Sunday, January 30, 2011

अमर उजाला के फोटोग्राफ़र रमेश चौहान के कान के पर्दे फटे : प्रशासन की चुप्पी से पत्रकार जगत में रोष व्याप्त : 2 फरवरी को जनपद के सभी पत्रकार निकलेगे मौन जुलूस : मुज़फ्फरनगर में वकीलों की मार का दंश झेल रहे अमर उजाला के रमेश चौहान और हिंदुस्तान के कैमरामैन मनीष चौहान की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है. डॉक्टरो ने जाँच के दौरान रमेश चौहान के दोनों कानों के पर्दों को फटा बताया है.
इस मामले में जनपद भर के पत्रकारों सहित कई सामाजिक और व्यापारिक संघटन एकजुट हो गये हैं. इन लोगों ने कार्यवाही न होने की स्तिथि में आगामी 2 फरवरी को मौन जुलूस और जिलाधिकारी कार्यालय पर जबदस्त धरना प्रदर्शन करने की घोषणा की है. इस मामले को लेकर रविवार को नगर के महावीर चौक के पास एक स्कूल में विभिन दैनिक समाचार पत्रों के प्रभारियो और पत्रकारों की बैठक हुई. इसमें निर्णय लिया गया कि अगर पुलिस इस मामले में दो दिन के अंदर रिपोर्ट दर्ज कर आरोपी वकीलों को जेल नही भेजती है तो 2 फरवरी को जनपद भर के पत्रकर टाउनहाल में इकट्ठा होंगे, जहां से मौन जुलूस निकालते हुए पत्रकारों का हुजूम डीएम ऑफिस पर जायेगा. वहां पर जबरदस्त धरना-प्रदर्शन किया जायेगा. इस जुलुस में विभिन सामाजिक, राजनेतिक और व्यापारिक संघटन एवं दल भी भाग लेंगे. साथ ही आरोपी वकीलों की प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया, बार संघ आदि में भी शिकायत की जाएगी.
वहीं दूसरी और डॉक्टरो ने बताया कि घायल रमेश चौहान के दोनों कानो के पर्दों में छेद हो गया है. उनका उपचार किया जा रहा है. अगर दवाइयों से ठीक नहीं हुए तो आपरेशन किया जायेगा. मनीष चौहान की हालत में भी कोई सुधार नहीं हुआ है. इतना सब कुछ होने के बावजूद जिला और पुलिस प्रशासन अभी मौन है. बैठक में मुख्य रूप से अमर उजाला प्रभारी ब्रजेश चौहान, जागरण प्रभारी नीरज गुप्ता, हिंदुस्तान प्रभारी नीरज गुप्ता, पश्चिम सन्देश सम्पादक रविंदर चौधरी,  मुज़फ्फरनगर बुलेटिन के प्रभारी अंकुर दुआ, शाह टाइम्स प्रभारी गुलफाम अहमद, टाइम्स ऑफ इंडिया प्रभारी वशिष्ठ भारद्वाज सहित अरविन्द भारद्वाज, राकेश शर्मा, अमित सैनी, अमित पुंडीर, सर्वेन्दर पुंडीर, नासिर खान, संजय झा सहित सैकड़ों पत्रकारों ने भाग लिया.
मुजफ्फरनगर से अमित सैनी की रिपोर्ट

अजीज बर्नी इन दिनों खबर में हैं.

अजीज बर्नी इन दिनों खबर में हैं. आज जनसत्ता अखबार में भी फ्रंट पेज पर अजीज बर्नी से संबंधित दो कालम की स्टोरी छपी है. इसके पहले कई जगहों पर अजीज बर्नी के खिलाफ खबरें छपती रही हैं. खासकर अपनी किताब को लेकर अजीज बर्नी बुरी तरह फंसे हैं जिसमें उन्होंने मुंबई पर आतंकी हमले में आरएसएस का हाथ होने का शक जताया था. उधर कहने वाले खुद अजीज बर्नी की आतंकी हमले में मिलीभगत बता रहे हैं क्योंकि आतंकी हमले के दिन बर्नी पाकिस्तान में थे.
खैर, ये तो बात आरोप-प्रत्यारोप की है लेकिन ताजी सूचना ये है कि अजीज बर्नी सबसे ज्यादा परेशान सहारा में खतरे में पड़ चुकी अपनी नौकरी को लेकर हैं. इसी नौकरी को बचाने के लिए अजीज बर्नी ने सहारा में फ्रंट पेज पर दो कालम का माफीनामा प्रकाशित कर अपनी किताब के लिए खेद जताया और भरपूर माफी की मांग की. पर इतने से लगता है बात नहीं बनती दिख रही है. ताजी सूचना ये है कि सहारा और अजीज बर्नी के खिलाफ राष्ट्रद्रोह समेत कई तरह के मुकदमे दायर कराने वाले मुंबई के विनय जोशी से भी अजीज बर्नी ने मेल कर माफी मांगी है. इस माफीनामें में खासबात ये है कि बर्नी ने ये जाहिर कर दिया है कि उनकी नौकरी खतरे में है क्योंकि किताब पर हुए मुकदमें के कारण कोर्ट ने जो गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया है, उससे परेशानी बढ़ी हुई है.
ज्ञात हो कि विनय जोशी की तरफ से उनके वकील प्रशांत मग्गू ने दो साल पहले अजीज बर्नी के खिलाफ मुकदमा दायर करना शुरू किया और एक के बाद एक कई मुकदमें दायर किए. भड़ास4मीडिया के पास अजीज बर्नी द्वारा विनय जोशी से मांगी गई माफी से संबंधित मेल मौजूद है. उसे हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं. पर बड़ा सवाल ये है कि माफीनामों की इस श्रृंखला के बावजूद अजीज बर्नी की नौकरी सहारा में बच पाएगी?
कभी सुब्रत राय सहारा के काफी करीबी रहे अजीज बर्नी के दिन उपेंद्र राय के आने के बाद से जो लदने शुरू हुए हैं तो वापस आने के नाम नहीं ले रहे. और, अपनी स्थिति मजबूत करने के चक्कर में जो माफीनामें अजीज बर्नी प्रकाशित करा रहे हैं, उससे उनकी स्थिति और खराब होती दिख रही है क्योंकि अब ये बात ज्यादा लोगों को पता चल चुकी है कि अजीज बर्नी ने कैसे कैसे आरोप किन किन पर लगाए और अब उन्हीं लिखे-पढ़े के लिए माफी मांगते घूम रहे हैं. अजीज बर्नी लंबी छुट्टी पर भेजे जा चुके हैं. देखिए, उनकी छुट्टी कब खत्म होती है या उनकी एकदम से छुट्टी हो जाती है. यहां हम अजीज बर्नी द्वारा विनय जोशी को प्रेषित मेल को प्रकाशित कर रहे हैं...

चंडीगढ़ : वयोवृद्ध पत्रकार बलराम दत्त शर्मा का आज लंबी बीमारी के बाद पंचकूला में उनके निवास पर निधन हो गया. वह लगभग ७० वर्ष के थे

चंडीगढ़ : वयोवृद्ध पत्रकार बलराम दत्त शर्मा का आज लंबी बीमारी के बाद पंचकूला में उनके निवास पर निधन हो गया. वह लगभग ७० वर्ष के थे तथा अपने पीछे चार पुत्र और एक पुत्री छोड़ गये हैं. उनका अंतिम संस्कार कल दोपहर १२ बजे मनीमाजरा के शहदाह गृह में किया जायेगा. बलराम दत्त शर्मा ने अपना करियर बीकानेर में १९६४ में जिला लोक संपर्क अधिकारी के तौर पर शुरू किया था. वहां वह १९७४ तक रहे. इसके पश्चात् १९७४ से १९७८ तक उन्होंने पंजाब केसरी, जालधंर में काम किया.
१९७८ में वह दैनिक ट्रिब्यून में उप संपादक के पद पर आये थे. वहां उन्होंने मुख्य संपादक, समाचार संपादक तथा वरिष्ठ सहायक संपादक के पद पर कार्य किया. वर्ष १९९९ से वर्ष २००४ तक वह दिव्य हिमाचल में समाचार संपादक के पद पर कार्य करते है। पत्र-पत्रिकाओं में बलराम दत्त शर्मा एक चर्चित नाम रहा है. दिल्ली प्रेस की पत्रिकाओं सरिता, मुक्ता आदि से वह लंबे समय तक जुड़े रहे. उनकी दिल्ली प्रेस में हजारों रचनाएं छपी हैं. बलराम दत्त शर्मा ने विदेश, राजनीति, फिल्मों आदि के विषय में अनेक पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख लिखे हैं. वह एक साहित्यकार और व्यंग्यकार भी रहे हैं. पंजाब विश्वविद्यालय के प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के लिए भी उन्होंने बहुत सारा साहित्य लिखा है.
वह पंजाब चंडीगढ़ पत्रकार परिषद के संस्थापक सदस्य भी रहे तथा इस संस्था के महासचिव भी रहे. पत्रकारिता और साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें कईं बार पंजाब एवं हरियाणा सरकारों द्वारा सम्मानित भी किया गया. हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने बलराम दत्त शर्मा के निधन पर शोक व्यक्त किया है. मुख्यमंत्री ने शोक संदेश में उन्हें एक प्रबुद्ध पत्रकार बताया जिन्हें उनकी निष्पक्ष लेखनी के लिए सदैव याद किया जाएगा. उन्होंने बताया कि बलराम दत्त शर्मा ने हिन्दी पत्रकारिता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया.  हुड्डा ने प्रार्थना की कि भगवान दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे. उन्होंने शोक संतप्त परिवार के सदस्यों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त की.
 

साधना न्यूज मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ के पॉलिटिकल एडीटर एसपी त्रिपाठी ने साधना न्यूज को अलविदा कह दिया है.

साधना न्यूज मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ के पॉलिटिकल एडीटर एसपी त्रिपाठी ने साधना न्यूज को अलविदा कह दिया है. एसपी त्रिपाठी ने शनिवार को साधना न्यूज के चेयरमैन दिनेश गुप्ता से दिल्ली में भेंट करने के बाद प्रबंधन अपना इस्तीफा सौंप दिया है. वे अपनी नई पारी की शुरुआत जल्द लांच होने वाले नेशनल हिंदी न्यूज चैनल 'न्यूज एक्सप्रेस' के साथ 'सेन्ट्रल इंडिया हेड' के रूप में करने जा रहे हैं.
एक फरवरी से वे भोपाल में अपने नए कार्यालय में कार्यभार संभालेंगे. एसपी त्रिपाठी पिछले 27 सालों से प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में हैं. साधना से पहले परख, सहारा समय के ब्यूरो चीफ और वीओआई में मप्र के स्टेट हैड के रूप में मुकेश कुमार के साथ काम कर चुके हैं. वीओआई के बाद प्रभात डबराल की टीम के साथ साधना न्यूज में पॉलिटिकल एडीटर के रूप में जुड़े थे. प्रभात डबराल के करीबी माने जाने वाले एसपी त्रिपाठी ने साधना को अलविदा कह एक बड़ा झटका प्रबंधन को दिया है.
प्रभात डबराल के साधना छोडने के बाद उनके करीबियों का साधना से जाने का दौर चल निकला है. इससे पहले बिहार-झारखंड के चैनल हेड शशि रंजन ने इस्तीफा देकर टोटल टीवी में वीपी के रूप में ज्वाइंन किया था.  कई सीनियर इन दिनों लंबी छुट्टी पर चले गए हैं. आने वाले समय में साधना न्यूज से कई विकेट गिरने की बात कही जा रही है.  इस संबंध में एसपी त्रिपाठी ने बताया कि मुकेश जी के साथ एक बार फिर उन्हें काम करने का मौका मिला है और उनके लिए एक नया अनुभव होगा

Friday, January 28, 2011

हृदय के पास 40 दिन से फंसा चाकू निकालकर दिया जीवनदान

Dr.palibal

एसीएमएम अजय पांडेय ने फर्जीवाड़ों के आरोपित वकील को फर्जी दस्‍तावेजों के आधार पर दी थी जमानत :

एसीएमएम अजय पांडेय ने फर्जीवाड़ों के आरोपित वकील को फर्जी दस्‍तावेजों के आधार पर दी थी जमानत : निशा की तरह गुनिंदर भी उनके फैसले के खिलाफ काट रही अदालतों के चक्‍कर : रॉ की पूर्व महिला अधिकारी निशा प्रिया भाटिया ही नहीं एक और पीड़ित महिला हैं जो एसीएमएम अजय पांडेय के फैसले के खिलाफ ऊंची अदालतों में चक्कर लगा रही हैं। बहुराष्ट्रीय बैंक में बड़े ओहदे पर रहीं गुनिंदर गिल के साथ धोखाधड़ी और शातिराना जालसाजी के आरोपित एक वकील को जज साहब ने जमानत दे दी, जिसे हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक से जमानत नहीं मिली थी।
एसीएमएम अजय पांडेय ने उस वकील के जिन दस्तावेजों को जमानत का आधार बनाया, वे दस्तावेज ही फर्जी थे। दस्तावेज इतने फर्जी थे, जिसे देखकर कोई भी कानून का जानकार पहली नजर में ही भांप जाता कि इसमें गड़बड़झाला है। इतना ही नहीं एसीएमएम पांडेय ने शिकायतकर्ता गुनिंदर गिल को ही फर्जीवाड़ा करने के आरोप में जेल भेजने की चेतावनी दे डाली। गुनिंदर का आरोप है कि वकील की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए जज ने कहा कि मेरा दिल करता है कि मैं इसे जमानत दे दूं, मैं किसी से नहीं डरता, सुप्रीम कोर्ट से भी नहीं। कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। फर्जीवाड़ा करने के आरोपित वकील बीएन सिंघवी को इस तरह से जमानत देने की शिकायत ले कर गुनिंदर तीस हजारी स्थित सीएमएमए कावेरी बावेजा के यहां पंहुची, लेकिन उनकी अर्जी को तकनीकी आधार पर इसलिए खारिज कर दिया गया क्योंकि अभियोजन निदेशालय के इस बाबत अनुमति के एक पृष्ठ पर दस्तखत नहीं थे। गुनिंदर ने इस मामले की शिकायत हाईकोर्ट से की है, जो अभी लंबित है।
दरअसल मामला कुछ इस तरह का है कि शिकायतकर्ता ने जो कि भारत में एक जर्मन बैंक शाखा में निदेशक के पद पर थीं, अपने सहयोगी के साथ सिंगापुर ट्रेनिंग में गई थीं। वहां उन्होने पाया कि भारतीय अधिकारी व उनके साथ नस्ली भेदभाव किया जा रहा है। जब उन्होने इसकी शिकायत जर्मनी स्थित अपने निदेशक स्तर के अफसर से की, तो वहां उनको सही ठहराया गया। इसी के चलते उन्होंने अपने वकील बीएन सिंघवी (अब आरोपित) द्वारा जर्मनी में मुकदमा दायर करवा दिया। इसके लिए उनके वकील ने आठ बार जर्मनी व एक बार सिंगापुर जाने के खर्चे के अलावा मोटी फीस वसूली। इस मामले में उस पर आरोप है कि वह वहां के वकील के साथ मिल कर उन्हें मिले मुआवजे की करोड़ों की रकम की बाबत समझौता कर बैठा। बाद में गुनिंदर की शिकायत पर दिल्ली में मामला दर्ज किया गया और 10 अगस्त 2004 को आरोपित बीएन सिंघवी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
अदालत में लंबित मामले की सुनवाई के दौरान यह बात सामने आयी कि वकील पर न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के आधार पर फर्जीवाड़ा करने का आरोप है बल्कि फर्जीवाड़े के करीब सात मामले दर्ज हैं। इसी आरोपित वकील के खिलाफ जब एसीएमएम पांडेय के यहां दो जून 2009 को जब जमानत अर्जी संबंधी सुनवाई चल रही थी, तो सरकारी वकील ने दलील दी कि आरोपित पर गंभीर मामले लंबित हैं और उसने जेल में रह कर शिकायती महिला को भी धमकी दी है, ऐसे आरोपित को जमानत नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन गुनिंदर के आरोप के अनुसार, जज पांडेय उसको जमानत देने पर तुले हुए थे और उनके मना करने के बावजूद सोसायटी के फर्जी दस्तावेजों को आधार मान कर आरोपित को जमानत दे दी गयी। सोसायटी के उस दस्तावेज में दरअसल यह साबित करने की कोशिश की गयी थी कि गुनिंदर, उनके पिता आदि उस सोसायटी के मेंबर हैं और वकील सिंघवी उस सोसायटी का सचिव है। कुल मिला कर सोसायटी के झगड़े के चलते गुनिंदर जानबूझ कर सिंघवी को दूसरे मामले में फंसा रहीं हैं।
एसीएमएम की अदालत में गुनिंदर ने जज साहब से फरियाद की कि कथित सोसायटी के दस्तावेज फर्जी हैं और उस पर उनके पिता के फर्जी हस्ताक्षर हैं, परंतु उनकी फरियाद ठुकरा दी गयी। इतना ही नहीं गुनिंदर के अनुसार, जज पांडेय ने अदालत में कहा कि उक्त सोसायटी के दस्तावेज न्यायिक फाइल में है हीं नहीं। लेकिन जब गुनिंदर गिल ने इसके लिए कोर्ट से प्रमाणित प्रति निकलवायी तो यह साबित हो गया कि उक्त दस्तावेज अदालत की फाइल में ही मौजूद थे, जिसे जज पांडेय इनकार कर रहे थे। इस बात की और तस्दीक करने के लिए गुनिंदर ने आरटीआई का भी सहारा लिया, जिसमें स्वीकार किया गया कि संबंधित दस्तावेज फाइल में मौजूद हैं। और तो और रजिस्ट्रार ने भी कथित सोसायटी के दस्तावेजों को फर्जी करार दे दिया। गुनिंदर ने इस मामले में एसीएमएम अजय पांडेय के खिलाफ हाईकोर्ट में शिकायत करते हुए आरोप लगाया है कि उन्होने आरोपित वकील के साथ सहानुभूति दिखायी और इसके चलते सरकारी वकील (उनके) के ऊपर दो हजार रुपए जुर्माना भी लगा दिया (बाद में सरकारी वकील की अर्जी पर सेशन कोर्ट ने जुर्माने को खारिज कर दिया था)। आरोप है कि एसीएमएम ने केस की गंभीरता से नहीं लिया। हमारे संवाददाताओं ने एसीएमएम अजय पांडेय से इस बाबत कई बार बात करने की कोशिश की, लेकिन वे उपलब्ध नहीं हो सके। (साभार : राष्‍ट्रीय सहारा)

