजूद सबसे ज्यादा लोग न्यू विजन ही पढ़ते हैं। कंपाला के निवासी बताते हैं कि न्यू विजन सत्ता के नजदीक रहने वाला अखबार है और मोनिटर विरोधी राजनीति पर भी खुलकर लिखता है।
मैंने कम से कम चारों प्रमुख अखबारों को लगातार देखा। मेरा अपना अनुभव है कि अच्छे अखबार के रुप में द ईस्ट अफ्रीकन को ही रखा जाना चाहिए। ऐसा नहीं है कि बाकी अखबार बुरे हैं, पर मैटर के चयन में यह आगे तो है ही। यहां प्रिंट लाइन के नाम पर संपादक और प्रकाशक के नाम तो छपते हैं, पर कोई निबंधन संख्या नहीं छापता। भारत की तरह कोई आरएनआई नंबर है ही नहीं। केवल देश के प्रमुख डाकघर में इसका निबंधन होता है। क्योंकि कंपाला में डाक के लिए घर पर डाकिया के जाने की परंपरा नहीं है, इसलिए अखबार भी डाक से नहीं भेजे जाते। लेकिन यहां के लोगों को पढ़ने की आदत जरुर है। स्थानीय भाषा में छपने वाला बुकेडो भी खूब पढ़ा जाता है, हालांकि उसकी लिपि रोमन ही होती है। अखबार मंहंगे हैं फिर भी लोग खरीदते हैं और फुटपाथों पर एक किनारे खड़े होकर पढ़ने में लोगों को मजा आता है। सुबह अखबार घरों पर फेंके जाने की परंपरा भी नहीं दिखती, पर हर नुक्कड़ पर खड़े होकर बेचने वाले हॉकर जरुर दिखेंगे।
न्यू विजन के बारे में कहा जाता है कि इसके लिए वर्तमान प्रेसिडेंट मुसोविनी का पूरा समर्थन रहता है इसलिए इसे सबसे ज्यादा सरकारी विज्ञापन भी दिए जाते हैं। असल में उगांडा में पिछले 25 वर्षों से सत्ता पर काबिज मुसोविनी को कभी किसी विरोधी नेता ने चुनौती देने का साहस भी नहीं किया है। विरोधी दल हैं भी तो नाममात्र के। कुछ विरोधी नेताओं को भी किसी समूह का चेयरमैन बना कर बोलने की आदत बंद कर दी गई है। अभी उगांडा में चुनाव की तैयारियां चल रही हैं। चुनाव भी दो चरणों में होते हैं। पहले पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के लिए नामों का चुनाव होता है और इसके लिए बाकायदा वोटिंग की जाती है। इसे यहां प्राइमरी इलेक्शन कहते हैं। इन दिनों ऐसे ही चुनाव का यहां माहौल है। इस समय जो सांसद हैं, जरुरी नहीं कि पहले चरण में उनके चुनाव क्षेत्र में उनके कार्यकर्ता और पार्टी के चेयरमैन उन्हें उम्मीदवार बना ही दें। इसलिए इस समय सारे सांसद अपने क्षेत्र में अपने को नेशनल रिवोल्यूशनरी मूवमेंट(एनआरएम) का उम्मीदवार बनने के लिए जोड़-तोड़ कर रहे हैं और पैसे बांटते हुए घूम रहे हैं। उसके बाद पूरी सूची प्रेसिडेंट के पास आएगी और अंतिम फैसला भी वही करेंगे। प्रत्येक क्षेत्र में न्यू विजन और मोनिटर के संवाददाता घूमते दिखेंगे पर अखबारों में पैसे बांटने या शराब के नशे में वोट दिलाने की बातें नहीं छापी जा रही हैं। आप जब भी अखबार खोलेंगे तो आपको प्रेसिडेंट की तरह तरह की तस्वीर दिखेगी।
कुछ सांसदों से मेरी बातें पिछले कुछ दिनों से होती रहती हैं क्योंकि मैं इन दिनों जिस फाइनैंस कंपनी की पड़ताल कर रहा हूं, उसमें राजनेताओं का रोज का आना-जाना लगा रहता है। ये सांसद मंहंगे ब्याज दरों पर छोटी अवधि के लिए लोन ले रहे हैं और अपने चुनाव क्षेत्रों में जा रहे हैं। वे बताते हैं कि अगली फरवरी में होने वाले चुनाव में भी एनआरएम के ही उम्मीदवारों का जीतना तय है, बस महामहिम का हाथ सिर पर होना चाहिए।
उगांडा में भी भ्रष्टाचार के अनेक किस्से हैं, लेकिन अखबार इसके बारे में कुछ भी विस्तार से नहीं छापते। कहा जाता है कि रिश्वत लेने की बात इतनी आम है कि यह कोई खबर भी नहीं बनती। यह और बात है कि रिश्वत की दर यहां की मुद्रा में भी एक लाख से ज्यादा नहीं है। शायद इसीलिए पत्रकार स्टिंग आपरेशनों से भी दूर रहते हैं। एक पत्रकार से मैंने इसके बारे में जानना चाहा तो उसने साफ शब्दों में कहा कि इसे छाप देने से क्या मुसोविनी हार जाएंगे? फिर अपने रिश्ते क्यों खराब किए जाएं। हाल ही में यहां सांसदों के पेंशन को लेकर एक स्टोरी छपी थी, अगले ही दिन उसी श्रोत ने खबर को निराधार कह दिया। संवाददाता को जवाब देते नहीं बन रहा है। इसलिए सारी स्टोरी लिखते समय हर पत्रकार बखेड़े से बचना चाहता है।
लेखक अंचल सिन्हा बैंक के अधिकारी रहे, पत्रकार रहे, इन दिनों उगांडा में बैंकिंग से जुड़े कामकाज के सिलसिले में डेरा डाले हुए हैं.
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