Sunday, September 5, 2010

महात्मा गांधी नरेगा के अधीन जनता के सशक्तीकरण के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी

महात्मा गांधी नरेगा के अधीन जनता के सशक्तीकरण के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी
*अतुल के तिवारी

महात्मा गांधी नरेगा ग्रामीण भारत के भविष्य को संवारने के रास्ते में एक दूरदर्शितापूर्ण औजार की तरह है जिसे अब अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से सुसज्जित किया जा रहा है। इसका श्रेय सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आई सी टी) के इस्तेमाल को जाता है। महात्मा गांधी नरेगा में आईसीटी का इस्तेमाल यह सुनिश्चित करेगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरतमंदों और गरीबों तक इसका लाभ पहुंचे, जो पारदर्शिता की दिशा में एक अन्य कदम है। इसके लिए विभिन्न हितधारकों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर परामर्श की प्रक्रिया जोर पकड़ रही है और योजना आयोग, भारतीय सार्वभौमिक पहचान प्राधिकरण (यूआईएडीएआई) और राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने इस अभियान को बढ़ावा दिया है। इसके लिए ग्रामीण विकास मंत्री डॉ. सी.पी जोशी पथप्रदर्शक की भूमिका निभा रहे हैं जो महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम और इसकी प्रक्रियाओं का प्रभावकारी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए दृढ़संकल्प हैं।
अब महात्मा गांधी नरेगा में सार्वजनिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने, पारदर्शिता बढ़ाने के साथ ही उन गतिविधियों को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है जिनसे हाथ में लिए गए कार्यों की उत्पादकतापूर्ण संभावनाओं का लाभ प्राप्त किया जा सके ताकि यह धारणीय विकास के लिए एक मंच बन सके।
जमीनी स्तर पर पारदर्शिता लागू करने के क्रम में ग्रामीण विकास मंत्रालय आईसीटी उपकरण, विशेषकर बायोमेट्रिक और यूआईएडीएआई के साथ उसे जोड़ने का विचार कर रहा है। इसके बल पर कार्य स्थल पर बायोमेट्रिक उपस्थिति की शुरूआत हो और कुल मिलाकर महात्मा गांधी नरेगा की वितरण प्रणाली के क्रियान्वयन में सुधार हो सके, जिसमें पंजीकरण, कार्य की मांग, तिथिवार प्राप्तियों को जारी करना, कार्य का आबंटन, जीपीएस के साथ कार्यस्थल पर उपस्थिति, कार्य का मापन और पारिश्रमिक का भुगतान शामिल हो।
क्षेत्रीय परीक्षण के लिए और बायोमेट्रिक आधारित आईसीटी से लैस कामगारों के लेन-देनों को तैयार करने के लिए आंध्र प्रदेश (रंगारेड्डी और विशाखापत्तानम), केरल (पलक्कड और वायानाड), ओड़िशा (कटक और मयूरभंज), उत्तर प्रदेश (उन्नाव) और राजस्थान (भीलवाड़ा) में शीर्ष पहलें की गईं। तमिलनाडु (कुड्डालोर) में एक अन्य शीर्ष परियोजना लागू की गई है जो कम लागत वाले एटीएम हैं, जिनमें उंगली के निशान की पहचान करने और स्थानीय भाषा को परखने की क्षमता है। ये शीर्ष परियोजनाएं पंजीकरण से लेकर पारिश्रमिक भुगतान और डाटा रखने तक बायोमेट्रिक क्षमता वाले आईसीटी अप्लीकेशनों के इस्तेमाल की व्यवहार्यता को प्रदर्शित करती हैं।
रोल आउट प्लान
शीर्ष परियोजनाओं से प्राप्त फीडबैक के आधार पर एक राष्ट्रव्यापी रोल आउट प्लान तैयार किया गया है, जिसमें बायोमेट्रिक डाटाबेस की राष्ट्रव्यापी शुरूआत और कुल मिलाकर वितरण प्रणाली में सुधार के लिए आईटीसी उपकरण का इस्तेमाल शामिल है।
कार्यस्थल पर बायोमेट्रिक और जीपीएस-युक्त आईसीटी उपकरणों के इस्तेमाल करने का प्राथमिक उद्देश्य फर्जी कामगारों को हटाना और जॉब कार्डों की समस्या को स्थानीय नेतृत्व की सुविधानुसार हल करना है। बायोमेट्रिक डाटा के साथ एमआईएस को जोड़ने से हमें लंबे समय तक सही समय में मांग तक पहुंचने, तिथिवार प्राप्तियां तैयार करने, कार्य का आबंटन करने के साथ ही मापन और भुगतान के संदर्भ में देरी में कमी लाने में मदद मिलेगी।