भरी अदालत में कपड़े उतारने पर क्‍यों मजबूर हुई रॉ की पूर्व अधिकारी निशा प्रिया भाटिया : निशा ने तत्‍कालीन संयुक्‍त सचिव और सचिव पर लगाया था यौन शोषण का आरोप : सुप्रीम कोर्ट, पीएमओ और महिला आयोग में भी लगाई थी गुहार : न्‍याय न मिलने पर पीएमओ के सामने खुदकुशी का भी प्रयास किया

भरी अदालत में कपड़े उतारने पर क्‍यों मजबूर हुई रॉ की पूर्व अधिकारी निशा प्रिया भाटिया : निशा ने तत्‍कालीन संयुक्‍त सचिव और सचिव पर लगाया था यौन शोषण का आरोप : सुप्रीम कोर्ट, पीएमओ और महिला आयोग में भी लगाई थी गुहार : न्‍याय न मिलने पर पीएमओ के सामने खुदकुशी का भी प्रयास किया : देश की सबसे महत्वपूर्ण खुफिया एजेंसी रॉ की पूर्व महिला अधिकारी, जिसने विभाग में अपनी प्रशासनिक कार्यकुशलता से सबको हैरान कर दिया था, आखिर भरी अदालत में अर्धनग्न होने के लिए क्यों मजबूर हुई।
हालांकि हाईकोर्ट ने पहली नजर में इस पूर्व महिला अधिकारी की मानसिक स्थिति को ठीक न मानते हुए शाहदरा स्थित मानव व्यवहार व संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) भेजने का आदेश दे दिया, जहां उन्हें भर्ती कर लिया गया है। बेहद प्रतिभाशाली यह पूर्व महिला अधिकारी क्या वाकई में मानसिक झंझावातों के चलते अपना दिमागी संतुलन खो चुकी है, इसकी रिपोर्ट तो इहबास ही देगा। दरअसल, पूर्व महिला अधिकारी निशा प्रिया भाटिया ने हाईकोर्ट में पटियाला हाउस अदालत के तत्कालीन एसीएमएम अजय पांडेय व एक अन्य मजिस्ट्रेट के खिलाफ शिकायत कर रखी थी। साथ ही उनकी मांग थी कि उनके खिलाफ वर्ष 2008 में पीएमओ के समक्ष खुदकुशी के प्रयास का जो मामला अदालत में चल रहा है, उसका जल्द से जल्द निपटारा किया जाए। बाद में हाईकोर्ट में उन्होंने एसीएमएम अजय पांडे के खिलाफ अपनी शिकायत तो जारी रखी लेकिन मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट प्रीतम सिंह का नाम हटवा दिया। न्यायमूर्ति अजीत भरिहोक की पीठ के समक्ष दायर मामले में निशा प्रिया भाटिया ने आरोप लगाया है कि तत्कालीन एसीएमएम अजय पांडेय बजाय उनकी शिकायत सुनने के, उन्हें रविंद्रनाथ टैगोर व स्वामी विवेकानंद के किस्से सुनाते रहे, जिनका पूरा सार यह था कि समाज के कल्याण के लिए लड़ाई जारी रखो।
निशा ने हाईकोर्ट के प्रशासनिक विभाग में अजय पांडेय के खिलाफ यह शिकायत कर रखी थी कि वह 6 मई 2009 को उनकी अदालत में पेश हुई थी, लेकिन सुनवाई करने के बजाए उन्होंने यह कहा कि वह अगली तारीख डालने जा रहे हैं। इस पर निशा ने अनुरोध किया वह उनके मामले की सुनवाई करें और उनकी तत्कालीन रॉ सचिव अशोक चतुव्रेदी व संयुक्त सचिव सुनील उके के खिलाफ जो 232 पृष्ठों की सेक्सुअल हरॉसमेंट की शिकायत है, उसे भी रिकार्ड पर ले लें। लेकिन अदालत ने पहले तो ऐसा करने से मना कर दिया लेकिन बाद में वह दस्तावेज ले लिए और सरकारी वकील से भी कहा कि वह भी एक प्रति रख लें। इसके बाद इस मामले की सुनवाई के लिए 4 जुलाई 2009 की तारीख लगा दी गई। चार जुलाई को जब निशा अपने मामले की सुनवाई के लिए इंतजार कर रही थीं, तभी सरकारी वकील अंजू राठी राना ने उन्हें बताया कि 2 जुलाई को उनके पास एक महिला का फोन आया था, जिसने बताया कि वह रॉ से बोल रही है। यह फोन उनके मोबाइल पर आया था और प्राइवेट नंबर शो कर रहा था। सरकारी वकील ने बताया कि फोन करने वाली महिला ने अपना नाम तारा बताया और वह केस के बारे में पूछ रही थी। इस पर निशा ने अदालत से कहा कि वह अपना केस लड़ना चाहती है।
निशा का एसीएमएम के खिलाफ यह आरोप है कि उन्होंने बिना किसी चार्जशीट के महिला कांस्टेबल से पकड़वा कर उन्हें नारी निकेतन भेजने का आदेश कर दिया। हालांकि अदालत के रिकार्ड के अनुसार जब उस दिन सुनवाई शुरू हुई तो निशा ने शोर मचाना शुरू कर दिया और कहा कि ‘यह मामला आज खत्म नहीं होता तो वह अपना जीवन आज ही खत्म कर देगी और किसी बिल्डिंग से कूद जाएगी। उसने चिल्ला कर कहा कि आज के बाद हिंदुस्तान की रूह कांपेगी और मैं हर औरत को इंसाफ दिलाउंगी।' निशा को आपे से बाहर होता देख अदालत ने निशा को समझाने की कोशिश की लेकिन तब भी बात नहीं बनी तो सुरक्षा के मद्देनजर उन्हें नारी निकेतन भेजने की बात कही। निशा की इसी शिकायत की बाबत बृहस्पतिवार को हाईकोर्ट में सुनवाई होनी थी लेकिन तारीख आगे बढ़ाने के चलते निशा ने भरी अदालत में वह हरकत कर डाली, जिसे कोई सभ्य समाज मान्यता नहीं देता। निशा की मानसिक स्थिति क्या है, इसकी रिपोर्ट इहबास को अगली सुनवाई के दिन हाईकोर्ट में पेश करनी है।
सेंट स्टीफंस कॉलेज से पढ़ी रॉ की पूर्व महिला अधिकारी निशा प्रिया भाटिया क्या वास्तव में अपनी सोच-समझ खो चुकी थीं या अपने वरिष्ठ अधिकारियों पर लगाए यौन उत्पीड़न की शिकायत पर कोई कार्रवाई न होने से इतना परेशान हो गई थीं कि व्यवस्था से उनका मोहभंग हो गया। जब उनके द्वारा की गई शिकायत पर आरोपितों के खिलाफ कुछ नहीं किया गया तो वह अपना आपा खो बैठीं और पीएमओ के समक्ष खुदकुशी का प्रयास तक कर बैठीं। इस मामले में उनके खिलाफ आत्महत्या की कोशिश करने का मामला दर्ज हो गया और जब वह अदालत पहुंची तो उन्हें लगा कि उसका विभाग वहां भी अपना प्रभाव जमाने की कोशिश कर रहा है। निशा के अनुसार लाख गुहार करने पर भी उनकी शिकायत नहीं सुनी गई और अदालत ने उन्हें ही नारी निकेतन भेजने का आदेश दे दिया।
अदालत के इस रवैये से त्रस्त होने के बाद उन्होंने तत्कालीन एसीएमएम अजय पांडेय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णनन से भी न्याय की गुहार की। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को 28 नवम्बर 2009 को लिखी शिकायत में उन्होंने कहा कि वह रॉ में 1987 बैच की क्लास वन अफसर है। अक्टूबर 2007 में उसने विभाग के सचिव अशोक चतुव्रेदी के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी। शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। मेरा संघर्ष इसलिए था कि विभाग में महिलाओं को सुरक्षित माहौल मिले। न्याय न मिलने पर मैं पीएमओ के समक्ष खुदकुशी का प्रयास तक कर बैठी। इस बाबत दर्ज धारा 309 के तहत जब मामला तत्कालीन एसीएमएम अजय पांडेय की अदालत में चल रहा था तो उनका व्यवहार गैर जिम्मेदाराना व अदालत के मानदंडों के अनुरूप नहीं रहा। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को लिखी शिकायत में 4 जुलाई 2009 की घटना बताते हुए निशा ने कहा कि बिना चार्जशीट व संबंधित दस्तावेज दिए हुए अदालत ने वहां मौजूद सरकारी वकील डाक्टर अंजू राना राठी को कहा कि मुझे नारी निकेतन भेजने का इंतजाम किया जाए।
निशा भाटिया ने आरोप लगाया कि एसीएमएम ने जानबूझ कर ऐसा आदेश लिखवाना शुरू कर दिया ताकि उसे नारी निकेतन भेज दिया जाए। निशा का आरोप है कि यह सब सजा उसे सिर्फ इसलिए दी जा रही है, क्योंकि उसने अशोक चतुव्रेदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। पत्र में निशा ने कहा है कि उसने तत्कालीन एसीएमएम के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर रखी है, जिसमें कहा गया है कि एसीएमएम ने प्रेरित होकर दुर्भावना के तहत उसे ह्यूमिलेट किया है। पत्र में एसीएमएम के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करते हुए यह भी आरोप लगाया गया है कि एक भी सुनवाई कानून के दायरे में नहीं की गई है। पत्र में कहा गया कि मुझे नारी निकेतन सिर्फ इसलिए भेजा गया, क्योंकि मेरे विभाग से तत्कालीन सरकारी वकील के पास फोन आ गया था। पत्र में कहा गया है कि यह बात झकझोर देने वाली है कि एक न्यायिक अधिकारी बजाय न्याय करने के अदालत में बैठ कर एक यौन उत्पीड़न की शिकार बनी महिला को आध्यात्मिक गुरु की तरह उपदेश दे रहा है। इसके साथ ही शिकायत में एसीएमएम द्वारा दिए आदेशों की प्रति भी शामिल की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जवाब देते हुए कहा कि फिलहाल मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में लंबित है, इसलिए कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
रॉ की पूर्व महिला अधिकारी निशा प्रिया भाटिया ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत पर जांच कराने के लिए हर संभव कोशिश की थी। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, यूपीए चेयरमैन सोनिया गांधी, राष्ट्रीय महिला आयोग, तत्कालीन मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबउल्लाह आदि सबसे फरियाद की थी लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। इस बीच रॉ से उन्हें न सिर्फ निलंबित कर दिया गया, बल्कि रिटायरमेंट लेने की सलाह भी दी गई। यह ब्यौरा निशा भाटिया ने हाईकोर्ट में दायर अपनी मूल याचिका (तत्कालीन एसीएमएम अजय पांडेय व अन्य के खिलाफ) में दिया है। निशा का आरोप है कि रॉ के एक सीनियर अधिकारी ने ही उनका यौन उत्पीड़न किया। यह अधिकारी उनके साथ सेंट स्टीफंस कॉलेज में था। अधिकारी के खिलाफ विभागीय जांच के लिए उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी लेकिन गोपनीयता के नाम पर उन्हें जांच रिपोर्ट नहीं दी गई।
हाईकोर्ट में एसीएमएम अजय पांडेय व अन्य के खिलाफ दायर याचिका में निशा भाटिया ने कहा है कि उनका विभाग में सेवा का बीस साल का बेहतरीन रिकार्ड है। उनकी दो बेटियां हैं, जिनकी उम्र 20 व 17 साल है। उन्होंने विभाग में सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेशन ऑफ वूमेन एम्लाइज के विषय पर 26 अक्टूबर 2007 को एक ज्ञापन दिया था। उनकी मांग थी कि सुप्रीम कोर्ट के विशाखा मामले में दिए निर्देश को विभाग में भी लागू किया जाए। इसके बाद उन्होंने 2007 में विभाग के सचिव अशोक चतुव्रेदी व अन्य के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी। 18 व 20 दिसम्बर 2007 को उन्हें विभाग से दो पत्र मिले, जिसमें उन्हें सबूतों के साथ पेश होने को कहा गया। इस पर उन्होंने इसलिए पेश होने से इनकार कर दिया था, क्योंकि जांच कमेटी मेंबर चतुव्रेदी से पद में जूनियर थे। निशा की हाईकोर्ट में दायर याचिका में दलील थी कि एक जूनियर अधिकारी अपने से सीनियर अधिकारी की जांच कैसे कर सकता है, जबकि इसमें किसी र्थड पार्टी (स्वयंसेवी संस्था) को भी शामिल नहीं किया गया। इसके बाद उन्हें पता चला कि उनके फोन की टैपिंग की जा रही है। इस पर उन्होंने अपनी शिकायत की बाबत प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की। 10 अप्रैल 2008 को सेक्रेटरी (पीजी एंड कूड) डा. रेणुका विनाथन ने उन्हें समन कर ऑफिस में बुलाया और कहा कि उनकी शिकायत पर जांच शुरू कर दी गई है। इस बीच 23 जुलाई 2008 को उनके ऑफिस में यह आरोप लगाते हुए रेड की गई कि स्थापित नियमों का पालन नहीं किया गया है। इसकी शिकायत राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती गिरिजा व्यास को की गई, जिस पर उन्होंने मदद करने का आश्वासन दिया।
याचिका में कहा गया कि 20 व 31 अगस्त 2008 के बीच उनसे आधिकारिक जिम्मेदारियां ले ली गई और उनके ऑफिस को सील कर दिया गया, जिसमें उनका निजी सामान भी था। जब उन्होंने ऑफिस में प्रवेश करना चाहा तो एसएबी कमांडरों ने उन्हें रोक दिया। बाद में उन्हें मार्च 2009 में जांच कमेटी की सदस्य इंदू अग्निहोत्री ने बताया कि उनकी शिकायत पर जांच 31 जनवरी 2009 को पूरी हो गई थी और उसके सीनियर अशोक चतुव्रेदी को दोषी नहीं पाया गया है। बाद में इस जांच रिपोर्ट की प्रति पाने के लिए राष्ट्रपति भवन स्थित पीजी एंड कूड विंग को पत्र व फोन से माध्यम से दरख्वास्त की गई, लेकिन जब कुछ हासिल नहीं हुआ तो 2 अप्रैल 2009 को मुख्य सूचना अधिकारी के यहां जांच की प्रति देने का निर्देश देने की मांग निशा ने की। उनकी अर्जी को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया गया। इसके बाद परेशान होकर वह कैबिनेट सेक्रेटरी केएम चंद्रशेखर से भी मिली और उन्हें बताया कि यौन उत्पीड़न का विरोध करने पर उन्हें अशोक चतुव्रेदी के अनुमोदन पर नौकरी से डिसमिस कर दिया गया है। इस पर चंद्रशेखर ने आश्‍वासन दिया कि वे मामले को देखेंगे। इसी तरह के विभिन्न वायदों से तंग आकर आखिर में निशा ने पीएमओ के समक्ष खुदकुशी का प्रयास किया, जिसके चलते उनके खिलाफ थाने में मामला दर्ज कर लिया गया। फिलहाल यह मामला हाईकोर्ट में लंबित है और मामले की सुनवाई जारी है। रॉ की पूर्व महिला अधिकारी द्वारा लगाए गए विभिन्न लोगों के खिलाफ आरोप में कितनी सचाई है यह तो हाईकोर्ट के फैसले से ही पता चलेगा। (साभार : राष्‍ट्रीय सहारा)

झारखंड में युवाओं को रोजगार देने के नाम पर ठगी का कारोबार चलाया जा रहा है.

