Tuesday, December 28, 2010

हैरी वेरियर एल्विन की आदिवासी पत्नी का निधन, अब वे अपने पति की किताबों में

 . हैरी वेरियर एल्विन की आदिवासी पत्नी का निधन, अब वे अपने पति की किताबों में मिलेंगी : काया के पिंजरे में कैद हंसा सी फडफ़ड़ाती वह पवित्र आत्मा जो यावज्जीवन एक फरेबी फिरंगी लेखक की बेवफाई और जमाने भर की रुसवाई का दंश सहती रहीं, अंतत: अनंत में विलीन हो गईं। मध्यप्रदेश में डिंडोरी जिले के घुर जंगलों में बसे गुमनाम गांव रैतवार की कोसीबाई को उसका प्रारब्ध ही डा. हैरी वारियर एल्विन जैसे महान शोधकर्ता - लेखक तक खींच ले गया था जो बाद में उसके लिए परम छलिया सिद्ध हुए थे।
कैशोर्य काल के उस अत्यल्प साहचर्य के रिश्ते को कोशीबाई ने 22 दिसंबर 2010 को पंचतत्व में विलीन होने तक पूरी शिद्दत से सिरे-माथे ढोया था। विश्व प्रसिद्ध अंगरेज लेखक पति का छल-प्रपंच, दो जवान बेटों के असमय विछोह की पीड़ा और इस सबसे बढ़कर गुरबत व जहालत भरी पहाड़ सी जिंदगी। काले कोस की तरह गुजरे सौ बरस में कोशीबाई ने हर्ष-विषाद, यश-अपयश, उद्वाम प्रेम और अकूत घृणा के ढेरों रंग देखे, उन्हें भोगा और सहा। आये दिन मीडिया उस पर रोचक समाचार कथाएं रचा करता था पर वह उन्हें पढऩा नहीं जानती थी। खुद पर बनी डाक्यूमेंट्री फिल्में भी वह इसलिए नहीं देख सकती थी क्योंकि उसने लंबे जीवन में न छोटा पर्दा देखा था, न बड़ा पर्दा। बावजूद इसके अपने आसपास के गांवों में वह कितनी पूजित थीं, इसका अंदाजा उनकी शवयात्रा में शामिल सैकड़ों आदिवासियों को पुरनम आंखों में तैरते श्रद्धाभाव को देखकर लगाया जा सकता था। शोकाकुल ग्रामीणों ने स्वयं स्फूर्त तरीके से स्कूल बंद रखकर उन्हें अपनी  आदरांजलि दी।
डिण्डौरी जिले के करंजिया विकासखण्ड के ग्राम रैतवार की आदिवासी महिला कोसी बाई सुप्रसिद्ध लेखक डॉ. हैरी वारियर के सम्पर्क में सन् १९२० के लगभग तब आयी थी जब वे देश की आदिम जातियों के रहन-सहन, रीति-रिवाज को बिल्कुल नजदीक से देखने व अध्ययन करने इस इलाके में पहुंचे थे। तब कोई तेरह बरस की  अनपढ़ भोली-भाली आदिवासी बाला से उन्होंने ने आदिवासी रीति-रिवाजों के साथ विवाह किया और पास के ग्राम पाटनगढ़ में अपना अध्ययन एवं शोधकेन्द्र स्थापित कर शोध में जुट गये। आदिवासियों के रहन-सहन, उनके अंध विश्वास, परंपराओं और दैनिक क्रियाकलापों पर आधारित कुल २६ पुस्तकों का सृजन वारियर एल्विन ने किया था । यह पुस्तकें विश्व में प्रसिद्ध हुयी। उनके शोध कार्यो के प्रशंसकों में  तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी, आचार्य कृपलानी और  जमनालाल बजाज जैसी विभूतियां शामिल थी।   पाटनगढ़ में उन्होने एक झोपड़ी में अपना निवास स्थान बनाया और लालटेन की रोशनी में पुस्तकों को लेखन कार्य किया तथा कुष्ठ रोगियों के इलाज के लिये अस्पताल खोला, शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिये स्कूल खोले।
डॉ. एल्विन शीघ्र बड़े भैया के नाम से आदिवासियों के बीच में प्रख्यात हो गये। सबसे  दुखद बात यह है कि इतना सब करने के बाद अपढ़ अज्ञानी कोसी बाई से शादी रचाने वाले  वारियर एल्विन अपना शोध कार्य पूर्ण कर दिल्ली  गये तो फिर लौटे ही नहीं। बाद में मान-सम्मान से लदे वारियर एल्विन को केन्द्र सरकार ने नागालैण्ड राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया। आदिवासी पत्नि को छोड़कर जाने के बाद उन्होने कभी पिछे मुड़कर देखा नहीं और न ही उसकी कोई मदद की। कोसी बाई के द्वारा सरकार को अपनी ओर से इस दुखद घटना की जानकारी देने के बाद केन्द्र सरकार के द्वारा  उसे प्रतिमाह 5 सौ बाद में 7 सौ फिर 8 सौ रूपये और वर्तमान समय में एक हजार रूपये की आर्थिक सहायता पेंशन के रूप में प्रदान कर दी थी। कोसी बाई की शादी के बाद डॉ. एल्विन से दो पुत्र हुये, इनमें से एक का नाम जवाहर लाल और दूसरे का नाम विजय एल्विन रखा गया। उनके दोनों पुत्रों की मृत्यु असमय हो गयी और उनकी दोनों पुत्रवधुएं ५५ वर्षीय फूलमती एवं ४५ वर्षीय शांति बाई कोसी बाई के ऊपर आश्रित रही। विधवा शांति बाई के दो पुत्र २५ वर्षीय प्रमोद, २१ वर्षीय अरूण तथा एक २६ वर्षीय पुत्री आकृति हैं।
कोसी बाई की अंतिम यात्रा

