Sunday, September 26, 2010
स्वायतत्ता तोहफा नहीं, गुलामी की दावत
स्वायतत्ता तोहफा नहीं, गुलामी की दावत
गत दिनों लोक सभा में जब कश्मीर के बिगड़ते हालात पर चर्चा के दौरान ठोस कदम उठाने की पुरजोर वकालत की जा रही थी, जम्मूकश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और केन्द्र सरकार में मंत्री डॉ.फारुख अदुल्ला ने फरमाया कि ऐसे वत जब भारत सरकार दुनिया की एक बड़ी ताकत है और जम्मूकश्मीर के लद्दाख की ओर चीन बढ़ने के प्रयास में है, या जम्मूकश्मीर की आजादी की मांग मुनासिफ कही जा सकती नहीं। उनका इशारा आल पार्टी हुर्रियत की ओर था।
इसके पहले वरिष्ठ नेता डा.मुरली मनोहर जोशी ने बड़े साफ शदों में कहा कि जम्मूकश्मीर की स्वायत्तता अथवा आजादी दिये जाने का कोई प्रश्न नहीं उठता। यदि स्वायतत्ता दिये जाने पर विचार किया गया तो पिंडोरा वास खुल जाएगा जिसका कोई अंत नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की अपनी दीर्घकालिक कूटनीति है. वे पाकिस्तान के जरिये चीन, दक्षिणी एशिया और खाडी के मुल्कों की चौकसी करना चाहते हैं। जम्मूकश्मीर के कथित अवाम को उकसाने और अलगाववादियों के भारत विरोध की प्रायोजित योजना का रहस्य समझा जाना चाहिए। फिर जम्मू कश्मीर का असली आवाम तो वे पांच लाख कश्मीरी पंडित हैं जिन्हें जम्मू कश्मीर से खदेड़कर शरणार्थी बना दिया गया है। सियासत के मजहबीकरण के कारण बहकावे अथवा विदेशी दबाव में आकर जम्मूकश्मीर के बारव् में अपनी नीति में तनिक भी नरमी लाने का मतलब लम्हों ने खता की सदियों ने सजा पायी होगा। भारतीय जनता पार्टी ने देश की राष्ट्रीय अखण्डता, सार्वभौम सत्ता और भारतीय अस्मिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए कहा कि यही समय है, जब भारत को स्पष्ट संदेश देकर अलगाववादियों, पाकिस्तान और अमेरिका से साफ सपाट शदों में कह देना चाहिए कि जम्मू कश्मीर के मामले में कोई भी दबाव अथवा वार्ता कबूल नहीं है। पाकिस्तान से डायलाग का जहां तक सरोकार है, उसे पाक अधिकृत कश्मीर को खाली कर उसे मुत करने पर विचार करना चाहिए। लेकिन विडंबना यह है कि केन्द्र में कांग्रेसनीत यूपीए सरकार देश की अखण्डता, सुरक्षा को दोयम दर्जे की प्राथमिकता मान चुकी है। जम्मूकश्मीर में अलगाववादियों के नरम और गरम जो दो धड़े विपरीत ध्रुव हुआ करते थे यूपीए सरकार की नरम नीतियों को भारत की कमजोरी समझ बैठे है और जो पांच सूत्रीय कार्यक्रम उन्होंने केन्द्र सरकार से बातचीत का आधार बनाया है खुल्लम खुल्ला भारत की अखण्डता को चुनौती और संविधान के प्रति खुलाद्रोह है। आल पार्टी हुर्रियत काँफ्रेंस के हार्ड लाइनर सैयद अली शाह जिलानी जम्मू कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय विवाद बताकर क्षेत्र का विसैन्यीकरण, अपराधिक मामलों में निरुद्ध, कश्मीरियों, आतंकवादियों की रिहायी, फौजी कर्मियों के मानवाधिकार उल्लंघन मामले में जांच, कार्यवाही और सशस्त्र बल विशेष् अधिकार कानून की समाप्ति पर अड़े थे। नरम धड़ा मीर वाइज फारुख जो बातचीत के लिए आगे आ रहे थे, ने अब पैतरा बदल लिया है और वे गिलानी के एजेंडा को कबूल करते हुए आत्म