झारखंड में युवाओं को रोजगार देने के नाम पर ठगी का कारोबार चलाया जा रहा है. और यह कारनामा किया जा रहा है दुनिया की सबसे बड़ी साफ्टवेयर निर्माता कंपनी माइक्रोसॉफ्ट में नौकरी दिलाने के नाम पर. और इस विज्ञापन को प्रकाशित किया है खुद को दुनिया का सबसे बड़ा अखबार कहने वाले दैनिक जागरण ने. कंपनी के नाम पर कई पदों पर वैकेंसी के लिए विज्ञापन जारी किया गया है.
विज्ञापन में 18 से 30 साल के युवाओं से माइक्रोसॉफ्ट प्राइवेट लिमिटेड की तरफ से आवेदन मांगे गए हैं. यह विज्ञापन झारंखड में दैनिक जागरण के कई एडिशनों में छपा है. माइक्रोसॉफ्ट के नाम पर जारी विज्ञापन में कुल 2600 पदों के लिए आवेदन मांगे गए हैं. जिसमें जूनियर ऑफिसियल के 1250 पद और जूनियर टेक्निकल के 1350 पदों पर नियुक्ति करने की बात कही गई है. विज्ञापन में बताया गया है कि नियुक्ति इंटरव्यू के माध्‍यम से होगी. इसके लिए आवेदक की न्‍यूनतम शैक्षणिक योग्‍यता 40 प्रतिशत अंकों के साथ किसी भी विषय से इंटमीडिएट होना विज्ञापनआवश्‍यक है. दिलचस्‍प तथ्‍य यह है कि इस विज्ञापन में ये भी कहा गया है नियुक्ति प्रक्रिया से पूर्व कंपनी आवेदक को तीन से छह माह की ट्रेनिंग अपने खर्च पर देगी. चयनित युवाओं को कंपनी 35000 से 65000 रूपये के बीच वेतन देगी. इसके अतिरिक्‍त आवास एवं भोजन सुविधा मुफ्त में मिलेगी सो अलग.
अब आते हैं इस विज्ञापन की कहानी पर. माइक्रोसॉफ्ट के नाम से प्रकाशित इस विज्ञापन में न तो कंपनी का लोगों लगा है और ना ही उसके मुख्‍यालय या स्‍थानीय कार्यालय का पता दर्ज है. विज्ञापन में आवेदकों से आवेदन शुल्‍क के नाम पर 550 रूपये बैंक ऑफ इंडिया के एकाउंट में जमा कराने का भी दिशानिर्देश दिया गया है. चौंकाने वाली बात यह है कि यह एकाउंट कंपनी के नाम से नहीं बल्कि किसी विशाल कुमार नामक सज्‍जन के नाम से है. प्रश्‍न यह है कि क्‍या इतनी बड़ी कंपनी अपने आधिकारिक एकाउंट के बदले किसी निजी एकाउंट से आवेदन शुल्‍क मांगेगी! विज्ञापन में आवेदन शुल्‍क जमा कराने के बाद रसीद और अन्‍य कागजात दिल्‍ली के कालका जी में पोस्‍ट बाक्‍स नम्‍बर 31 या फिर mlpscompany@gmail.com This e-mail address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it पर भेजने के निर्देश दिए गए हैं. जबकि माइक्रोसॉफ्ट का भारत में मुख्‍यालय बंगलुरु में है. विज्ञापन में दिया गया मेल भी आधिकारिक नहीं है. जबकि अधिकांश बड़ी कं‍पनियां अपना आधिकारिक ई-मेल आईडी देती हैं. इन सभी तथ्‍यों से स्‍पष्‍ट है कि माइक्रोसॉफ्ट के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाकर ठगने का प्रयास किया जा रहा है. जिसमें चंद रूपये के बदले विश्‍व का सबसे बड़ा अखबार भी भागीदार बन गया है.
सबसे प्रमुख बात यह है कि यह मीडिया समूह या इसके कर्ताधर्ता इस विज्ञापन को जारी करने से पहले किसी तथ्‍य पर ध्‍यान नहीं दिया. या इन लोगों को इस विज्ञापन में कोई कमी नजर नहीं आई अथवा धन के नाम पर इसकी अनदेखी कर दी गई. पूरा मामला सामाजिक दायित्‍व और विश्‍वसनीयता का है. क्‍या कुछ रूपये के बदले किसी भी बड़े अखबार में ठगी के धंधे का विज्ञापन छपवाया जा सकता है? क्‍या पैसे के लिए अखबार सारे मूल्‍यों की तिलांजलि दे सकते हैं? अगर युवा इस विज्ञापन पर भरोसा करके आवेदन राशि जमा करा दी और लूट लिए गए तो इसके लिए कौन जिम्‍मेदार होगा? क्‍या अखबार के किसी कोने में 'अपने स्‍तर से जांच-परख कर विज्ञापनों पर भरोसा करें' जैसे वाक्‍य लिख दिए जाने से ये अबखार अपने नैतिक एवं सा‍माजिक मूल्‍यों से बरी हो जायेंगे! इस विज्ञापन पर माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के लीगल सेल ने आश्‍चर्य जताया है. कंपनी ने इस मामले पर कानूनी कार्रवाई भी करने की बात कही है.

कैट-सल्लू के साथ सेक्स करने की क्यों है

कंडोम कंपनी के सेक्स सर्वे के निहितार्थ : कैट-सल्लू के साथ सेक्स करने की क्यों है ख्वाहिश : गज़ब अंतरविरोधों भरी दुनिया है. जनता के लिए नियम कानून अलग और धनपशुओं के लिए अलग. इसीलिए तो एक धनपशु सैकड़ों लड़कियों के साथ सेक्स करने के बाद भी पब्लिक फीगर बना रहता है और एक बेचारा गांव से आया कोई नौजवान या कोई शहरी माडर्न मिडिल क्लास टीनएज किसी एक छोकरी पर मर मिटने के जुर्म में जेल की हवा खाने लगता है.
क्योंकि वो छोकरी को पैसे से नहीं, दिल से चाहता था और छोकरी को दिल नहीं, पैसा चाहिए था, सो उसकी चाहत को अपराध घोषित कर दिया. यहां हम साफ कर दें कि छोकरी का मतलब सिर्फ उन लड़कियों से है जो अपना देह बेचती हैं, पैसे वालों को, पैसे के लिए, और किसी गरीब को प्यार के इजहार के बदले थप्पड़ लगा देती हैं क्योंकि वे माडर्न कालगर्ल होती हैं जिन्हें ऐशो-आराम भरी जिंदगी चाहिए, तुरंत, किसी भी कीमत पर. आए दिन ऐसी घटनाएं, खबरें पढ़ने सुनने को मिलती रहती हैं. पर धनपशु के लिए खूबसूरत बालाएं पैसे के दम पर उपलब्ध हैं. कई अभिनेत्रियां लाखों लेकर सेक्स को तैयार रहती हैं, इससे संबंधित स्टिंग भी टीवी चैनलों पर आ चुके हैं.
ये बाजार है और इसका दर्शन भी भरपूर बाजारू है. कंडोम बेचने वाली कंपनियों को शरीफ सेक्स में भरोसा नहीं है. वे यौन उत्तेजना को भड़काने में लगी रहती हैं, वे फटाफट सेक्स, जहां चाहे वहां सेक्स को प्रमोट करती रहती हैं पर उनका एक ही कहना होता है कि कंडोम का इस्तेमाल जरूर करें वरना गड़बड़ हो जाएगा, एड्स हो जाएगा और घुट घुट कर भयानक तरीके से मरेंगे. ध्यान दें, पहले उकसाना, फिर डराना, फिर माल बेचना. कंडोम कंपनियों में बड़ी बेचैनी है. भारत की शराफत उन्हें रास नहीं आ रही क्योंकि लोग धड़ाधड़ कंडोम नहीं खरीदते. पर अब जमाना बदल रहा है.
नई पीढ़ी पूरी बाजारू ट्रेनिंग लेकर मैदान में आ चुकी है. शराफत को वो समाजवादी दौर, नैतिकता का वो गांधीवादी दौर जाने कबका खत्म हो गया. जिनमें कुछ बचा है तो वो जीवन के उत्तरार्ध में पहुंचे हुए हैं, उनके लिए यौनेच्छा शांत करने से ज्यादा जरूरी गृहस्थी को बचाना, बनाना व बढ़ाना है. सो, कंडोम कंपनियों की युवाओं के बीच चांदी हो रही है. वे अपने सर्वे से नौजवानों के दिमाग में यह बिठाने में सफल हो चुकी हैं कि चाहे जिसके साथ सेक्स करो, कोई गलत नहीं है, बस कंडोम साथ रखो. नौजवान मन ही मन कैटरीना कैफ से सेक्स करने लगते हैं. युवतियां आंख बंद कर सलमान खान को बाहों में जकड़ रही होती हैं. अभी के पहले ऐसे खयाल दिमाग में आने पर युवक-युवती व इनके मां-पिता इसे भटकाव मानते थे, और मन को बुरी चीजों से हटाकर अच्छे कामों में लगाने के बारे में सोचते थे, वह एक एक्स्ट्रीम था जहां सेक्स पर सोचना गुनाह था, जहां सेक्स को जीवन का हिस्सा मानना गुनाह था, तभी तो देहातों में कई ऐसे किस्से होते हैं कि रात सबके सोने के बाद पुरुष घरवाली के घर में घुसता था और सबके जगने के पहले निकल भागता था, जैसे कुछ हुआ ही न हो और घर वाले भी सब जान के इस दर्दनाक दर्शन से अनजान बने रहते थे.
कम से कम अब मां-पिता यह कबूल तो करने लगे हैं कि बेटा का शादी हुआ है तो वह रात में अपनी पत्नी के साथ ही सोएगा. पर अब जो नई एक्स्ट्रीम डेवलप हो रही है, जो यूरोप में लोप की तरफ है, क्योंकि वहां देह में अब किसी का दिल नहीं लगता, स्त्री देह और पुरुष देह, दोनों ने एक दूसरे की हदें जान ली हैं या बचपन से जान लेते हैं, सो, कोई रस, कोई इच्छा, कोई लालसा देह को लेकर नहीं बची होती है पर यहां तो देह के लिए बचवा से लेकर बुढवा तक पगलाए रहते हैं क्योंकि देह का दर्शन बाजार तेजी से फैला रहा है ताकि उसके देह से संबंधित सारे माल बिकें, सेक्सी मोबाइल से लेकर सेक्सी परफ्यूम तक, कंडोम से लेकर वियाग्रा तक.
इस नए माहौल में, जहां कंडोम कंपनियां सेक्स सर्वे कराकर बताती हैं कि महिलाएं अधेड़ माल्या से लेकर सलमान व धोनी तक से सेक्स कराने को आतुर हैं और पुरुष कैटरीना से लेकर बिपाशा तक से संबंध बनाने को इच्छुक हैं, वहां अब पिता के साथ बेटा भी आंखें बंद कर कैटरीना के बारे में सोच रहा होता है और मां के साथ बेटी भी सल्लू के मसल्स के जरिए उसके शरीर के हर हिस्से का नाप-तौल कर रही होती हैं. तो अब वह दीवार टूट चुकी है जिसे हम श्रेष्ठ भारतीय सभ्यता और संस्कृति कहकर गर्वान्वित हुआ करते थे.
कम से कम शहरों में तो टूट ही गई है और देहातों में भी वर्जनाओं के सामूहिक विसर्जन का उत्सव जोरों पर चल रहा है. कंडोम कंपनी के सर्वे को पढ़िए, संभव है पहले ही पढ़ चुके होंगे, क्योंकि इसे ज्यादातर अखबारों, पत्रिकाओं और पोर्टलों ने प्रकाशित किया है, क्योंकि कंडोम का विज्ञापन बहुत रेवेन्यू देता है सभी को. इस खबर को पढ़ने के बाद ये जरूर सोचें कि इस खबर को कितने शातिर तरीके से प्लांट कराया गया है क्योंकि इस प्रायोजित खबर से कंडोम के बाजार में भरपूर उछाल आएगा और आपकी सुसुप्त इच्छाओं में हवाई जहाज वाले सेक्सी पंख लग जाएंगे.
खबर इस प्रकार है...
''मुंबई। कैटरीना कैफ का हॉट और सेक्सी अंदाज यदि बॉलीवुड में अपने जलवे बिखेर रहा है तो उनके एक्स ब्वॉयफ्रैंड सलमान खान के "किलर लुक" का भी क्रेज कम नहीं हुआ है। शायद यही कारण है कि देश के अधिकतर मर्द और औरतें इन दोनों स्टार्स के साथ सेक्स करने की ख्वाहिश रखते हैं। हाल ही में एक मशहूर कंडोम कंपनी ने एक सर्वे कराया जिसमें लोगों से पूछा गया था कि कि वह किस प्रसिद्ध हस्ती के साथ सेक्स करने की इच्छा रखते हैं तो अधिकतर मर्दो ने कैटरीना कैफ का नाम लिया जबकि महिलाओं की जुबां पर सलमान खान का नाम था। कंपनी ने भारत के सात शहरों में 18-45 आयु वर्ग के लोगों के बीच यह सर्वे किया। इनसे पूछा गया था कि खेल, राजनीति, ग्लैमर, बिजनेस से जुड़ी मशहूर हस्तियों में किसे अपना सेक्स पार्टनर बनाना चाहेंगे। ज्यादातर पुरूषों ने कैट को वोट दिया जबकि महिलाओं ने सलमान के साथ हमबिस्तर होने की इच्छा जताई। शादीशुदा होने के बावजूद भी ऎश्वर्या राय दूसरे पायदान पर हैं। बंगाला बाला बिपाशा बासु भी दूसरे नंबर पर रहीं। टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा, दीपिका पादुकोण, सोनम कपूर, आईटम गर्ल राखी सावंत और बैडमिन्टन चैम्पियन सायना नेहवाल को भी वोट दिए गए हैं। सलमान पर मर मिटने वाली लड़कियों ने रणबीर कपूर को दूसरे नंबर पर रखा। किंग खान शाहरूख खान तीसरे और क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी चौथे नंबर पर रहे। इन अभिनेताओं के अलावा महिलाओं की रितिक रौशन, राहुल गांधी, इमरान हाशमी, सैफ अली खान और इमरान खान व युवराज सिंह को भी सेक्स पार्टनर बनाने की ख्वाहिश है। बॉक्सर विजेन्दर सिंह, शूटर अभिनव बिन्द्रा, क्रिकेटर विराट कोहली और जूनियर सिद्धार्थ माल्या भी इस सूची में है।''
पढ़ लिया आपने. कापी एडिटर ने अपने शब्दों व कापी के ज्ञान को उड़ेल कर रख दिया है इस खबर को लिखने में. चलिए, इस कापी के दूसरे पक्ष के बारे में कुछ और बात कर लेते हैं. बाजार गड़बड़ियां फैला रहा है मुनाफा कमाने के लिए, माल बेचने के लिए पर कुछ अच्छे काम भी अनजाने में कर दे रहा है. जैसे सेक्स को सर्वाधिक गोपनीय विषय से आम बातचीत का विषय बना रहा है. लेकिन बस इसकी दशा दिशा गड़बड़ है. सेक्स को सनसनी की तरह परोसना खराब है. जानवर और मनुष्य की जो बेसिक इंस्टिक्ट है, उसमें खाना-पीना व सेक्स भी शामिल है. जानवर सेक्स को लेकर संवेदनशील नहीं रहता, समय पर ही वे सेक्सातुर होते हैं. पर मनुष्य ने जो माहौल सृजित किया है उसमें अपने अतिरिक्त दिमागी बोध (एएमसी भी कह सकते हैं यानि एडिशनल माइंड कानशसनेस) के कारण हर पल सेक्सातुर रहता है, जहां अकेला हुआ कि सेक्सातुर हुआ. ये जो मनुष्य के पास एएमसी है, इसका इस्तेमाल सिर्फ सेक्स जगाने में होता रहता है, सेक्स से मुक्त होने में नहीं, यही कारण है कि कोई साधु बाबा अपने लिंग से कहीं पत्थर को तोड़कर काम से मुक्ति पाने का रास्ता तलाश रहे होते हैं तो कोई चोरी-छिपे अपनी शिष्याओं को कुंठित वासना का शिकार बना रहा होता है.
बाजार ने सेक्स को अल्टीमेट और चरम चीज बना दिया है, कुछ ऐसे जैसे इसी को खाओ, पिओ, पहनो, ओढ़ो और बिछाओ. वरना पिछड़े माने जाओगे. बेचारे युगल, आखिर दिन-रात, दिन-रात में कोई कितनी बार सेक्स कर सकता है. जिंदगी में और भी ग़म है सेक्स के सिवा. या सेक्स के अलावा बहुत सारे काम है दुनिया में. लेकिन बाजार राजी नहीं है. वह कह रहा है कि सेक्स से फुर्सत पाओ तो सेक्सी खाना खाओ, सेक्सी कपड़े पहने, सेक्सी नृत्य करो, सेक्सी पार्टीज में इंज्वाय करो, सेक्सी परफ्यूम लगाओ, सेक्सी बातें करो, सेक्सी मोबाइल खरीदो, सेक्सी चैट करो, सेक्सी सैर करो... मतलब सेक्स न हुआ आलू हुआ जिसे हर सब्जी, हर पकवान में शामिल कर लिया. अब जब सब कुछ सेक्सी हो रहा हो तो सेक्स पर बतियाने से शरम कैसा. सेक्स के आदि अंत की कथा का वर्णन अभिभावकों को अपने किशोर बेटों से कर देना चाहिए ताकि बेटा इस रहस्यमयी सेक्सी संसार के तिलिस्म में न बिला जाए. अगर ऐसा न करेंगे तो संभव है कि आप अकेले में कैटरीन के साथ सोए हों और उधर बेटा भी कैटरीना के कपड़े उतार रहा हो, और दोनों ही इस प्रक्रिया में कंडोम की दुकान पर पहुंच डिब्बी पाकेट में डाल अपनी-अपनी लोकल कैटरीनाओं की तलाश में लग जाएं. जय हो.
यशवंत सिंह
एडिटर
भड़ास4मीडिया