कोसी के पार्थिव देह को उनके पोते प्रमोद ने ही मुखाग्रि देकर उसका दाह संस्कार किया। बताते हैं कि कोसी बाई को छोड़कर डॉ. एल्विन ने दो अन्य आदिवासी महिलाओं से भी शादी रचाई और बाद में कोसी की तरह उन्हें भी बेसहारा छोड़कर वे चले गये थे।  उन सभी आदिवासी महिलाओं ने अपने जीवन के शेष दिन गरीबी, बदहाली में व्यतीत किये। कोसी बाई के बारे में जानकारी लेने के लिये उनके गांव तक देश के जाने-माने पत्रकार एवं मीडियाकर्मी अक्सर पहुंचा करते थे। ऐसे ही साक्षात्कारों के दौरान कोसी बाई ने अपनी अतंव्र्यथा प्रकट करते हुए कहा था कि डॉ. एल्विन ने उनके एवं उनके परिवार के साथ एक क्रूर मजाक और धोखा किया है। आदिवासी समाज की संस्कृति पर शोध कार्य करते हुये उन्होने बहुत सारे अश्लील फोटो खींचे। अपना शोध कार्य पूर्ण करने के बाद देश व विदेश में नाम तो कमाया परन्तु उनकी जिंदगी को नर्क बना दिया। आज भी पाटनगढ़ के शोध संस्थान केन्द्र में डॉ. एल्विन द्वारा आदिवासी पुरूष एवं महिलाओं की मिट्टी द्वारा निर्मित अधिकांशत: नग्न अवस्था की कलाकृतियां संग्रहालय में संजोकर रखी गयी हैं। मुंबई एवं जबलपुर से जाने माने सोमदत्त शास्त्रीमीडियाकर्मी नागरथ ने कोसी बाई के जीवन वृत्तांत पर एक डाक्यूमेन्ट्री फिल्म का निर्माण किया था। अब कोसी बाई वारियर एल्विन के किताबों की पात्र बनकर रह गई हैं।
लेखक सोमदत्त शास्त्री कई वर्षों से मध्य प्रदेश - छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता में सक्रिय हैं. वे 25 वर्षों से भोपाल में दैनिक समाचार पत्रों में जिम्मेदार पदों पर रहने के अतिरिक्त दैनिक भास्कर के भोपाल संस्करण में न्यूज कोआर्डिनेटर, सिटी एडीटर के रूप में काम कर चुके हैं. वे अब भी भास्कर समूह से जुडे़ हैं.
 

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