Monday, September 6, 2010

कुकर्रामठ ॠण मुक्तेश्वर मंदिर

डिण्डौरी जिले में पुरातत्व महत्व का एकमात्र स्थान कुकर्रामठ है। जिला मुख्यालय से अमरकंटक जाने वाली सड़क पर 15 किलोमीटर दूर कुकर्रामठ गॉव है। यहां पर कल्चुरी कालीन भव्य शिव मंदिर स्थित है। यह शिव मंदिर स्थित ॠण मुक्तेश्वर नाम से प्रसिद्व है। सर्वसाधारण इस मंदिर को कुकर्रामठ के नाम से जानते हैं। यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेदक्षण द्वारा सुरक्षित स्मारक है।


इस प्राचीन महादेव के मंदिर को प्राचीन स्मारक, पुरातत्वीय स्थल सुरक्षा अधिनियम 1958 के अंतरर्गत संरक्षित घोषित किया गया है। सुरक्षा के दृष्टिकोण से पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर को चारों ओर तारों से घेर दिया गया है। मंदिर में अधिष्ठान, वेदी अंत, अंतर पात्र जंघा वरण्डिक, शुक्र नारिका, ग्रीवा तथा शिखर का निर्माण किया गया है।

इतिहासकारों के अनुसार इसका निर्माण कल्चुरी नरेश कोकल्ल देव प्रथम द्वारा नवीं सदी 860—900 ई. में कराया था। यही कोकल्ल नाम कुकर्रा के रूप में विकसित हुआ। कल्चुरी कालीन राजा ने कुकर्रामठ नगर की स्थापना की। मंदिर का निर्माण चौकोर अधिष्ठान पर हुआ है। इसकी लंबाई अधिकांश पाषाण खंडों में कलात्मक आकर्षण का केन्द्र है। प्रवेश द्वार में नक्काशीदार पाषाण खंडों का उपयोग किया गया है। मंदिर का निमार्ण ऐसे पत्थर से किया गया है जिसे न तो चूना कहा जा सकता है और न ही संगमरमर। चूने के पत्थर के कारण यह मंदिर परत—परत टूट रहा है। मंदिर के ऊपरी भाग में मोटी—मोटी दरोरें आ गयी हैं। स्थापत्य सुन्दर और अलंकृत है। यह मंदिर कल्चुरी कालीन वास्तुकला का अच्छा नमूना है।

मंदिर के द्वार स्तम्भ में मूर्तियों तथा स्मम्भ की शिराओं में दो घुड़सवारों को घुड़सवारी करते हुए रेखांकित किया गया है। गर्भगृह में विशाल शिवलिंग की स्थापना की गई है, शिपिण्ड के चारों ओर जलहरी गनाई गई है। मंदिर के बाहर गौतम बुद्व की मूर्ति रखी हुई है। इस मूर्ति के दोनों किनारों पर शेर की आकृति बनी हुई है।

कुकर्रामठ का नामकरण एक कुत्ते की कहानी से भी जुड़ा है। एक बार किसी बंजारे को पैसों की आवश्यकता पड़ी। पैसे के बदले में उसने अपने कुत्ते को एक साहूकार के पास गिरवी रखा। कुछ समय बाद साहूकार के घर में चोर चोरी करने के लिए घुसे, वही कुत्ता चुपचाप चोरों की गतिविधियों करे देखता रहा। चोरी करने के बाद चोर बाहर निकले तक वह कुत्ता भी उनके पीछे गया। चोरों ने सारा माल एक तलाब में छिपा दिया। कुत्ता चुपचाप देखता रहा। सुबह जब साहूकार की नींद खुली तो पता चला कि घर में चोरी हो चुकी है। कुत्ता वहां आकर जोर से भौंकने लगा और साहूकार की धोती खीचकर तालाब के ओर ले गया जब सभी तालाब के किनारे पहुंचे तो कुत्ते ने तालाब के अन्दर चोरों द्वारा छिपाये गये माल को मुंह से निकालकर सबके सामने रखना शुरू कर दिया।

साहूकार ने इस वफादारी से प्रभावित होकर कुत्ते को ॠणमुक्त कर कर दिया और ॠणमुक्त संबंधी पत्र लिखकर उसके गले में बॉध दिया। उसे पुराने मालिक के पास जाने को कह दिया। संयोग से बंजरा अपने कुत्ते को ॠणमुक्त करने ही आ रहा था कि रास्ते में उसे कुत्ता मिल गया। उसे देख बंजारा यह समझा कि कुत्ता साहूकार के यहाँ से भाग आया है। यह सोचकर गुस्से में उसने कुत्ते पर ऐसा प्रहार किया कि वह मर गया। फिर जब उसकी नजर उसके गले में बँधे पत्र पर पड़ी तो उसने पत्र खोलकर पढ़ा और शोकाकुल होकर रोने लगा और उसकी स्मृति में वहीं मठ का निर्माण करा दिया गया। कालांतर में यह स्थान कुकर्रामठ के नाम से जाना जाने लगा। यहाँ कुत्ते के काटने पर इस प्रतिमा के पत्थर को घिसकर पिलने से कुत्ते का जहर समाप्त हो जाता है।

केन्द्रीय पुरातत्व संग्रहालय द्वारा नियुक्त केयर टेकर श्री पाण्डे ने बताया कि कुकर्रामठ में कल्चुरी कालीन बनवाये गये छह मंदिरों का समूह था, लेकिन समय एवं मौसम के प्रतिकूल प्रभावों से सभी मंदिर खण्डहर हो गये हैं। अब तो उनके अवशेष भी नहीं दिखते। कुकर्रामठ मंदिर में शिवलिंग स्थित होने के कारण ग्रामवासी आकर पूजा—पाठ कर लेते हैं और जल चढ़ाते हैं।

ॠण मुक्तेश्वर मंदिर से लोगों की गहरी भावनाएँ जुड़ी हुई हैं। यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के समय यहाँ मेला लगता है। इस मेले में आपास के ग्रामीण आते हैं। इसी प्रकार जिले की सबसे प्राचीन मड़ई यहाँ लगती है। मड़ई का प्रांरभ ॠण मुक्तेश्वर मंदिर में शिव अर्चन से होता है।

जिले का पुरातात्वि महत्व का यह मंदिर अपने जीर्णोद्वार की बाट जोह रहा ह

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