Thursday, January 27, 2011

कितना प्रभावी घरेलू हिंसा कानून

पत्नी के साथ मारपीट के आरोपी वरिष्ठ राजनयिक अधिकारी अनिल वर्मा को लंदन से वापस दिल्ली बुलाने का फैसला कर सरकार ने उन्हें फौरी तौर पर राहत तो दे दी है, लेकिन इस मामले ने एक बार फिर घरेलू हिंसा की हकीकत को उजागर किया है। ब्रिटेन ने भारत सरकार पर अनिल वर्मा को दी गई राजनयिक छूट वापस लेने का दबाव बनाया था, ताकि ब्रिटिश कानून के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सके। लंदन का कहना था कि वह ब्रिटेन में पदस्थ राजनयिकों द्वारा कानून का उल्लंघन कतई बर्दाश्त नहीं करेगा।
मगर भारत सरकार ने ब्रिटेन के इस आग्रह को ठुकराकर अनिल वर्मा को दिल्ली बुला लिया। यहां उनके खिलाफ पत्नी के साथ मारपीट के आरोपों की जांच होगी। इस क्रम में उन्हें भी अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाएगा। अगर वह दोषी पाए गए, तो भारतीय नियम-कायदे के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। लेकिन सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि जांच की प्रक्रिया शुरू होने के बाद कब पूरी होगी। गौरतलब है कि अनिल वर्मा की पत्नी पारोमिता ने एक महीना पहले उन पर गरमागरम बहस के दौरान मारपीट का आरोप लगाया था। कथित तौर पर वह राजनयिक हमेशा कहता था कि कूटनयिक छूट मिलने के कारण कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
इस प्रकरण ने महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा को फिर से बहस के केंद्र में ला दिया है। कुछ साल पहले अपने ही देश में एक अनपढ़ पुरुष ने अपनी पत्नी को महज इसलिए जिंदा जला दिया था, क्योंकि उसने भोजन में नमक कम डाला था। अब एक आईएएस अधिकारी अनिल वर्मा द्वारा रेलवे में अधिकारी के पद पर काम करने वाली पत्नी की कथित तौर पर पिटाई का मामला सामने आया है। दरअसल हमारे देश में घरेलू हिंसा इतनी आम है कि चाहे महिला अनपढ़ हो या पढ़ी-लिखी, चाहे वह घर में रहती हो या बाहर काम करने जाती हो, इसका शिकार होती रहती है।
नारीवादी संगठन और सरकार, दोनों महिला सशक्तीकरण के लिए आर्थिक सशक्तीकरण को अनिवार्य मानते हैं। आज की भारतीय युवतियां महत्वाकांक्षी हैं और नौकरी को प्राथमिकता देने वाला एप्रोच उनमें साफ झलकता है। लेकिन समाज की मानसिकता आज भी दकियानूसी है। एक तरफ जहां युवतियों में पेशेवर जज्बा बढ़ रहा है, वहीं कामकाजी महिलाओं पर घरेलू हिंसा के मामले भी सामने आ रहे हैं। आरटीआई इंटरनेशनल वुमेन ग्लोबल हेल्थ इंपरेटिव और इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वुमेन द्वारा कराए गए शोध के मुताबिक, शादीशुदा कामकाजी महिलाओं को घरेलू हिंसा का ज्यादा खतरा झेलना पड़ता है। यह बात दीगर है कि घरेलू हिंसा का शिकार होने पर अधिकांश महिलाएं अपने आंसू और शरीर पर पड़े निशान छिपा लेती हैं। ये महिलाएं कई तरह की मजबूरियों के चलते पुलिस के पास शिकायत करने भी नहीं जातीं।
सनद रहे कि पिछली सरकार ने घरेलू हिंसा महिला संरक्षण विधेयक का जो मसौदा महिला संगठनों और अन्य संगठनों के पास उनकी राय जानने के लिए भेजा था, उसमें पुरुष द्वारा पत्नी को कभी-कभार एकाध थप्पड़ मारने वाली घटना को घरेलू हिंसा नहीं ठहराया गया था। नारीवादी संगठनों के विरोध दर्ज कराने के बाद इसे मसौदे से हटाया गया। यों तो 2006 में ही महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण प्रदान करने के लिए ?घरेलू हिंसा महिला संरक्षण कानून 2005? लागू कर दिया गया, पर अधिकांश राज्य सरकारें इसके प्रति अब भी गंभीर नजर नहीं आतीं। पुलिस का नजरिया भी इस मुद्दे पर संवेदनशील नहीं रहता, जिससे पीड़िता की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ जाती हैं। जाहिर है कि राज्य का चरित्र ही पुरुष प्रधान है। 26 अक्तूबर, 2006 को जब यह कानून लागू किया गया, तो यूपीए सरकार में तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री रेणुका चौधरी ने अगले दिन टिप्पणी की थी कि उन्हें किसी भी पुरुष ने इस कानून के लागू होने पर बधाई तक नहीं दी है। जाहिर है, उनका संदेश साफ था।
बताते हैं कि लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग को अनिल वर्मा के पत्नी के साथ मारपीट करने के मामले की जानकारी पहले से थी, लेकिन उन्होंने इसे दबाने की कोशिश की थी। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि इस मामले की जांच कितनी निष्पक्ष और पारदर्शी होगी।

स्वामी विवेकानंद के विचार उनकी मान्यताओं और जीवन दर्शन का तो स्पष्ट प्रमाण हैं

मार्गदर्शक कर्मयोगी
वेदांत के प्रकांड विद्वान, आडंबरों के प्रबल विरोधी और पाश्चात्य विश्व में हिंदू धर्म की सारगर्भित व्याख्या करने वाले प्रख्यात मनीषी स्वामी विवेकानंद ने स्वयं को न तो कभी तत्व जिज्ञासु की श्रेणी में रखा, न सिद्ध पुरुष माना और न कभी दार्शनिक ही कहा। उन्होंने जीवन में सदैव चरित्र निर्माण को प्रमुखता देने और सत्य बोलने पर बल दिया। उनका मानना था कि परोपकार और प्रेम ही जीवन है, जबकि संकोच व द्वेष मृत्यु।
उन्हें अपने देशवासियों की स्थिति देखकर पीड़ा होती थी। अध्यात्म के पथ पर चलने वाला यह योगी उस मार्ग तक ही सीमित नहीं था, बल्कि वह इस देश की समग्र उन्नति चाहता था। कहने को वह शक्ति मार्ग के उपासक थे, लेकिन आधुनिक चिंतन उन्हें एक ऐसामनीषी बनाता था, जिसे भारत के सुखद भविष्य के रास्ते का पता था।
वह हमारे पिछड़ेपन का कारण हमारी सोच को मानते थे। उनके मुताबिक, हमने उसी दिन से मरना शुरू कर दिया, जब से हम अन्यान्य जातियों से घृणा करने लगे। यह मृत्यु विस्तार के बिना किसी उपाय से रुक नहीं सकती, जो जीवन का गति नियामक है। दास जाति के दोष, पराधीनता के जन्म, पाश्चात्य विश्व के लोगों की सफलता और किसी राष्ट्र की दुर्बलता के कारणों का समय-समय पर अपने प्रवचनों व भक्तों को लिखे पत्रों में उन्होंने विस्तार से खुलासा किया है। उनका सपना था कि पराधीन भारत के बीस करोड़ लोगों में नवशक्ति का संचार हो, करोड़ों पददलित गरीबी, छल-प्रपंचों, ताकतवरों के अत्याचारों और अशिक्षा के अभिशाप से मुक्त हों तथा उनके जीवन में खुशहाली आए। इसके लिए उन्होंने ईश्वर पर भरोसा रखते हुए नि:स्वार्थ भाव से चारित्रिक दृढ़ता के साथ कर्तव्य पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी।
उनका स्पष्ट मत था कि प्रत्येक दास जाति का मुख्य दोष ईर्ष्या होता है और सद्भाव का अभाव पराधीनता उत्पन्न करता और उसे स्थायी बनाता है। जिनकी सदाचार संबंधी उच्चाभिलाषा मर चुकी है, जो भविष्य की उन्नति के लिए बिलकुल भी चेष्टा नहीं करते और भलाई करने वाले को दबाने के लिए सदा तत्पर रहते हैं, उन मृत जड़ पिंडों के भीतर प्राण संचार कर पाना असंभव है। अमेरिकी और यूरोपीय नागरिक विदेश में भी अपने देशवासियों की सहायता करते हैं, जबकि हिंदू अपने देशवासियों को अपमानित होते देख हर्षित होते हैं।
विवेकानंद भारतीयों की उन्नति की पहली शर्त स्वाधीनता मानते थे। यह स्वाधीनता विचारों की अभिव्यक्ति के साथ खान-पान, पोशाक, पहनावा, विवाह आदि हर बात में मिलनी चाहिए। लेकिन यह स्वाधीनता दूसरों को हानि पहुंचाने वाली नहीं होनी चाहिए। वह कहा करते थे, चट्टान के समान दृढ़ रहो, सत्य की हमेशा जय होती है। देश को नवविद्युत शक्ति की आवश्कता है, जो जातीय धमनी में नवीन बल उत्पन्न कर सके।... नि:स्वार्थ भाव से काम करने में संतुष्ट रहो, अपनी आत्मा को पूर्ण रूप से शुद्ध, दृढ़ और निष्कपट रखते हुए किसी को धोखा न दो। क्षुद्र मनुष्यों और मूर्खों की बकवास पर ध्यान न दो, क्योंकि सैकड़ों युगों के उद्यम से चरित्र का गठन होता है और सत्य का एक शब्द भी लोप नहीं हो सकता।
परतंत्र भारत में देशवासियों की गरीबी उन्हें विचलित करती थी। विवेकानंद खुद को न सिर्फ निर्धन मानते थे, बल्कि निर्धनों से प्रेम भी करते थे। वह कहते थे कि देश के जो करोड़ों नर-नारी गरीबी में फंसे हैं, उनके लिए किसका हृदय रोता है? उनके उद्धार का क्या उपाय है? वे अंधकार से प्रकाश में नहीं आ सकते, न उन्हें शिक्षा प्राप्त होती है। उन्हें इस बात की चिंता होती थी कि कौन उन्हें प्रकाश देगा और कौन उन्हें द्वार-द्वार शिक्षा देने के लिए घूमेगा। स्वामी जी महात्मा उन्हें मानते थे, जिसका हृदय गरीबों के लिए सदैव द्रवीभूत होता है, अन्यथा वह दुरात्मा है। उनके मुताबिक, जब तक देश में करोड़ों लोग भूखे और अशिक्षित हैं, तब तक वह हरेक आदमी, जो उनके खर्च पर शिक्षित हुआ है, विश्वासघातक है। गरीबों को कुचलकर धनवान बनकर ठाठ-बाट से चलने वाले लोग यदि करोड़ों देशवासियों के लिए कुछ न करें, तो घृणा के पात्र हैं।
स्वामी विवेकानंद के विचार उनकी मान्यताओं और जीवन दर्शन का तो स्पष्ट प्रमाण हैं ही, यह संदेश भी देते हैं कि उनके बताए हुए मार्ग पर चलकर ही विश्व का कल्याण संभव है। इसलिए देश की उन्नति के लिए उनके बताए मार्गों पर चलना जरूरी है।

हृदय के पास 40 दिन से फंसा चाकू निकालकर दिया जीवनदान

भोपाल, 27 जनवरी 2011। राजधानी भोपाल के चिकित्सकों ने एक 15 वर्षीय बालक के हृदय के पास 40 दिन से फंसे चाकू को निकालकर उसे नया जीवन देने में सफलता हासिल की है। यह तो जीतेश की खुशनसीबी रही कि चाकू ने उसके दिल को कोई हानि नहीं पहुंचाई।
चिकित्सक डॉ. जे. पी. पालीवाल बताते हैं कि लगभग 40 दिन पहले जीतेश लोधी जब घर पर काम कर रहा था, तभी सामान रखने की कोशिश में एक चाकू उसकी पीठ में घुस गया और उसका मूठ का हिस्सा टूट गया। चाकू का नुकीला हिस्सा शरीर के अंदर रह गया।
जीतेश लोधी के परिजनों का कहना है कि पीठ से खून निकलने पर वे उसे एक चिकित्सक के पास ले गए, तो उन्होंने कुछ टांके लगाकर इलाज कर दिया। इसके बाद भी जीतेश को दर्द होता रहा और तकलीफ भी हुईं। डॉ. पालीवाल बताते हैं कि उन्होंने जब जीतेश का परीक्षण किया तो उन्हें कोई नुकीली वस्तु हृदय के पास नजर आई।
डॉ. पालीवाल कहते हैं कि जीतेश के शरीर से चाकू निकालना एक चुनौती थी। उन्होंने सिअर मशीन की मदद से चाकू किस जगह है उसका ठीक तरह से परीक्षण किया और अपने सहयोगियों की मदद से उसका ऑपरेशन किया। उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि चाकू के नुकीले हिस्से से शरीर के किसी नाजुक अंग को क्षति न पहुंचे। जब चाकू उनकी पहुंच में आ गया तो उन्होंन तय किया कि चाकू को भोथरी (गैर नुकीली) तरफ से निकाला जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि नुकीली तरफ से निकालने पर नाजुक अंग को आघात लगने की आशंका थी।
डॉ. पालीवाल ने बताया कि लगभग सवा घंटे तक चले आपरेशन के बाद सफलतापूर्वक लगभग छह इंच लम्बे चाकू को निकाल लिया गया। यह चाकू खून की धमनी से बमुश्किल दो सेंटीमीटर व हृदय से लगभग डेढ़ इच की दूरी पर चाकू था। अब जीतेश स्वस्थ्य है।

मध्य प्रदेश में हल्की बारिश, बढ़ सकती है सर्दी

मध्य प्रदेश में हल्की बारिश, बढ़ सकती है सर्दीभोपाल, 27 जनवरी 2011। मौसम में आ रहे बदलाव के बीच मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में हल्की बारिश होने के साथ सर्दी बढ़ने का अंदेशा है।
मैसम विभाग से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में दिन में चटख धूप निकलने से न्यूनतम तापमान में उछाल का सिलसिला जारी है। रातों में सर्दी अब भी बरकरार है। यही कारण है कि अधिकांश हिस्सों मे न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस के ऊपर पहुंच गया है। प्रदेश में सबसे सर्द स्थान दतिया रहा जहां न्यूनतम तापमान सात डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।
मौसम विभाग का पूर्वानुमान है कि आगामी 24 घंटों में रीवा व शहडोल में बारिश हो सकती है। ऐसा होने से सर्दी की एक बार फिर वापसी हो सकती है।

Saturday, January 15, 2011

रजत शर्मा की सफलता की कीमत एक अनाम औरत चुका रही है

रजत शर्मा की सफलता की कीमत एक अनाम औरत चुका रही है : उनके कारण नहीं, उनके बावजूद पत्रकार हूं : पहले प्रभाष जोशी पर तोहमत लगाने वालों को ललकारने और फिर अब प्रभु चावला और रजत शर्मा के बारे में लिखने के बाद मेरे पास कई संदेश, एसएमएस, ईमेल और फोन के जरिए आए हैं और कुल मिला कर ज्यादातर का सार यह है कि आपने हिम्मत तो गजब की दिखाई लेकिन पत्रकारिता में ये लोग आपका कैरियर चौपट कर देंगे। अब इन लोगों को क्या जवाब दिया जाए। रजत शर्मा उम्र में बड़े हैं मगर अपन ने पत्रकारिता उनसे पहले शुरू कर दी थी। सत्रह साल की उम्र से सिर्फ कलम की कमाई खा रहा हूं। शुरूआत ग्वालियर के उस स्वदेश अखबार से की थी जिसका फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र ले कर रजत शर्मा ने पीआईबी की मान्यता के लिए आवेदन किया था। एक साहब ने तो यहां तक लिखा कि आप खुद इंडिया टीवी में काम कर चुके हैं और रजत शर्मा ने आपको झाड़ा था, उसका बदला निकाल रहे हैं।

जिस तथाकथित झाड़ का वर्णन ये अज्ञात साहब कर रहे हैं वह भरे न्यूज रूम में शनिवार के दिन सबके सामने हुई थी। मैं तय समय पर अंदर आया था और रजत शर्मा ने घड़ी दिखा कर इशारा किया था कि देर से आए हो। घड़ियां अपने पास एक दर्जन से ज्यादा है लेकिन पहनने की आदत नहीं हैं इसलिए उनसे कहा था कि मैं अपने तय समय पर आया हूं। संघ के स्वयं सेवक रहे रजत शर्मा ने कहा था कि यह मैं तय करूंगा कि कौन कब आएगा। मैंने जवाब दिया था कि गनीमत हैं कि आपने मेरे जन्म की तारीख तय नहीं की।

यह इंडिया टीवी में मेरा आखिरी दिन था और मेरी सात दिन की पगार रजत शर्मा पर अब भी उधार है। वैसे इंडिया टीवी में रिवाज है कि आपका वेतन आपके अकाउंट में चला भी जाए और आप किसी भी कारण से नौकरी छोड़ दें तो यह महान चैनल स्टॉप पेमेंट करवा देता है। जम्मू कश्मीर बैंक के खाते से वेतन मिलता है, उसका एटीएम भी लगा हैं लेकिन बैंक के रिकॉर्ड ही बताएंगे कि कितनी बार स्टॉप पेमेंट किए गए हैं।

