Tuesday, December 28, 2010

प्रो. सिंह का नाम ढूंढे़ नहीं नजर नहीं आता है।

विश्व का सबसे पढ़ा जाने वाला अखबार होने का दावा करने वाले दैनिक जागरण की पत्रकारिता का एक नया सच सामने आया है। 26 दिसंबर 2010 का अंक देखिए। काशी विद्यापीठ में 25 दिसंबर को एक महत्वपूर्ण गोष्ठी हुई थी। इस गोष्ठी को काशी विद्यापीठ के मानविकी संकाय में चंद्रकुमार मीडिया फाउंडेशन की ओर से आयोजित किया गया था, जिसका विषय था-"सच और पत्रकारिता।'' बाकी सभी अखबारों और वेबपोर्टलों ने जहां फोटो सहित जबर्दस्त कवरेज दिया। जागरण ने इसे छोटे से सिंगल कालम में पेज 6 पर बिना किसी फोटो के निपटा दिया। जबकि इस संगोष्ठी में जागरण के समाचार संपादक राघवेंद्र चढ्ढा, वरिष्ठ रिपोर्टर नागेंद्र पाठक और फोटोग्राफर स्वयं मौजूद थे।
इस समाचार में बहुत खोजने पर भी एक प्रमुख वक्ता का नाम नहीं लिखा मिला। वह नाम था प्रो. एमपी सिंह का। प्रो. सिंह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विधि संकाय के संकाय प्रमुख जैसे महत्वपूर्ण पद पर काबिज रहे हैं। और, बनारस के विधिवेत्ताओं में एक बड़ा नाम हैं। पूरे समाचार में कहीं भी प्रो. सिंह का नाम ढूंढे़ नहीं नजर नहीं आता है। जबकि सर्वाधिक बढ़िया, आकर्षक, चुटीला और सारगर्भित भाषण प्रो. सिंह का था। इस समाचार को इतना छोटा छापने और प्रो. सिंह का नाम न देने के पीछे की भी एक सच है।
दरअसल प्रो. सिंह ने एक बार कोई एक लेख कई बार मांगने के बाद जागरण वाराणसी को दिया था। उसमें उनका खुद का हस्ताक्षर तो था ही उसमें दो पैरे में सुप्रीम कोर्ट पर कुछ बातें लिखी गयी थी। जब लेख छपा तो उसमें वे दोनों महत्वपूर्ण पैराग्राफ पूरी तरह से उड़ा दिए गए थे। स्वयं प्रो. सिंह के शब्दों में ये दो पैराग्राफ काटने पर जागरण ने फोन से उनसे माफी भी मांग ली थी। प्रो. सिंह ने संगोष्ठी में बताया कि मेरे द्वारा हस्ताक्षरित लेख होने के बावजूद वे दो महत्वूपर्ण पैरा लेख में से उड़ा दिये गये थे।
संगोष्ठी में प्रो. सिंह आगे कहते रहे-‘जागरण के स्थानीय संपादक वीरेंद्र कुमार बहुत बड़े पत्रकार हो गए हैं।’ बस यही वह लाइन है जिससे चिढ़कर प्रो. सिंह को पूरी खबर से न सिर्फ आउट कर दिया गया, बल्कि महज कुछ ही लाइनों में पूरी खबर को निपटा दिया गया, जिसके मुख्य वक्ता अजय उपाध्याय थे और जो स्वयं जागरण के राजनीतिक संपादक जैसे महत्वपूर्ण पद पर काम कर चुके हैं, जिस पर आज कल प्रशांत मिश्र काबिज हैं। यहां बता दें कि वीरेन्द्र कुमार न सिर्फ जागरण के मालिक हैं बल्कि दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक के रूप में उनका नाम भी छपता है। जागरण के बच्चा अखबार आई नेक्स्ट में एक लाइन खबर नहीं छपी, जिसके वीरेंद्र कुमार मुद्रक और प्रकाशक हैं। यही है दैनिक जागरण की पत्रकारिता का सच। जो सच और पत्रकारिता शीर्षक संगोष्ठी से उजागर हुई।
अजय कृष्ण त्रिपाठी विगत तीन दशको से पत्रकारिता से जुड़े हैं। इन तीन दशकों में लगभग डेढ़-दो दशक गाजीपुर में रहते हुए आज, अमर उजाला, हिंदुस्तान के ब्यूरो चीफ रहे। कुछ वर्षों तक दैनिक जागरण से भी जुड़े रहे। प्रिंट के साथ ही इलेक्ट्रानिक चैनलों के लिए भी प्रोग्राम बनाते रहे। संप्रति वाराणसी में रहते हुए स्वतंत्र लेखन के माध्यम से काव्य और साहित्य सेवा के साथ ही पूर्वांचल दीप साप्ताहिक समाचार पत्र और पूर्वांचल दीप डाट काम से सम्बद्ध

No comments:

Post a Comment