निर्णय आजादी की भी फरमाइश करने लगे हैं। यह परिवर्तन आने की बजह यह मानी जा रही है कि पिछले तीन माह में आईएसआई ने अपनी रणनीति बदलकर सुरक्षा बलों को उकसाने के लिए पथराव करने वाला फोर्स बना डाला है। जिसे कलेंडर के मुताबिक ट्रकलोड पत्थर उपलध रहते हैं। स्कूल जाने वाले छात्रों के बस्तों में किताबों की जगह पत्थर रखवाये जाते हैं, बुर्काधारी महिलाएं भी पत्थराव में शामिल होती है। सुरक्षा बल निशाना बन रहे हैं। भीड़ में आतंकवादी गोली चलाकर भी सुरक्षा जवानों को मौत की नींद सुला रहे हैं। पैंसठ के करीब किशोर उकसावे की कार्यवाही के बाद सुरक्षा बलों के गोली चालन का शिकार हुए हैं और इसने सुरक्षा बल विरोधी माहौल बनाने की रणनीति कामयाब हुई है। इसे पाकिस्तान और अलगाववादी अपनी सफलता मान रहे हैं। उमर अदुल्ला अब तक के सबसे निकम्मे मुख्यमंत्री सिद्ध हो चुके हैं। जम्मूकश्मीर के अवाम और सरकार के बीच विश्वास का सेतु बनाने में उनकी विफलता का खमियाजा देश को भुगतना पड़ रहा है। ऐसे में भले ही जम्मूकश्मीर की निर्वाचित सरकार को भंग न किया जाए। लेकिन विधायक दल में बदलाव कर सत्ता नेतृत्व सामने लाना समय की मांग है, वहां कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की गठबंधन सरकार है और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के सखा होने का दावा करने वाले उमर अदुल्ला केंद्रीय मंत्रियों, प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी के आंख का तारा बने हुए हैं। जब जम्मूकश्मीर में हालात काबू से बाहर हो रहे हैं, जम्मू कश्मीर सरकार और प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह तुष्टीकरण और सियासत के मजहबीकरण की हीलिंग टच के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। उमर अदुल्ला जम्मू कश्मीर की संवेदनशील विस्फोटक स्थिति के प्रति गंभीर होते तो वे कदापि ईद के तोहफे के रूप में राजनीतिक पैकेज स्वायतत्ता की मांग नहीं करते। ईद को ईद ही रखा जाना था। सियासत नहीं की जाना थी। और न वे सशस्त्र बल विशेष् अधिकार कानून में संशोधन और उसे उठाने की मांग भी नहीं करते। उन्हें अहसास होता कि सशस्त्र बलों की तैनाती और विशेष् अधिकार कानून पर अमल परिस्थितिवश किया गया है। मुफ्ती मोहम्मद सईद ने गृहमंत्री के रूप में निभाया। स्वतंत्र चिंतकों और सुरक्षा विशेष्ज्ञों का मत है कि जम्मूकश्मीर में सिर्फ दो आवश्यकता अहंम हैं, पहले तो हिंसा समाप्त हो। दूसरव् मजहबीकरण की बात बिल्कुल बंद हो। लेकिन डॉ.मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस को ये दोनों बातें गवारा होगी, इस बात का इत्मीनान नहीं किया जा सकता है। इस बात को इशारव् में समझने के लिए एक उदाहरण पर्याप्त होगा। संसद पर आतंकवादी हमले के प्रमुख अभियुत अफजल गुरु को जब सत्र न्यायालय, उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा दी इसे तामील नहीं होने देने में कांग्रेस की भूमिका प्रमुख थी। तब जम्मू कश्मीर में गुलाम नबी आजाद मुख्यमंत्री थे और उन्होंने ही सबसे पहले केन्द्र से नरमी बरतने की दरखास्त की थी। इससे भी खतरनाक बात यह हुई कि जब अफजल गुरु को फांसी की सजा के विरोध में जम्मू कश्मीर में विरोध प्रदर्शन में जुलूस निकले उसमें कांग्रेस के कार्यकर्ता भी प्रचुर संख्या में शरीक हुए। बात यही समाप्त नहीं होती। तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने पुरजोर कोशिश की कि अफजल गुरु की फांसी के मामले में फाइल दिल्ली सरकार के पास अटकी रहे। राष्ट्रपति निरीह बने रहे और इरादतन यही हुआ। बाद में पी.