रजत शर्मा की सफलता का मैं आदर करता हूं और यह मैंने लिखा भी है। लेकिन इस सफलता की कीमत एक अनाम औरत चुका रही है क्योंकि अपने कारोबार की सफलता के लिए रजत शर्मा ने अपनी निजी कंपनी की साझेदार से शादी कर ली थी। बात पुरानी है लेकिन अब बता ही दी जाए। 1993 में जब मुझे जनसत्ता से निकाल दिया गया था तब रजत शर्मा दिल्ली के साउथ एक्सटेंशन में जी न्यूज के संपादक हुआ करते थे। उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने कहा कि हमारे लिए कश्मीर से रिपोर्टिंग करोगे? कश्मीर के तीर्थ चरार ए शरीफ में अफगान मूल के आतंकवादी मस्तगुल ने कब्जा कर लिया था और रजत शर्मा ने कृपा पूर्वक मुझे यह मौका दिया था कि मैं इस पूरे मामले को कवर करूं।

जहाज के टिकट के अलावा पांच हजार रुपए खर्चे के लिए दिए गए थे। उस समय वैसा जमाना नहीं था कि आपने खबर शूट की और अपने लैपटॉप से ही एफटीपी के जरिए अपलिंक कर दी। खबर टेप पर रिकॉर्ड होती थी और दोपहर बाद के जहाज से उसे दिल्ली भेजा जाता था। जी न्यूज का तब एक ही बुलेटिन हुआ करता था। और वह भी रिकॉर्ड हो कर सावित्री सिनेमा के पास बीएसएनएल ऑफिस जाता था और वहां से उसे प्रसारित किया जाता था।

कश्मीर में होटल और टेक्सी का बिल दस हजार से ज्यादा हुआ। होटल का बिल बहुत मिन्नत कर के क्रेडिट कार्ड से चुकाया और टेक्सी वाले ने कृपा कर के डेढ़ हजार रुपए उधार छोड़ दिए जिसे आज तक कई बार कश्मीर जाने के बाद भी नहीं चुका पाया। वह टेक्सी वाला मिला ही नहीं। इस खर्चे में लंबी एसटीडी कॉल्स का खर्चा भी था और उस समय कश्मीर में आतंकवादियों ने सारे टेलीफोन बूथ बंद कर रखे थे और इसीलिए सरकारी टेलीग्राफ ऑफिस में लाइन लगा कर लंबी बात कर के फोनों देने पड़ते थे।

उस समय जी की भाषा में आतंकवादी नहीं, मिलिटेंट बोला जाता था और मृतकों को कैजुअलिटी कहा जाता था। इस तरह की हिंदी बोलने की आदत नहीं थी इसलिए कई रीटेक होते थे। उमेश उपाध्याय उस समय समाचार संपादक थे, वे गवाह हैं। आखिरकार टेलीफोन बिलों में ही लगभग पांच हजार रुपए और ठुक गए जो एक स्थानीय पत्रकार से उधार लेने पड़ें। लौट कर जब बिल दिया तो संघ परिवार के चाल, चरित्र और चिंतन वाले रजत शर्मा ने फाड़ कर फेक दिया और कहा कि तुम हमारे कर्मचारी नहीं हो इसलिए अतिरिक्त भुगतान नहीं किया जा सकता। फिर भी टीवी की पहली रिपोर्टिंग करवाने के लिए मैं रजत शर्मा का कृतज्ञ हूं।

रजत शर्मा का कृतज्ञ मैं इसलिए भी हूं कि जब पैंगंबर कार्टून छापने के मामले में दिल्ली के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर के के पॉल ने अपना एक निजी बदला निकालने के लिए तिहाड़ जेल भिजवा दिया तो लौट कर रजत शर्मा ने खुद फोन किया और कहा कि इंडिया टीवी में काम करो। लेकिन साथ में यह भी कहा कि के के पॉल से तुम्हारा झगड़ा है इसलिए पुलिस और अपराध की खबरें तुम्हें नहीं दी जाएगी। यह चैनल के मालिक का चैनल के वरिष्ठ संपादक के प्रति विश्वास का आलम था। इंडिया टीवी मैंने इसलिए छोड़ा क्योंकि दोपहर बारह बजे से रात को बारह बजे तक काम करने से मेरा सामाजिक जीवन और सारे संपर्क ध्वस्त होते जा रहे थे। इसके अलावा जिस तरह की खबरे टीवी पर दिखाई जाती थी वे अपने वश से बाहर थी।

राखी सावंत और मीका दोनों से यही मुलाकात हुई और एक बार हमारे दोस्त महेश भट्ट चैनल में आए और आते ही उन्होंने मेरे बारे में पूछा तो यह भी रजत शर्मा को काफी अखर गया। रजत शर्मा का जो निजी संविधान हैं उसमें अपने किसी कर्मचारी के निजी संबंध विकसित होने पर अच्छी खासी पाबंदी लगी हुई है। अब जब बात चली है तो यह भी बता दूं कि एक बार झाबुआ में एक पूरे परिवार ने गरीबी के कारण आत्म हत्या कर ली थी और उसका फूटेज एक स्थानीय पत्रकार के जरिए अपने पास आ गया था मगर रजत शर्मा ने उसे दिखाने से इंकार कर दिया और कहा कि झाबुआ में टीआरपी नहीं मिलती।

उस दिन प्राइम टाइम में राखी सावंत का एक अत्यंत बेहूदा इंटरव्यू दिखाया गया था। रजत शर्मा ने इंडिया टीवी ज्वाइन करने वाले दिन ही मुझे कहा था कि अपने अंदर जो प्रिंट मीडिया का आलोक तोमर है, उसे मार डालो। टीवी एक अलग माध्यम हैं और यहां प्रिंट मीडिया की मानसिकता नहीं चलेगी। इसे आप मेरी बदकिस्मती कह सकते हैं कि मुझे अपने लिखे से बहुत प्यार है और इस लेख के माध्यम से मैं बाकायदा सार्वजनिक आवेदन कर रहा हूं कि किसी के पास किसी अखबार में लिखने की नौकरी हो तो वह मुझे दे दे। रही रजत शर्मा और प्रभु चावला की बात तो मैं उनके कारण नहीं, उनके बावजूद पत्रकार हूं और लोग मुझे काफी हद तक जानते हैं।

मैं अच्छा बुरा जैसा भी लिखता हूं, लिखता रहूंगा और जिसे जो उखाड़ना है उखाड़ ले।

रेड पेप्पर को आम तौर पर जवानों के हाथ देखा जाता है क्योंकि उसमें नंगी तस्वीरों की संख्या ज्यादा होती है। यह सच है कि उगांडा और खासतौर से कंपाला की संस्कृति पर अमरीकी संस्कृति ही हावी

उगांडा में नकारात्मक लेखन का प्रचलन जरा कम है। ऐसा नहीं है कि है ही नहीं, पर कम है। राजधानी कंपाला से अनेक अखबार प्रकाशित होते हैं लेकिन सबसे लोकप्रिय अखबार है-द न्यू विजन। उसके बाद सबसे ज्यादा बिकने और पढ़ा जाने वाला अखबार है-द मोनिटर और ईस्ट अफ्रीकन। इसके अलावा ऑबजर्बर और रेड पेप्पर भी काफी लोग पढते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सारे के सारे अखबार टेबलायड में ही छपते हैं। इनकी कीमत भी स्थानीय मुद्रा शिलिंग में कम से कम 800 और अधिकतम 1500 शिलिंग है। भारतीय रुपए के हिसाब से देखें तो लगभग 50 शिलिंग का एक भारतीय रुपया होता है। रविवार को और जगहों की तरह यहां के अखबार भी सप्लीमेंट छापते हैं और कीमतों में कम से कम 300 शिलिंग की बढ़ोतरी भी करते हैं।


इनमें रेड पेप्पर को आम तौर पर जवानों के हाथ देखा जाता है क्योंकि उसमें नंगी तस्वीरों की संख्या ज्यादा होती है। यह सच है कि उगांडा और खासतौर से कंपाला की संस्कृति पर अमरीकी संस्कृति ही हावी है, पर ब्रिटेन की छाप भी कई जगहों पर दिख जाती है। पेप्पर जैसे अखबार यहां की महिलाएं और युवतियां भी खूब पढ़ती हैं और कुछ भी छुपाकर नहीं पढ़तीं। लेकिन नंगी तस्वीरों के बावजूद सबसे ज्यादा लोग न्यू विजन ही पढ़ते हैं। कंपाला के निवासी बताते हैं कि न्यू विजन सत्ता के नजदीक रहने वाला अखबार है और मोनिटर विरोधी राजनीति पर भी खुलकर लिखता है।

मैंने कम से कम चारों प्रमुख अखबारों को लगातार देखा। मेरा अपना अनुभव है कि अच्छे अखबार के रुप में द ईस्ट अफ्रीकन को ही रखा जाना चाहिए। ऐसा नहीं है कि बाकी अखबार बुरे हैं, पर मैटर के चयन में यह आगे तो है ही। यहां प्रिंट लाइन के नाम पर संपादक और प्रकाशक के नाम तो छपते हैं, पर कोई निबंधन संख्या नहीं छापता। भारत की तरह कोई आरएनआई नंबर है ही नहीं। केवल देश के प्रमुख डाकघर में इसका निबंधन होता है। क्योंकि कंपाला में डाक के लिए घर पर डाकिया के जाने की परंपरा नहीं है, इसलिए अखबार भी डाक से नहीं भेजे जाते। लेकिन यहां के लोगों को पढ़ने की आदत जरुर है। स्थानीय भाषा में छपने वाला बुकेडो भी खूब पढ़ा जाता है, हालांकि उसकी लिपि रोमन ही होती है। अखबार मंहंगे हैं फिर भी लोग खरीदते हैं और फुटपाथों पर एक किनारे खड़े होकर पढ़ने में लोगों को मजा आता है। सुबह अखबार घरों पर फेंके जाने की परंपरा भी नहीं दिखती, पर हर नुक्कड़ पर खड़े होकर बेचने वाले हॉकर जरुर दिखेंगे।

न्यू विजन के बारे में कहा जाता है कि इसके लिए वर्तमान प्रेसिडेंट मुसोविनी का पूरा समर्थन रहता है इसलिए इसे सबसे ज्यादा सरकारी विज्ञापन भी दिए जाते हैं। असल में उगांडा में पिछले 25 वर्षों से सत्ता पर काबिज मुसोविनी को कभी किसी विरोधी नेता ने चुनौती देने का साहस भी नहीं किया है। विरोधी दल हैं भी तो नाममात्र के। कुछ विरोधी नेताओं को भी किसी समूह का चेयरमैन बना कर बोलने की आदत बंद कर दी गई है। अभी उगांडा में चुनाव की तैयारियां चल रही हैं। चुनाव भी दो चरणों में होते हैं। पहले पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के लिए नामों का चुनाव होता है और इसके लिए बाकायदा वोटिंग की जाती है। इसे यहां प्राइमरी इलेक्शन कहते हैं। इन दिनों ऐसे ही चुनाव का यहां माहौल है। इस समय जो सांसद हैं, जरुरी नहीं कि पहले चरण में उनके चुनाव क्षेत्र में उनके कार्यकर्ता और पार्टी के चेयरमैन उन्हें उम्मीदवार बना ही दें। इसलिए इस समय सारे सांसद अपने क्षेत्र में अपने को नेशनल रिवोल्यूशनरी मूवमेंट(एनआरएम) का उम्मीदवार बनने के लिए जोड़-तोड़ कर रहे हैं और पैसे बांटते हुए घूम रहे हैं। उसके बाद पूरी सूची प्रेसिडेंट के पास आएगी और अंतिम फैसला भी वही करेंगे। प्रत्येक क्षेत्र में न्यू विजन और मोनिटर के संवाददाता घूमते दिखेंगे पर अखबारों में पैसे बांटने या शराब के नशे में वोट दिलाने की बातें नहीं छापी जा रही हैं। आप जब भी अखबार खोलेंगे तो आपको प्रेसिडेंट की तरह तरह की तस्वीर दिखेगी।

कुछ सांसदों से मेरी बातें पिछले कुछ दिनों से होती रहती हैं क्योंकि मैं इन दिनों जिस फाइनैंस कंपनी की पड़ताल कर रहा हूं, उसमें राजनेताओं का रोज का आना-जाना लगा रहता है। ये सांसद मंहंगे ब्याज दरों पर छोटी अवधि के लिए लोन ले रहे हैं और अपने चुनाव क्षेत्रों में जा रहे हैं। वे बताते हैं कि अगली फरवरी में होने वाले चुनाव में भी एनआरएम के ही उम्मीदवारों का जीतना तय है, बस महामहिम का हाथ सिर पर होना चाहिए।

उगांडा में भी भ्रष्टाचार के अनेक किस्से हैं, लेकिन अखबार इसके बारे में कुछ भी विस्तार से नहीं छापते। कहा जाता है कि रिश्वत लेने की बात इतनी आम है कि यह कोई खबर भी नहीं बनती। यह और बात है कि रिश्वत की दर यहां की मुद्रा में भी एक लाख से ज्यादा नहीं है। शायद इसीलिए पत्रकार स्टिंग आपरेशनों से भी दूर रहते हैं। एक पत्रकार से मैंने इसके बारे में जानना चाहा तो उसने साफ शब्दों में कहा कि इसे छाप देने से क्या मुसोविनी हार जाएंगे? फिर अपने रिश्ते क्यों खराब किए जाएं। हाल ही में यहां सांसदों के पेंशन को लेकर एक स्टोरी छपी थी, अगले ही दिन उसी श्रोत ने खबर को निराधार कह दिया। संवाददाता को जवाब देते नहीं बन रहा है। इसलिए सारी स्टोरी लिखते समय हर पत्रकार बखेड़े से बचना चाहता है।

लेखक अंचल सिन्हा बैंक के अधिकारी रहे, पत्रकार रहे, इन दिनों उगांडा में बैंकिंग से जुड़े कामकाज के सिलसिले में डेरा डाले हुए हैं.


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लेखक आलोक तोमर हिंदी पत्रकारिता के बड़े नाम हैं. खरी-खरी लिखने-बोलने वाली अपनी शैली के कारण वे हर क्षेत्र में दोस्त और दुश्मन लगभग समान मात्रा में पैदा करते रखते हैं.

ठाकरे गिरोह के गुंडे 26/11 को क्या कर रहे थे : कायर जब साहसी होने का अभिनय करता तो बहुत बेरहम होता है : शिवसेना को आतंकवादी संगठन के तौर पर प्रतिबंधित करें : बाल ठाकरे के तिलकधारी गुंडों ने आईबीएन-लोकमत के कार्यालय में जो तांडव मचाया है उससे पत्रकारिता का तो कुछ नहीं बिगड़ा लेकिन इन गुंडों के सरगना बाल ठाकरे ने एक बार फिर अपने टपोरी होने का सबूत दे दिया है। बाल ठाकरे ने अपनी औकात बता दी है और यह औकात गली के एक गुंडे की है। आप जानते है कि अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता हैं। बाल ठाकरे ने जिंदगी भर गुंडागर्दी की राजनीति की। खुद बांद्रा के अपने घर में बीयर पीते रहे और सिगार सुलगाते रहे और उनके गुंडे वानखेड़े स्टेडियम की पिच खोदने से लेकर सिनेमा घरो पर नए नए कारण तलाश कर हंगामा करते रहे। ठाकरे जैसे लोगों की सभ्य लोकतंत्र में अगर कोई जगह हो सकती है तो आर्थर रोड जेल हो सकती है। जो हुआ है और होता रहा है उसका एक ही जवाब है कि अपने आपको शेर समझने वाले गीदड़ों को जम कर ठोका जाए।

वे बंद करवाएंगे, वहां उनकी ठुकाई की जाए और आखिरकार शिवसेना को एक आतंकवादी संगठन के तौर पर प्रतिबंधित कर दिया जाए। शिवसेना सारे वही काम कर रही है जो आम तौर पर दाऊद इब्राहीम की डी कंपनी करती है। वह फिल्मकारों और बिल्डरों से सरेआम वसूली करती है। पूरे मुंबई में जगह जगह शिवसेना के जो बोर्ड लगे हैं उन पर रोज भड़काऊ नारे लिखे जाते है। एक संजय निरुपम नाम के बिहारी को बाल ठाकरे ने मुंबई की अच्छी खासी वोट बैंक बटोरने के लिए पहले सामना के हिंदी संस्करण का संपादक बनाया था और फिर दो बार राज्यसभा में भेजा था।

बाल ठाकरे पढ़े लिखे आदमी हैं। एक अंग्रेजी अखबार में काम कर चुके हैं। अच्छे खासे कार्टूनिस्ट हैं लेकिन उनका रवैया गली के गुंडों वाला है। मेरा उन्हें सादर निमंत्रण है कि हमारी डेटलाइन इंडिया या मेरे टीवी चैनल सीएनईबी के पचास किलोमीटर के दायरे में ठाकरे शक्ल दिखा दें और सलाह है कि एंबुलेंस साथ में लेकर आए। उनकी ठुकाई करने के लिए बहुत लोग इंतजार कर रहे हैं।

आईबीएन-लोकमत में बाल ठाकरे के गुंडे निखिल वागले की तलाश करने गए थे। निखिल वागले हिंदी और मराठी चैनलों के संपादक बनने के पहले 'महानगर' नामक अखबार के संपादक थे और बाल ठाकरे की गुंडागर्दी के खिलाफ सबसे साहसी और सबसे मुखर आवाज उन्हीं की रही है। पहले भी ठाकरे अपने गुंडों के जरिए निखिल पर पांच बार हमले करवा चुके है। स्टार न्यूज से लेकर कई अखबारों तक पर भी उनके लोग धावा बोल चुके हैं।

बाल ठाकरे को एक बात का अंदाजा नहीं है। मुंबई में 20-25 लाख हिंदी भाषी रहते हैं। इनमें से कई को हिंसा करने में एक मिनट नहीं लगता। उनके घर मातृश्री पर हमला बोलने का अगर उन्होंने फैसला कर लिया तो एक एक ईंट उठा ले जाएंगे। मगर कांग्रेस शिवसेना की सरकार ने बाकायदा इस गुंडे को सरकारी पहरा दिया हुआ है। जिस आदमी की जगह जेल में होनी चाहिए, उसकी सुरक्षा सरकार कर रही है।

आईबीएन-लोकमत चैनल के आधे मालिक राज्य सरकार में मंत्री भी हैं इसलिए अशोक चव्हाण ने कहा है कि हमला करने वालो को सजा मिलेगी। पर यह तय है कि हमला करवाने वालों को सजा नहीं मिलेगी। अगर ठाकरे के गिरोह के गुंडों में जरा भी मर्दानगी शेष है तो वे 26/11 को क्या कर रहे थे जब मुंबई के सीने में पाकिस्तानी कातिलों की गोलियों से हमले किए जा रहे थे?