इसके लिए महात्मा गांधी नरेगा के सभी कामगारों का बायोमेट्रिक डाटा संग्रह करना और राज्य डाटा भंडार तैयार करना आवश्यक होगा ताकि कार्यस्थल पर लैप टॉप जैसे यंत्र के माध्यम से जीपीआरएस, सीडीएमए, पीएसटीएन अथवा इंटरनेट संपर्क के द्वारा महात्मा गांधी नरेगा के कामगारों की तत्क्षण उपस्थिति का सत्यापन किया जा सके। इसके माध्यम से मस्टर रोल के रिकॉर्डों और महात्मा गांधी नरेगा के वेब आधारित एमआईएस को अद्यतन भी किया जा सकता है और माइक्रो-मोबाइल एटीएम उपकरण के साथ बैंकों के साथ व्यावसायिक संवाद के संदर्भ में भी मदद की जा सकती है ताकि कामगारों को उनके घर पर पारिश्रमिक का भुगतान किया जा सके।
आईसीटी का इस्तेमाल
आईसीटी से लैस प्रणाली के बल पर पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ावा देने में काफी मदद मिलेगी। इससे मापन और भुगतान में देरी को घटाने में भी काफी मदद मिलेगी। इसके अलावा, इस प्रकार तैयार किये गये डाटा का इस्तेमाल यूआईडीएआई द्वारा यूआईडी नंबर तैयार करने के लिए भी किया जा सकता है। बैंकों और डाकघरों के द्वारा भी व्यावसायिक पत्राचार के प्रारूप के माध्यम से महात्मा गांधी नरेगा खाते के संदर्भ में इसका इस्तेमाल हो सकेगा।
बड़े पैमाने पर संचालनों, विभिन्न सेवाओं तक पहुंच की सीमाओं और सूचना की मात्राओं के पारदर्शी तरीके से संचालन संबंधी जरूरतों के कारण आईसीटी का इस्तेमाल यहां यथोचित माना जा रहा है। आईसीटी सुविधाओं के द्वारा ग्राम पंचायत और ब्लॉक कार्यालय दोनों के कार्यक्रम अधिकारी की सहायता करने के साथ ही सूचना तक सार्वजनिक पहुंच सुनिश्चित करने के साथ ही ऑनलाइन लेन-देन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
आईसीटी प्रौद्योगिकियों के लाभ
ग्राम पंचायत तात्कालिक प्रभाव से आईसीटी प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल महात्मा गांधी नरेगा के लिए समयानुसार सभी प्रकार के लेन-देनों के लिए कर सकती हैं। आईसीटी लैस समाधानों से हमें अंतिम दौर तक संपर्कता प्राप्त होती है और जमीनीं स्तर पर अभिनवता के बल पर कामगारों को उनके अधिकारों तक पहुंच कायम कराने के साथ ही क्रियान्वयन एजेंसी को उत्तरदायी बनाया जा सकता है।
महात्मा गांधी नरेगा एक इस प्रकार की सामाजिक सुरक्षा का विधान है जो मांग होने पर रोजगार के अधिकार को सुनिश्चित करता है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवार को एक वर्ष में न्यूनतम 100 दिनों का रोजगार प्रदान करके उनकी जीविका सुरक्षा को बढ़ाना है। फरवरी, 2006 में अपनी शुरूआत से लेकर अब इसकी पहुंच 619 जिलों, 6400 ब्लॉकों, छह लाख गांवों और लगभग 2.35 लाख ग्राम पंचायतों तक हो गई हैं। वर्ष 2006 में अपनी शुरूआत से लेकर अब तक 777 करोड़ श्रम दिवसों का सृजन हो चुका है जिसमें महिलाओं का आधा हिस्सा है और अनुसूचित जाति।#जनजाति का हिस्सा आधे से ज्यादा है। इसके अधीन 95446 करोड़ रूपये के कुल व्यय का 68 प्रतिशत भाग मजदूरी पर खर्च किया जाता है। बैंकों#डाकघरों में इसके कामगारों के 9.19 करोड़ से अधिक खाते खोले जा चुके हैं, जिससे गरीब लोगों के बीच बचत को बढ़ावा मिला है। महात्मा गांधी नरेगा के अधीन 45 लाख से भी अधिक कार्यों को पूरा किया गया है जिनमें से 50 प्रतिशत से अधिक कार्य जल संरक्षण पर आधारित हैं।
महात्मा गांधी नरेगा के क्रियान्वयन में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी को शामिल करने से इसमें पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बढ़ावा देने में काफी मदद मिलेगी।
(पसूका विशेष लेख)
*निदेशक (मीडिया और संचार),
पत्र सूचना कार्यालय, नई दिल्ली

Date: 01-09-2010

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