चिदम्बरम भी अफजल गुरु को फांसी की सजा पर अमल करा पाने में निरीह साबित हुए। आतंकवाद से लड़ने राष्ट्रीय अखण्डता की सुरक्षा के लिए यदि कांग्रेस का यह आगाज है, तो अंजाम का अनुमान लगाना कठिन नहीं है।
दरअसल जम्मूकश्मीर में अवाम के लिए राजनीतिक, आर्थिक कोई समस्या नहीं है। देश के २ऋ सूबों से सबसे अधिक अधिकार यहां प्राप्त है। अनुच्छेद ३७० ने जम्मू कश्मीर को विशिष्ठ राद्गय का दर्जा दिया हुआ है। दो निशान, दो प्रधान की व्यवस्था नहीं है। फिर भी दो विधान है। यही कारण है कि राजनेता वोट पालिटिस करके जनता को गुमराह करते हैं। स्वायत्तता का एजेंडा जनता का नहीं है। यह पाकिस्तान के विफल हुमरानों का है, जो अलगाववादियों के जरिए पराजय बोध व्यत कर भारत को तोड़ने का दंभ भरते हैं। पाकिस्तान ने भारत पर १ऽ४ऋ, १ऽ६५, १ऽ७१ के युद्ध थोपे, बाद में कारगिल पर हमला कर भारत की पीठ में छुरा झोंका और मुंह की खायी। अटल बिहारी वाजपेयी अमन का पैगाम लेकर बस से लाहौर गये लेकिन पाकिस्तान जो मंसूबा युद्ध के मैदान में पूरा नहीं कर पाया, वह आतंकवाद, अलगाववाद के जरिये पूरा करना चाहता है। इसका माकूल जवाब देने के बजाय डा.मनमोहन सिंह सरकार विदेशी दबाव में थ्रेड वेयर बातचीत करने, हीलिंग टच भरने पर राजी होकर अपनी दुर्बलता उजागर कर रहे हैं।
पिछले तीन माह से अलगाववादियों, सुरक्षा बलों पर किसके इशारव् पर हमला बोल रहे हैं। सुरक्षा बलों की जांच का आदेश देकर उमर अदुल्ला सरकार ने पुलिस, अर्धसैनिक बल और फौज का मनोबल खंडित कर दिया है। पुलिस यूनिफार्म लगाकर शहर में निकल नहीं सकती। पथराव करना कुटीर उघोग बन गया है। राद्गय सरकार मजबूर है। विरोध प्रदर्शन ने उधोग धंधे चौपट कर दिये हैं। पर्यटन उघोग बदहाली की कगार पर है। कालेज स्कल बंद है। छात्रों को पेड स्टोन पेल्टर बना दिया है। इस समस्या की सारी जिम्मेदारी अलगाववादी, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस केंद्र या भारत सरकार पर कैसे डाल सकते हैं। फिर समझने की बात यह है कि जम्मूकश्मीर की आबादी देश की एक प्रतिशत है और यहां भारत सरकार देश का ११ प्रतिशत बजट खर्च करती है। स्वायतत्ता की मांग जम्मूकश्मीर को बदहाली, गुलामी की ओर धकेल रही है। भारत की जनता, विशेष् रूप से भारतीय जनता पार्टी से इसे किसी भी हालत में कबूल नहीं कर सकती। जम्मूकश्मीर अवाम की कोई आर्थिक राजनीतिक समस्या नहीं है। यह भारत के विरुद्ध प्रायोजित ष्डयंत्र है। इसका सीधा और सपाट समाधान यही है कि देश की हर जवान पर भारत प्रथम नेशन फर्स्ट का नारा और हौंसला हो।
- भरतचंद्र नायक
ए५ऋ, ई६, अरव्रा कालोनी, भोपाल, दूरभाष् २५६४११ऽ
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