कायर लोग जब साहसी होने का अभिनय करते हैं तो उनसे ज्यादा निर्दयी और कोई नहीं होता। शिवसेना बार बार यह साबित कर रही है और हम बार बार इसे झेलने को मजबूर है।

गणतंत्र दिवस पर भाजपा श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा न फहराए क्योंकि इससे हिंसा भड़क सकती है। आखिर एक मुख्यमंत्री के मुंह से क्या ऐसे बयान शोभा देते हैं?

लेखक संजय द्विवेदी माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय भोपाल में जनसंचार विभाग के अध्‍यक्ष

आजादी के छह दशकों ने आखिर हमें क्या सिखाया है? हम राष्ट्र, एक जन का व्यवहार भी नहीं सीख पा रहे हैं। लोकतंत्र की अतिवादिता तो हमने सीख ली है किंतु मर्यादापूर्ण व्यवहार और आचरण हमने नहीं सीखा। वाणी संयम की बात तो जाने ही दीजिए। यूं लगता है कि देशभक्ति, देश की बात करना और कहना ही एक बोझ बन गया है। देश के हालात तो यही हैं कि कुछ भी कहिए शान से रहिए। क्या दुनिया का कोई देश इतनी सारी मुश्किलों के साथ सहजता से सांस ले सकता है। शायद नहीं, पर हम ले रहे हैं क्योंकि हमें अपने गणतंत्र पर भरोसा है। यह भरोसा भी तब टूटता दिखता है जब संवैधानिक पदों पर बैठे लोग ही अलगाववादियों की भाषा बोलने लगते हैं। बात जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर फारूख की हो रही है, जिनका कहना है कि गणतंत्र दिवस पर भाजपा श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा न फहराए क्योंकि इससे हिंसा भड़क सकती है। आखिर एक मुख्यमंत्री के मुंह से क्या ऐसे बयान शोभा देते हैं? अब सवाल यह उठता है कि आखिर लालचौक में तिरंगा फहराने से किसे दर्द होता है। उमर की चेतावनी है कि इस घटना से कश्मीर के हालात बिगड़ते हैं तो इसके लिए भाजपा ही जिम्मेदार होगी। निश्चित ही एक कमजोर शासक ही ऐसे बयान दे सकता है।

अपने विवादित बयानों को लेकर उमर की काफी आलोचना हो चुकी है किंतु लगता है कि इससे उन्होंने कोई सबक नहीं सीखा है। वे लगातार जो कह और कर रहे हैं उससे साफ लगता है कि न तो उनमें राजनीतिक समझ है न ही प्रशासनिक काबलियत। कश्मीर के शासक को कितना जिम्मेदार होना चाहिए इसका अंदाजा भी उन्हें नहीं है। आखिर मुख्यमंत्री ही अगर ऐसे भड़काऊ बयान देगा तो आगे क्या बचता है। सही मायने में उमर अब अलगाववादियों की ही भाषा बोलने लगे हैं। एक आजाद देश में कोई भी नागरिक या समूह अगर तिरंगा फहराना चाहता है तो उसे रोका नहीं जाना चाहिए। देश के भीतर अगर इस तरह की प्रतिक्रियाएं एक संवैधानिक पद पर बैठे लोग कर रहे हैं तो हालात को समझा जा सकता है। उमर भारत में कश्मीर के विलय को लेकर एक आपत्तिजनक टिप्पणी कर चुके हैं, ऐसे व्यक्ति से क्या उम्मीद की जा सकती है?

देश के भीतर तिरंगा फहराना आखिर पाप कैसे हो सकता है? देश के राजनीतिक दल भी भारतीय जनता युवा मोर्चा के इस आयोजन में राजनीति देखते हैं तो यह दुखद ही है। आखिर तिरंगा अगर किसी राजनीति का हिस्सा है तो वह देशभक्ति की ही राजनीति है। किंतु इस देश में तमाम लोगों को भारत माता की जय और वंदेमातरम की गूंज से भी दर्द होता है, शायद उन्हीं लोगों को तिरंगे से भी परेशानी है। आखिर क्या हालात है कि हम अपने राष्ट्रीय पर्वों पर ध्वजारोहण भी अलगाववादियों से पूछकर करेंगे। वे नाराज हो जाएंगे इसलिए प्लीज आज तिरंगा न फहराएं। क्या बेहूदे तर्क हैं कि बड़ी मुश्किल से घाटी में शांति आई है। चार लाख कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, अनेक उदारवादी मुस्लिम नेताओं की हत्याएं की गयीं, अभी हाल तक सेना और पुलिस पर पत्थर बरसाए गए और आज भी सेना को वापिस भेजने के सुनियोजित षडयंत्र चल रहे हैं। आप इसे शांति कहते हैं तो कहिए, पर इससे चिंताजनक हालात क्या हो सकते हैं? अगर तिरंगा फहराने से किसी इलाके में अशांति आती है तो तय मानिए वे कौन से लोग हैं और उनकी पहचान क्या है।

पाकिस्तान के झंडे और “गो इंडियंस” का बैनर लेकर प्रर्दशन करने वालों को खुश करने के लिए हमारी सरकार सेनाध्यक्षों के विरोध के बावजूद आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट में बदलाव करने का विचार करने लगती है। सेनाध्यक्षों के विरोध के बावजूद आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट में बदलाव की गंदी राजनीति से हमारे सुरक्षाबलों के हाथ बंध जाएंगे। हमारी सरकार इस माध्यम से जो करने जा रही है वह देश की एकता-अखंडता को छिन्न-भिन्न करने की एक गहरी साजिश है। जिस देश की राजनीति के हाथ अफजल गुरू की फांसी की फाइलों को छूते हाथ कांपते हों, वह न जाने किस दबाव में देश की सुरक्षा से समझौता करने जा रही है। यह बदलाव होगा हमारे जवानों की लाशों पर। इस बदलाव के तहत सीमा पर अथवा अन्य अशांत क्षेत्रों में डटी फौजें किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकेंगी। दंगों के हालात में उन पर गोली नहीं चला सकेंगी। जी हां, फौजियों को जनता मारेगी, जैसा कि सोपोर में हम सबने देखा। घाटी में पाकिस्तानी मुद्रा चलाने की कोशिशें भी इसी देशतोड़क राजनीति का हिस्सा है। यह गंदा खेल, अपमान और आतंकवाद को इतना खुला संरक्षण देख कर कोई अगर चुप रह सकता है तो वह भारत की महान सरकार ही हो सकती है।

आप कश्मीरी हिंदुओं को लौटाने की बात न करें, हां सेना को वापस बुला लें। क्या हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं जिसकी घटिया राजनीति ने हम भारत के लोगों को इतना लाचार और बेचारा बना दिया है कि हम वोट की राजनीति से आगे की न सोच पाएं? क्या हमारी सरकारों और वोट के लालची राजनीतिक दलों ने यह तय कर लिया है कि देश और उसकी जनता का कितना भी अपमान होता रहे, हमारे सुरक्षा बल रोज आतंकवादियों के गोलियां का शिकार होकर तिरंगें में लपेटे जाते रहें और हम उनकी लाशों को सलामी देते रहें-पर इससे उन्हें फर्क नहीं पड़ेगा। किंतु अफसोस इस बात का है कि गणतंत्र को चलाने और राजधर्म को निभाने की जिम्मेदारी जिन लोगों पर है वे वोट बैंक से आगे की सोच नहीं पाते। वे देशद्रोह को भी जायज मानते हैं और उनके लिए अभिव्यक्ति के नाम पर कोई भी कुछ भी कहने और बकने को आजाद है।

कश्मीर में पाकिस्तानी झंडे लेकर घूमने से शांति और तिरंगा फहराने से अशांति होती है – शायद छह दशकों में यही भारत हमने बनाया है। ऐसे में क्या नहीं लगता कि देशभक्ति भी अब एक बोझ बन गयी है, शायद इसीलिए हमारे संविधान की शपथ लेकर बैठे नेता भी इसे उतार फेंकना चाहते हैं। कश्मीर का संकट दरअसल उसी देशतोड़क द्विराष्ट्रवाद की मानसिकता से उपजा है जिसके चलते भारत का विभाजन हुआ। पाकिस्तान और द्विराष्ट्रवाद की समर्थक ताकतें यह कैसे सह सकती हैं कि कोई भी मुस्लिम बहुल इलाका हिंदुस्तान के साथ रहे। किंतु भारत को यह मानना होगा कि कश्मीर में उसकी पराजय आखिरी पराजय नहीं होगी। इससे हिदुस्तान में रहने वाले हिंदू-मुस्लिम रिश्तों की नींव हिल जाएगी और सामाजिक एकता का ताना-बाना खंड- खंड हो जाएगा। इसलिए भारत को किसी भी तरह यह लड़ाई जीतनी है। उन लोगों को जो देश के संविधान को नहीं मानते, देश के कानून को नहीं मानते उनके खिलाफ हमें किसी भी सीमा तक जाना पड़े तो जाना चाहिए।

विदेश शक्तियां भारत को कमजोर करने की साजिश रच रही हैं।

विदेश शक्तियां भारत को कमजोर करने की साजिश रच रही हैं। ऐसी शक्तियों की साजिशें कहीं आतंकवाद कहीं नक्सलवाद और कहीं माओवाद के रूप में सामने आ रही हैं। ऐसी शक्तियों में चीन प्रमुख है। चीनी ड्रैगन आज हमारे देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है। चीन हमारी सीमाओं पर बसे जनजातीय और आदिवासी समाज में घुसपैठ कर उनकों देश के खिलाफ बरगला रहा है और उन्हें भारत के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। ये कहना है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश राव उपाख्य भैयाजी जोशी का। श्री जोशी शनिवार को राजधानी देहरादून के झांझरा स्थित बनवासी कल्याण आश्रम में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय जनजाति सम्मेलन एवं युवा महोत्सव को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।


भारत में जनजातीय और आदिवासी समाज के इतिहास पर प्रकाश्‍ा डालते हुए श्री जोशी ने कहा कि भारतीय आदिवासी समाज का इतिहास गौरवशाली इतिहास रहा है। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज ने प्राचीन काल से ही देशभक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस समाज ने हर समय अन्याय और अत्याचार का दमन किया है। चाहे मुगल सल्तनत रही हो या फिर अंग्रेजों की गुलामी का काल, इस समाज ने सबसे जमकर लोहा लिया। छत्रपति शिवाजी महाराज और फडके जी जैसे देशप्रेमियों को इस समाज ने जो मदद की वह इतिहास में दर्ज है।

उन्होंने कहा कि भारत की परंपरा कभी भी शोषण की नहीं रही है। और इस समाज में शोषण को बर्दास्त करना भी अपराध माना जाता है। लेकिन इस सीधे-साधे समाज का आज जिस तरह से शोषण किया जा रहा है वह चिंतनीय है। उन्होंने कहा कि इस देश के खिलाफ शत्रुओं की साजिश हमेशा चलती रहती है। लेकिन इसके साथ ही इस देश की जनता शत्रुओं की साजिशों से हमेशा लड़ती रहती है। लेकिन आज ये लड़ाई और गंभीर हो गई है। आज कहीं पर आतंकवाद तो कहीं पर नक्सलवाद व माओवाद ने अपने पांव पसारे हैं। उन्होंने कहा कि इन विदेशी शक्तियों की सफलता के पीछे हमारे ऐसे समाजों के दुर्बल व्यक्तियों की कमजोरी भी मददगार है। जिसका लाभ उठाकर विदेशी शक्तियां अपने कार्य को अंजाम दे रही हैं। उन्होंने कहा कि चीन का प्रतीक ड्रैगन है और वह कहीं न कहीं प्रकट हो कर अनिष्ट करता रहता हैं।

चीन हमारी सीमाओं पर बसे आदिवासी व जनजातीय समाज को बरगलाकर सीमाओं में घुसपैठ करने का प्रयास कर रहा है। आज नक्सलवादियों, माओवादियों व आतंकियों का कोई सिद्धान्त नहीं रह गया है। वे भी ऐनकेन प्रकारेण सत्ता पाना चाहते र्है और यही कारण है कि आज वे नक्सलवाद की आड़ में सत्ता की लड़ाई लड़ रहे हैं। हमारे देश का आदिवासी जनजातीय समाज इनके कुचक्र का शिकार हो गया है। आज की सबसे बड़ी जरूरत इस समाज की इन शक्तियों से रक्षा करना है। आज सोचने का समय है कि दलित आदिवासी और हरिजन शब्दों के प्रयोग से समाज में खाई बढ़ रही है या घट रही है। इन क्षेत्रों में काम करने वाले संगठनों को इस पर विचार कर एकजुट होने की जरूरत है। सभी को इन साजिशों को समझ कर एकजुट होकर खड़ा होना होगा और अपनी अपनी भूमिकाओं को समझना पड़ेगा। राजनीतिक कटुता ने देश का बहुत नुकसान किया है इसलिए आज राजनीतिक संकुचन से हट कर विदेशी शक्तियों को मुंहतोड जवाब देने वाले अन्तःकरण के निर्माण की आवश्‍यकता है।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विशिष्ठ अतिथि के तौर पर मौजूद छत्तीसगढ के राज्यसभा सांसद नन्द कुमार साय ने देश की सबसे अधिक प्राकृतिक संपदा जनजातीय और आदिवासी समाज के पास है, लेकिन उनको इसका कोई लाभ नहीं मिलता जिससे उस समाज में आक्रोश का संचार होता है। उन्होंने कहा कि सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक रूप से अत्यन्त पिछड़ा होने के चलते इस समाज को लगातार छला जाता है। पेशा कानून के तहत आदिवासी समाज की जमीन को कोई नहीं खरीद सकता है, लेकिन इसके विपरीत इनकी जमीनों को पूंजीपतियों और सरकारों द्वारा लगातार छीना जा रहा है।

उन्होंने कहा कि 80 के दशक में नक्सलवादी मानवाधिकारवादी कार्यकर्ता के रूप में छत्तीसगढ़ में घुसे थे और धीरे-धीरे उन्होंने वहां की जनता को बरगलाकर शासन और प्रशासन के खिलाफ खड़ा कर दिया। आज उस प्रदेश में स्थिति कितनी जटिल हो गई है, इसका अंदाजा इससे समझा जा सकता है कि तीन भाई हैं, एक पुलिस वाला है, दूसरा सलवा जुडुम का कार्यकर्ता है तो तीसरा नक्सलवादी है। अब इन तीनों में संघर्ष होगा तो कोई न कोई एक तो मरेगा, लेकिन कोई भी मरे नुकसान तो पूरे परिवार का ही होगा। यही स्थिति आज पूरे नक्सली क्षेत्र में देखने को मिल रही है।

श्री साय ने कहा आदिवासी समाज में नक्सलवादी और आतंकी घटनाओं के घटने का सबसे बड़ा कारण अशिक्षा और गरीबी के साथ-साथ सरकारों की लापरवाही भी है। उन्होंने कहा कि विकास की आपाधापी में इस समाज के साथ जो अन्याय होता है उसका परिणाम नक्सलवाद के रूप में सामने आता है। उन्होंने कहा कि बड़े-बड़े बांधों के निर्माण से आदिवासी समाज की बड़ी जनसंख्या विस्थापित होती है। लेकिन इस विस्थापित जनसंख्या का क्या होता है ये किसी को मालूम नहीं। आखिर ये विस्थापित कहां गए इसका पता लगाने की जरूरत क्यों नहीं समझी जाती। उन्होंने कहा कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों में ऐसी घटनाओं के बढ़ने में धर्म परिवर्तन भी एक बड़ा कारण है। धर्म परिवर्तन होने से आतंकवाद जैसी घटनाओं में बढ़ोतरी हो जाती है। हमारे आदिवासी क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता होती है लेकिन उसका लाभ हमें मिलने की बजाय उसे कोई और ही लूट ले जाता है। आदिवासी समाज को कुछ भी नहीं मिलता है।

श्री साय ने कहा कि जब तक आदिवासी समाज को नेतृत्व का अधिकार, शिक्षा, समानता और आर्थिक आजादी नहीं दी जाती तब तक नक्सलवाद की लड़ाई जीतना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सरगुजा है जहां हमने पुलिस, पब्लिक और प्रशासन को एक साथ खड़ा कर नक्सलवाद को जड़ से उखाड दिया है। आज सरगुजा पूरे देश में नक्सलवाद से निपटने के तौर तरीकों का सबसे बड़ा उदाहरण हैं।

सम्मेलन को संबोधित करते हुए दिल्ली से आए रक्षा विशेषज्ञ एवं पूर्व थलसेना उपाध्यक्ष पीवीएसएम लेफ्टिनेंट एनएस मलिक ने कहा कि आज नक्सलवाद के कारणों पर सोचने की सख्त जरूरत है। हमें सोचना होगा कि आखिर इस समस्या की जड़ कहां है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में बैठकर नगालैंड, असम और छत्तीसगढ की आदिवासी जनता के लिए नीतियां बनाना बहुत आसान है लेकिन उन नीतियों को क्रियान्वित करना बहुत मुश्किल है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों को लगता है कि दिल्ली में योजनाएं बनाकर हम पर थोप दी जाती हैं। इन्‍हें लगता है कि दिल्ली वाले सिर्फ अपने हितों को ध्यान में रखकर ही योजनाएं बनाते हैं। ये लोग चाहते है उनके लिए बनने वाली योजनाओं के निर्माण में उनकी भी भागीदारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नक्सलवादियों का कोई धर्म और सिद्धान्त नहीं है और उनका एक ही उद्देश्‍य सत्ता प्राप्त करना रह गया है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण नेपाल है जहां माओवादियों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया।

श्री मलिक ने कहा कि आतंकवाद का आर्थिक पिछड़ेपन से कोई लेना-देना नहीं है। आतंकवाद के पीछे विदेशी ताकतें ही महत्वपूर्ण होती हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में जहां आतंकवाद-उग्रवाद और माओवाद के पीछे चीन है, वहीं दक्षिण राज्यों में फैले नक्सलवाद और माओवाद के पीछे नेपाल का बड़ा हाथ है। लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि हम इन खतरों को भांपते तो रहते हैं लेकिन समय से उनसे बचने का उपाय नहीं करते। उन्होंने कहा कि नक्सलियों को शिक्षा से डर लगता है इसीलिए वे शिक्षा संस्थानों को नष्ट करते रहते हैं। 2008-09 में इन लोगों ने 1700 से ज्यादा शिक्षा संस्थानों को नष्ट कर दिया। उन्होंने कहा कि इन पर नियंत्रण के लिए सबसे कारगर उपाय है लोकल पुलिस। लोकल पुलिस और प्रशासन अगर मिलजुल कर कार्य करें तो इनकी साजिशों को विफल किया जा सकता है। उन्होंने चीन को देश के सबसे बड़े संकट के तौर पर चिन्हित करते हुए कहा कि उसने आज रेड कॉरिडोर में प्रवेश कर लिया है जो भारत के लिए खतरे की घंटी है। उन्होंने नक्सलवाद के विकास में मजहब और राजनीति को भी मददगार बताया।

सम्मेलन में पिथौरागढ के मुनिस्यारी से आए आदिवासी नेता कुन्दन सिंह टोलिया ने कहा कि काली नदी का उद्गम लिपुपास से होता है। जिसके दायीं तरफ नेपाल है और बाईं तरफ उत्तराखंड है। उन्होंने कहा कि ये सीमा पूरी तरह से खुली हुई है। हालांकि इसकी सुरक्षा के लिए केन्द्र सरकार ने गोरखपुर से नेपाल बॉर्डर तक एसएसबी लगा रखी है। लेकिन यहां की सुरक्षा को और पुख्ता करने के लिए स्थानीय लोगों को भी इंटेलीजेंस में रखा जाना चाहिए। इसके साथ ही जो लोग लिपुपास से नेपाल व्‍यवसाय के लिए जाते हैं उनसे भी इंटेलीजेंस का काम लिया जा सकता है और ये पता लगाया जा सकता है कि नेपाल में किस तरह की गतिविधियां चल रही हैं। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी के चलते सीमाओं पर पलायन की गति तेज है। जिससे सीमाएं वीरान हो रही हैं और संकट बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए जोशीमठ, मुनिस्यारी और धारचूला में ही सरकार को जडी-बूटियों के शोधन और औषधि निर्माण की इकाई लगाई जानी चाहिए जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके।

सम्मेलन में विशेषतौर पर पधारे पद्मश्री अनिल जोशी ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि देश की जनजातियों और आदिवासियों के पास प्राकृतिक संसाधन का सबसे बड़ा खजाना है, लेकिन विडंबना है कि इसका कोई लाभ उन्हें नहीं मिल पाता है। उन्हें सिर्फ शोषण और अन्याय ही मिलता है। जिसके कारण आजादी के 60 सालों बाद भी यह समाज विकास की मुख्यधारा से दूर है। उन्होंने कहा कि भले ही हमें आजादी मिले 60 साल हो गए लेकिन आर्थिक रूप से हम आज भी गुलाम हैं। उन्होंने कहा कि देश के विकास में इस समाज का अमूल्य योगदान है लेकिन आर्थिक विसंगति ने इन्हें शोषित और पीडि़त बना रखा है। उन्होंने कहा कि आज हमें इस समाज के पिछड़ेपन पर गंभीरता से विचार करने की आवश्‍यकता है। जिन संसाधन के बीच हम पैदा हुए हैं, उन्हीं संसाधनों के आधार पर विकास की योजनाएं बनाने की जरूरत है। उन्होंने इस सम्मेलन के आयोजन के लिए सांसद तरूण विजय को धन्यवाद भी दिया और कहा कि देवभूमि उत्तराखंड से शुरू हुई इस बहस का जरूर कोई सार्थक परिणाम निकलेगा।

सम्मेलन को विशिष्ठ अतिथि के तौर पर संबोधित करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार के गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने कहा कि हमें सोचना चाहिए कि आखिर क्यों नक्सलवादी आदिवासी और जनजातीय क्षेत्रों में ही पनपते हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में गरीबी है लेकिन फिर भी पलायन बिल्कुल नहीं है। लेकिन शिक्षा का अभाव और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से लोगों में आक्रोश पनपता है, जिससे के परिणाम ठीक नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में नक्सलवाद को बढ़ावा देने में तथाकथित मानवाधिकारवादी कार्यकर्ताओं की भी भूमिका अहम है। उन्होंने कहा कि बस्तर का आदमी जिला न्यायालय तक नहीं पहुंच सकता, लेकिन ये मानवाधिकारवादी सुप्रीमकोर्ट तक पहुंच कर सलवा जुडुम को गलत साबित करने में पूरी ताकत लगा देते हैं। इससे सरकार का मनोबल गिरता है और नक्सलवाद पर नियंत्रण लगाने में बाधा महसूस की जाती है। उन्होंने कहा कि अब धीरे-धीरे इन क्षेत्रों की जनता इनकी साजिशों को समझने लगी है और जल्द ही इनसे छुटकारा मिल जाएगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के अध्यक्ष जगदेवराम उरांव ने कहा कि इस समाज में जो समस्याएं हैं वो दूर होने की बजाय बढ़ती जा रही हैं। हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए कि आखिर वो कौन से कारण हैं जो इसे खत्म नहीं होने दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज ये समाज अपने अस्तित्‍व और अस्मिता के लिए लड़ रहा है। जबकि हम उसे विकास की मुख्य धारा में जोड़ने की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि यह समाज तब तक विकास की मुख्यधारा में नहीं आ सकता जब तक कि उसको उसकी अस्मिता और अस्तित्‍व की लड़ाई की चिंता से मुक्त नहीं कर दिया जाता है।

कार्यक्रम को आरएसएस के प्रांत संघचालक उत्तराखंड चंद्रपाल सिंह नेगी ने भी संबोधित किया। जबकि कुन्दन सिंह टोलिया ने मुख्य अतिथि भैयाजी जोशी को ब्रह्मकमल भेंट किया। भैयाजी जोशी ने समाजसेवी कुशलपाल सिंह को शाल देकर सम्मानित किया। विधायक विकास नगर कुलदीप कुमार और सहसपुर राजकुमार ने भैयाजी जोशी को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन क्रमश: भाजपा के सांसद व राष्ट्रीय प्रवक्ता तरूण विजय, विधायक राजकुमार और अजय जोशी ने किया। जबकि विश्‍वसंवाद केन्द्र के गिरीशजी ने एकल गायन और जौनसार बावर के प्रसिद्ध रंगकर्मी नन्दलाल भारती ने सांस्कृतिक प्रस्‍तुतियां देकर लोगों का मनमोह लिया।

इस दौरान आरएसएस के क्षेत्र प्रचारक शिवप्रकाश, प्रान्त प्रचारक महेन्द्र, प्रान्त कार्यवाह शशिकांत दीक्षित, सहप्रांत कार्यवाह लक्ष्मीप्रसाद जायसवाल, कैबिनेट मंत्री मातबर सिंह कंडारी, विधायक गणेश जोशी, राष्ट्रीय जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष दिलीप सिंह भूरिया, अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के सहमंत्री कृपा प्रसाद सिंह, वनवासी कल्याण आश्रम दिल्ली के अध्यक्ष शिवकुमार कौल, छत्तीसगढ़ के पंचायत मंत्री रामविचार नेताम, सांसद सुदर्शन भगत, छत्तीसगढ़ के मंत्री केदार कश्‍यप, मंत्री विमला प्रधान, कुलपति दुर्गसिंह चौहान, डा. देवेन्द्र भसीन, डा. प्रभाकर उनियाल, विजय स्नेही, रामप्रताप साकेती, मेयर विनोद चमोली, धीरेन्द्र प्रताप सिंह, भाजपा प्रदेश प्रवक्ता सतीश लखेड़ा, दीप्ति रावत, पुष्कर सिंह धामी समेत बड़ी संख्या में मंत्रीगण, सांसद, विधायक समेत क्षेत्रीय जनता उपस्थित रही।

देहरादून से धीरेन्‍द्र प्रताप सिंह की रिपोर्ट.

कांग्रेस पार्टी के एक प्रवक्ता ने आरएसएस पर प्रतिबन्ध की मांग की है. उन्होंने पत्रकारों से बताया कि सरकार को चाहिए कि आरएसएस पर प्रतिबन्ध लगाने पर विचार करे. कांग्रेस का यह बहुत ही गैर-ज़िम्मेदार और अनुचित प्रस्ताव है.

लेखक शेष नारायण सिंह देश में हिंदी के जाने-माने स्तंभकार, पत्रकार और टिप्पणीकार हैं

लोकतांत्रिक व्यवस्था में सब को संगठित होने का अधिकार है. आरएसएस भी एक संगठन है उसके पास भी उतना ही अधिकार है जितना किसी अन्य जमात को. पिछले कुछ वर्षों से आरएसएस से जुड़े लोगों को आतंकवादी घटनाओं में पुलिस वाले पकड़ रहे हैं.. हालांकि मामला अभी पूरी तरह से जांच के स्तर पर ही है, लेकिन आरोप इतने संगीन हैं उनका जवाब आना ज़रूरी है. ज़ाहिर है कि आरएसएस से जुड़े लोगों को तब तक निर्दोष माना जाएगा जब तक वह भारतीय दंड संहिता की किसी धारा के अंतर्गत दोषी न मान लिया जाए. यह तो हुई कानून की बात लेकिन उसको प्रतिबंधित कर देना पूरी तरह से तानाशाही की बात होगी. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार कांग्रेस के इस अहमकाना सुझाव पर ध्यान नहीं देगी.


आरएसएस पर उनके ही एक कार्यकर्ता ने बहुत ही गंभीर आरोप लगाए हैं. असीमानंद नाम के इस व्यक्ति ने मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया है कि उसने हैदराबाद की मक्का मस्जिद में विस्फोट करवाया था, समझौता एक्सप्रेस, मालेगांव, अजमेर की दरगाह आदि धमाकों में वह शामिल था और उसके साथ आरएसएस के और कई लोग शामिल थे. किसी अखबार में छपा है कि मालेगांव धमाकों में शामिल एक फौजी अफसर ने इस असीमानंद को बताया था कि आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य इन्द्रेश कुमार, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए काम करता है. कांग्रेसी प्रवक्ता ने इस इक़बालिया अपराधी की बात को अंतिम सत्य मानने की जल्दी मचा दी और मांग कर बैठे कि आरएसएस पर प्रतिबन्ध लगा दो. अब कोई इनसे पूछे कि महराज आरएसएस पर इतने संगीन आरोप लगाए गए हैं और आप अगर उस पर प्रतिबन्ध लगवा देंगे तो इन सवालों के जवाब कौन देगा. एक प्रतिबंधित संगठन की ओर से पैरवी करने अदालतों में कौन जाएगा. जबकि देश को इन सवालों के जवाब चाहिए.

देश के सबसे बड़े राजनीतिक/सांस्कृतिक संगठन का एक बहुत बड़ा पदाधिकारी अगर पाकिस्तानी जासूस है तो यह देश के लिए बहुत बड़ी चिंता की बात है. इस हालत में केवल दो बातें संभव हैं. या तो उस पदाधिकारी को निर्दोष सिद्ध किया जाये और अगर वह दोषी पाया गया तो उसे दंड दिया जाए. प्रतिबन्ध लग जाने के बाद तो यह नौबत ही नहीं आयेगी. आरएसएस के ऊपर इस स्वामी असीमानंद ने आतंकवादी घटनाओं में शामिल होने के आरोप लगाए हैं. लोकतांत्रिक व्यवस्था में ज़रूरी है कि प्रत्येक अभियुक्त अपने ऊपर लगे आरोपों से अपने आप को मुक्त करवाने की कोशिश करे. हममें से बहुत लोगों को मालूम है कि आरएसएस इस तरह की गतिविधियों में शामिल रहता है लेकिन वह केवल शक़ है. असीमानंद का मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया बयान भी केवल गवाही है. फैसला नहीं. और जिसके ऊपर आरोप लगा है अगर वह प्रतिबन्ध का शिकार हो गया तो अपनी सफाई कैसे देगा. इसलिए आरएसएस पर प्रतिबन्ध की मांग करके कांग्रेसी प्रवक्ता ने लोकतांत्रिक व्यवस्था का तो अपमान किया ही है, एक राजनीतिक पार्टी के रूप में अपनी पार्टी का काम भी कम करने की कोशिश की है.

अगर आरएसएस पर इतना बड़ा आरोप लगा है तो कांग्रेस और अन्य धर्मनिरपेक्ष पार्टियों का ज़िम्मा है कि उन आरोपों को साबित करें. लेकिन यह आरोप राजनीतिक तौर पर साबित करने होंगे. अदालतों को अपना काम करने की पूरी छूट देनी होगी और निष्पक्ष जांच की गारंटी देनी होगी. ऐसी स्थिति में आम आदमी का ज़िम्मा भी कम नहीं है. उसे आरएसएस के आतंकवादी संगठन होने वाले आरोप के हर पहलू पर गौर करना होगा और अगर असीमानंद के आरोप सही पाए गए तो आरएसएस को ठीक उसी तरह से दण्डित करना पड़ेगा जैसे जनता ने 1977 में इंदिरा गाँधी को दण्डित किया था. और अगर आरएसएस पर प्रतिबन्ध लगाने की बेवकूफी हो गयी तो आरएसएस सरकारी उत्पीड़न के नाम पर बच निकलेगा, जो देश की सुरक्षा के लिए भारी ख़तरा होगा. दुनिया जानती है कि देश की एक बहुत बड़ी पार्टी के ज़्यादातर नेता आरएसएस के ही हुक्म से काम करते हैं. अगर उनके ऊपर लगे आरोप गलत न साबित हो गए तो यह देश की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं होगा. इसलिए ज़रूरी है कि आरएसएस को किसी तरह के प्रतिबन्ध का शिकार न बनाया जाए और उसे सार्वजनिक रूप से अपने आपको निर्दोष साबित करने का मौक़ा दिया जाय.

इस बीच आरएसएस और उसके अधीन काम करने वाली बीजेपी के कुछ नेताओं के अजीब बयान आएं हैं कि केंद्र सरकार की जांच एजेंसी उनके संगठन को बदनाम करने के लिए इस तरह के आरोप लगा रही है. यह गलत बात है. देश की जनता सब जानती है. इस देश में बहुत ही चौकन्ना मीडिया है, बहुत बड़ा मिडिल क्लास है और जागरूक जनमत है. अगर सरकार किसी के ऊपर गलत आरोप लगाएगी तो जनता उसका जवाब देगी. इसलिए आरएसएस वालों को चाहिए कि वे अपने आप को असीमानंद के आरोपों से मुक्त करने के उपाय करें, क्योंकि वे आरोप बहुत ही गंभीर हैं और अगर वे सच हैं तो यह पक्का है कि जनता कभी नहीं छोड़ेगी. हो सकता है कि सरकारी अदालतें इन लोगों को शक़ की बिना पर छोड़ भी दें. इंदिरा गाँधी ने 1975 में इमरजेंसी को हर परेशानी का इलाज बताया था लेकिन जनता ने उनकी बात को गलत माना और 1977 में उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा. 2004 में बीजेपी ने अरबों रूपया खर्च करके देश वासियों को बताया कि इंडिया चमक रहा है लेकिन जनता ने कहा कि बकवास मत करो और उसने राजनीतिक फैसला दे दिया. इसलिए असीमानंद के बयान के बाद हालात बहुत बदल गए हैं. और आरएसएस को चाहिए कि वह अपने आप को पाक-साफ़ साबित करे. और अगर नहीं कर सकते तो असीमानन्द और इन्द्रेश कुमार टाइप लोगों को दंड दिलवाने के लिए अदालत से खुद ही अपील करे. यह राष्ट्र हित में होगा.

मुझे बिकनी गर्ल्स या नंग-धड़ंग तस्वीरों को ही देखना होता तो मैं उस पर देख लेता

लेखक पुष्‍पेन्‍द्र सिंह राजपूत फरीदाबाद में पत्रकार तथा न्‍यज वेबसाइट फरीदाबाद मेट्रो के संपादक हैं.

65 साल की उम्र में नंग-धड़ंग तस्‍वीर देखने की इच्‍छा नहीं होती : ग्राहकों को लूट रही हैं मोबाइल टाटा और रिलायंस मोबाइल कंपनियां : देश की दो जानी मानी मोबाइल कम्पनियां इन दिनों अपने ग्राहकों को जमकर लूट रहीं हैं, क्योंकि इन कंपनियों की लाखों कोशिशों के बाद भी बाजार पर इनकी पकड़ ढीली होती जा रही है. हम इन कंपनियों के बारे में ऐसा क्यों लिख रहे हैं, आइये कुछ उदाहरण दे देता हूँ. कुछ महीने पहले मैंने रिलायंस कम्पनी का एक मोबाइल लिया, जिसका नंबर 9313444115 था. जो प्रीपेड था. दोस्तों इस मोबाइल में मैं जब भी पचास या सौ रूपये का कूपन डालता तुरंत तीस चालीस रूपये काट लिए जाते. इसकी शिकायत जब मैं कस्टमर केयर में करता तो वहां से जबाब आता कि आपने अपने मोबाइल से आर वर्ल्‍ड खोला है और उस पर बिकनी गर्ल्स को देखा है, तब उनसे मेरा जबाब होता कि भाई मेरे पास कई कंप्यूटर हैं, जिनमें चौबीस घंटे इंटरनेट सेवा की सुविधा है, अगर मुझे बिकनी गर्ल्स या नंग-धड़ंग तस्वीरों को ही देखना होता तो मैं उस पर देख लेता. मैं 1200 के मोबाइल की छोटी स्क्रीन पर ऐसा क्यों करूंगा.


इस बात पर उनका हठ होता कि आपने देखा है या आपके बच्चों ने देखा होगा? मैं फिर उनसे कहता की भाई बच्चे तो अभी बिलकुल छोटे हैं, वो ऐसा कर ही नहीं सकते और फिर मेरा मोबाइल मेरे पास ही रहता है. ऐसा कहने पर कभी-कभी वो मेरा कटा हुआ पैसा वापस डाल देते, लेकिन इस ठगी की बात मैं कई और लोगों से सुनकर सन्न रह गया. तब जाकर मुझे आभास हुआ कि उक्त कम्पनी वाले जनता के साथ ठगी कर रहे हैं और मैंने रिलायंस से पल्ला झाड़ लिया.

अब आते हैं टाटा मोबाइल पर जब मैंने रिलायंस बंद किया तो उसके बाद टाटा का सेल लिया, जो अब तक मजबूरीबस प्रयोग कर रहा हूँ. क्योंकि बार-बार नंबर बदलने पर अपना काफी नुकसान होना महसूस करता हूँ. टाटा के मोबाइल में भी रिलायंस जैसे ठगी महसूस कर रहा हूँ, क्योंकि टाटा वाले भी मेरे लिए महाठग साबित हो रहे हैं. अब टाटा का जो नंबर मेरे पास है उसका नंबर 9289463240 है और अपनी गाढ़ी कमाई से जब कभी उसे रिचार्ज करवाता हूँ तुरंत उसका बैलेंस काट लिया जाता है. इस बात की शिकायत जब कस्टमर केयर पर करता हूँ तो उनका जबाब होता है कि आपने 5282 पर मैसेज करते हैं इस कारण आपका बैलेंस काट लिया जाता है.

अब कैसे समझाऊं मैं उन जनाब या मोहतरमा को जो मुझे ऐसा जबाब देते हैं, क्योंकि मेरे पास मैसेज करने का वक़्त ही नहीं होता और उनकी 5282 के बारे में मुझे कुछ पता ही नहीं है. इसी झमेले को मैं और लोगों से भी सुनता हूं कि टाटा में पैसे डालो तुरंत काट लिए जाते हैं. तब जाकर मुझे अहसास होता है कि ये कम्पनी भी देशवासियों का खून चूस रहीं हैं, क्‍योंकि टाटा पर कुछ ऐसे मैसेज आते हैं जिन्हें आप पढ़ना भी चाहें तो आपके पांच रूपये तुरंत फुर्र हो जाते हैं. कुल मिलाकर मैं कहना चाहूंगा कि देश के ये बड़े घरानों की कम्पनियां लुटेरी हैं और इनके मालिक देशवासियों के खून चूसकर दिन प्रतिदिन और अमीर होते जा रहे हैं और देश में गरीबों की संख्या में बढ़ोत्तरी के जिम्मेदार कहीं ना कहीं ऐसे लोग भी हैं, जो अपनी तिजोरी भरने के लिए पता नहीं किस-किस तरीके से लोगों को लूट रहे हैं.

हमारे पड़ोस में रहने वाले क्राइम पोस्ट अखबार के मुख्य सम्पादक सोम दत्त शर्मा भी इन कंपनियों की ठगी का शिकार हैं. शर्मा जी का कहना है कि जब कभी रिचार्ज करवाता हूँ तो कभी गाने के नाम पर तो कभी नंग-धड़ंग तस्वीर देखने के नाम पर बैलेंस काट लिए जा रहे हैं. पैंसठ वर्षीय शर्मा जी का कहना है कि मैंने ना कभी कोई गाना लोड किया ना ही नंग-धड़ंग तस्वीर देखने की इच्छा होती है, फिर भी ठगी का शिकार हो रहा हू.

पूर्णिया विधायक राजकिशोर केशरी हत्‍याकांड : जांच को गलत दिशा में मोड़ने की कोशिश

पूर्णिया विधायक राजकिशोर केशरी हत्‍याकांड : जांच को गलत दिशा में मोड़ने की कोशिश : बिहार में विधायक राजकिशोर केशरी की हत्या के बाद जो कुछ हुआ वह मीडिया के लिये तथा बिहार की सरकार के लिये बहुत शर्मनाक रहा। हत्या के तुरंत बाद उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने टीवी पर दिये अपने बयान में खुलेआम यह कहा कि रुपम पाठक विधायक को ब्लैकमेल कर रही थी। साथ ही साथ यह भी जोड़ दिया कि किसी भी बड़े अखबार ने बलात्कार की खबर नहीं छापी थी।


यह अप्रत्यक्ष रुप से संकेत था कि बिहार के सभी तथाकथित बड़े अखबार और पत्रकार सरकार और उसके नुमांइदों के खिलाफ़ बोलने से परहेज करते हैं। अन्यथा कोई कारण नहीं था कि एक विधायक पर बलात्कार का मुकदमा दर्ज हो और अखबारों को इसमें कोई न्यूज वैल्यू नजर न आये।

बिहार के अखबारों का सबसे घृणित रुप विधायक हत्याकांड में सामने आया। हत्या के केस में नवलेश पाठक को नामजद अभियुक्त बनाया गया। केस विधायक के भतीजे ने दर्ज कराया। पुलिस ने बिना किसी जांच के नवलेश पाठक को गिरफ़्तार कर लिया। पूर्णिया के एसपी हसनैन का कहना है कि नवलेश पाठक के फ़ोन रिकार्ड से पता चलता है कि उन्होंने रुपम पाठक से बहुत बार बात की है। विधायक केशरी के भतीजे ने एफ़आईआर में लिखा है कि हत्या के समय नवलेश पाठक बाहर खड़ी रुपम पाठक की मारुति वैन में बैठे हुये थे। देश के कानून यानी सीआरपीसी के अनुसार ही पुलिस तथा न्यायालय को कार्य करना है। सीबीआई को भी उसी प्रक्रिया का पालन करना है।

किसी भी व्यक्ति को गिरफ़्तार करने के बाद अगर पर्याप्त साक्ष्य है तो 24 घंटे के अंदर सीजेएम के समक्ष प्रस्तुत करना है। साथ में मेमो आफ़ एवीडेंस भी दाखिल करना है। मेमो आफ़ एवीडेंस वस्तुत: प्राइमा फ़ेसी साक्ष्य है जिसके आधार पर पुलिस गिरफ़्तार व्यक्ति को अपराधी मानती है। इसके बाद न्यायालय की कारवाई शुरु होती है। सीजेएम का दायित्व है देखना की क्या गिरफ़्तार व्यक्ति के खिलाफ़ प्रथम दृष्‍या अपराधी ठहराने योग्य पर्याप्त साक्ष्य है। अगर पर्याप्त साक्ष्य नहीं है तो सीजेएम गिरफ़्तार व्यक्ति को मुक्त करने का आदेश देंगे और साक्ष्य रहने की स्थिति में उसे जुडीशियल रिमांड में लेंगे।

ज्यादातर केस में पुलिस एक कागज दाखिल कर देती है, जिसमें सिर्फ़ इतना लिखा रहता है कि गिरफ़्तार व्यक्ति के खिलाफ़ पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं और उस एक कागज के टुकड़े के आधार पर गिरफ़्तार को जुडिशियल रिमांड मे ले लिया जाता है। मेरे पूरे करियर में मात्र दो बार ऐसा हुआ कि सीजेएम ने हत्या के मामले में गिरफ़्तार किये गये व्यक्ति को, मेमो आफ़ एवीडेंस में दर्शाये गये साक्ष्य को अपर्याप्त मानते हुये मुक्त करने का आदेश दिया है। पुलिस की भूमिका अनुसंधान तक सीमित होती है। साक्ष्यों के अवलोकन का कार्य न्यायपालिका का होता है। साक्ष्य पर्याप्त है या नहीं यह तीन स्तर पर देखा जाता है, प्रथम जब अभियुक्त को गिरफ़्तारी के बाद न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है, दूसरा जब केस का अनुसंधान पूरा करके पुलिस फ़ाइनल या चार्जशीट न्यायालय में दाखिल करती है और तीसरी बार जब चार्ज फ़्रेम किया जाता है।

न्यायालय को इससे मतलब नहीं है कि पुलिस ने किसी अभियुक्त के खिलाफ़ चार्जशीट दिया है या फ़ाइनल। न्यायालय केस डायरी में अनुसंधान के क्रम में संकलित किये गये साक्ष्यों का ही अवलोकन करती है। अगर मेमो आफ़ एवीडेंस में पर्याप्त साक्ष्य है तो अभियुक्त को न्यायिक हिरासत में लेती है और अनुसंधान के बाद डायरी में पाये गये साक्ष्य के आधार पर केस का काग्निजेंस लेकर ट्रायल की प्रक्रिया शुरु की जाती है। चार्ज फ़्रेम के समय भी न्यायालय का कार्य है यह देखना कि किसी धारा के अंदर किस अभियुक्त के खिलाफ़ चार्ज फ़्रेम किया जाय। यहां यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि साक्ष्य का अर्थ वह सबूत है जिसके बिना पर सजा हो सके। evidence must lead to conviction.

अभी आरुषि केस में सीबीआई ने फ़ाइनल दाखिल किया, कारण बस इतना था कि सीबीआई के पास सजा करवाने योग्य साक्ष्य नहीं थे। मैंने भी अध्ययन करने के बाद पाया कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य जो राजेश तलवार और उनकी पत्नी की तरफ़ हत्या में शामिल होने का संकेत कर रहे थे, उन्हें भी न्यायालय में साबित करने योग्य साक्ष्य सीबीआई के पास नहीं है, वैसी स्थिति में सीबीआई ने सारी बदनामी झेलते हुये वही किया जो उसे करना चाहिये था। बहुत जागरुक हूं मैं लेकिन आरुषि केस में सीबीआई के अनुसंधान की आलोचना मैंने नहीं की।

गलती की शुरुआत होती है स्थानीय पुलिस के अनुसंधान से। पुलिस कभी भी फ़िंगर प्रिंट नहीं उठाती है, न ही विभिन्न एंगल से लाश तथा घटना स्थल का फ़ोटो लेती है। केशरी के केस में भी यही हुआ है। जिस स्थल पर केसरी की हत्‍या होने तथा जिस परिस्थिति में हत्या होने की बात की जा रही है, वह संदिग्ध है। जाड़े के मौसम में शाल के अंदर से चाकू निकालकर एक खड़े व्यक्ति के पेट में 6 ईंच घोप देना संभव नहीं है। यह तभी हो सकता है जिसकी हत्या हुई हो वह पूरी तरह इत्मिनान के साथ सोया हो या खड़ा हो तथा शरीर पर बहुत कम मोटा कपड़ा हो। चाकू घुसने के बाद स्वाभाविक रुप से वह व्यक्ति प्रतिक्रिया करेगा। एफ़आईआर में जो वर्णित किया गया है, वह तो गलत है ही। उसके बाद की पुलिस की कारवाई भी गलत है। कोई फ़िंगर प्रिंट नहीं लिया गया, न तो घटना स्थल की विभिन्न एंगल से फ़ोटोग्राफ़ी की गई।

रुपम पाठक पर भी हत्या के बाद जानलेवा हमला हुआ लेकिन उसका एफ़आईआर रुपम पाठक के हवाले से न दर्ज कर के एक महिला पुलिस वाली के द्वारा दर्ज करवाया गया, जिसमें 1000 अनाम लोगों को अभियुक्त बनाया गया है। यानी पुलिस के स्तर पर पूरे प्रकरण में पक्षपात किया गया है। न्यायलय स्तर पर दो भयानक भूल हुई है, एक तो यह कि न्यायालय के समक्ष जब रुपम पाठक को प्रस्तुत किया गया तब जुडिशियल रिमांड में भेजने के पहले पूछना चाहिये था कि उसके साथ क्या हुआ और किसने मारपीट की। न्यायालय को सुओ मोटो यानी स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है। सीजेएम ने रुपम पाठक के उपर हत्या के बाद हुये कातिलाना हमले का संज्ञान क्यों नहीं लिया यह भी आश्चर्य की बात है।

दूसरी भूल तब हुई जब नवलेश पाठक को गिरफ़्तार कर के न्यायालय में प्रस्तुत किया गया तब न्यायालय को यह देखना था कि क्या नवलेश पाठक के खिलाफ़ मेमो आफ़ एवीडेंस में पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं, जिसके आधार पर उनको जुडिशियल रिमांड में लिया जा सके या सिर्फ़ यह लिख कर पुलिस ने दे दिया है कि अभियुक्त एफ़आईआर में नामजद है तथा उसके खिलाफ़ पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध है? राज्य पुलिस और सीबीआई दोनों जगह पर एक ही आईपीएस होता है, अमूमन राज्य से ही सीबीआई में आईपीएस भेजे जाते हैं, फ़िर इनकी कार्यप्रणाली में इतना बड़ा अंतर क्यों? सीबीआई पहले अनुसंधान करती है, साक्ष्य इकट्ठे करती है फ़िर किसी को गिरफ़्तार करती है। राज्य पुलिस केस दर्ज होते ही सबसे पहले गिरफ़्तारी करती है।

खैर अभी तक जो कुछ हुआ है, उससे इतना तो स्पष्ट है कि पूरी जांच पूर्वाग्रह से ग्रसित है। पूर्णिया का एसपी राजनितिक दबाव में काम कर रहा है। नवलेश पाठक को गिरफ़्तार करके उनके मनोबल को तोड़ने का काम किया गया है ताकि पुलिस के गलत जांच मे कोई बाधा न बने। जहां तक पत्रकारों की बात है, तो सभी बड़े अखबार और पत्रकारों का कमीनापन और दोगलापन सामने आ चुका है। पूरी तरह नंगे हो जाने के वावजूद पत्रकारों के कमीनेपन में अभी भी कोई कमी नहीं आई है। अब कुछ नामचीन अखबार और पत्रकार रुपम पाठक के स्कूल की आर्थिक स्थिति की जांच की बात कर रहे हैं। विरोध का एक तरीका मेरे दिमाग में आया है। वह सारे लोग जो वास्तव में पत्रकारिता से जुड़े हैं और दलाली नहीं करते, अपने बैठने की जगह या घर में एक कागज पर लिखकर टांग दें कि बिहार के फ़लाना अखबार सता के दलाल हैं। मैं आज ही इसे शुरु कर रहा हूं।

लेखक मदन कुमार तिवारी बिहार के गया जिले के निवासी हैं. पेशे से अधिवक्ता हैं. 1997 से वे वकालत कर रहे हैं. अखबारों में लिखते रहते हैं. ब्लागिंग का शौक है. भड़ास4मीडिया के कट्टर पाठक और समर्थक हैं. अपने आसपास के परिवेश पर संवेदनशील और सतर्क निगाह रखने वाले मदन अक्सर मीडिया और समाज से जुड़े घटनाओं-विषयों पर बेबाक टिप्पणी करते रहते