आज का अभिमन्यु
मोबाइल का चक्रव्यूह-कैसे उबरे
चैन से जीना हुआ दुश्वार : आज के वैश्वीकरण के युग में जहाँ भोगवाद के साधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, वहाँ एक ऐसा उपकरण, जो विज्ञान की प्रगति का भी सूचक है तथा बहुउद्देशीय कार्य सिद्ध करने वाला भी, मनुष्य मात्र के लिए अब एक मुसीबत भी बनता जा रहा है। इस उपकरण का नाम है मोबाइल या सेल फोन। इसके बिना अधिकांश लोगों की दिनचर्या आरंभ नहीं होती। दिन भर लोग इसे छाती से लगाए फिरते हैं और यह बेवफा है भी ऐसा कि आमजन की दैनंदिन आवश्यकता की वस्तु बहुत जल्दी बन बैठा है। आज से ज्यादा नहीं, पंद्रह या बीस वर्ष पूर्व की कल्पना करें, उन दिनों यह फोन आसानी से उपलब्ध नहीं था। जिंदगी चैन से बीतती थी-अपनी भी एवं उनकी भी, जिन्हें हम आज चैन से जीने नहीं देते; क्योंकि हमारे पास यह उपकरण जो आ गया है।
विज्ञान की देन : विज्ञान ने बड़ी तेजी से प्रगति की है एवं इक्कीसवीं सदी आते-आते इलेक्ट्रानिक्स बुरी तरह हमारी जीवन शैली पर छा गई है, इस सीमा तक कि हम उनके बिना जीने की सोच नहीं सकते। कई उपकरण हमारी दैनंदिन उपयोगिता की वस्तु बन गए हैं। हर व्यक्ति तो उन्हें खरीद नहीं सकता, पर जो भी खरीद पाने की स्थिति में हैं, वे उन्हें लेना चाहते हैं। इनके कारण हमारी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर, हमारी जीवनशैली, हमारा पारस्परिक आत्मीयता भरा जीवनक्रम, सभी बड़े प्रभावित हुए हैं। हमारे चौके आज आधुनिक उपकरणों से भरे पड़े हैं। भले ही बिजली का कोई ठिकाना न हो, चौबीस घंटो में कब गायब हो जाए, मालूम नहीं, पर स्टेटस सिंबल के नाते हमने उन्हें खरीद रखा है। ऐसे उपकरणों में रेफ्रीजरेटर, माइक्रोवेव, कुकिंग रेंज, मिक्सी-ज्यूसर आते हैं।
स्मार्ट घर-उपकरण : हमारे घर भी आधुनिक प्रौद्योगिकी के विकास के कारण 'स्मार्ट घर' होते जा रहे हैं। आप चाहें तो अपनी कार से स्विच दबाकर घर का एअरकंडीशनर, गरम पानी हेतु गीजर, सभी समय से आरंभ कर सकते हैं। घरों में अब जो सामान दिखाई देता है, वह नफासत भरा है। भले ही 'आसान शर्तों वाले लोन' (??) से किसी मध्यमवर्गीय परिवार वाले ने लिया है, पर वह किसी न किसी तरह इसकी व्यवस्था कर लेता है। हमारा टेलीविजन चौबीस घंटे 300 से अधिक चैनल्स द्वारा हमारा मनोरंजन करता है। आप कहेंगे-आज की दुनिया ज्यादा सुंदर है, हसीन है, सुविधाओं से भरी है तथा पहले के लोगों से हम अधिक सुखी हैं, पर यहाँ सुख कहाँ हैं-कर्ज पटाने की चिंता है एवं तनखाह अब घर पर बहुत कम आती है; क्याेंकि अधिकांश किस्तों में कट जाता है। मन में शांति नहीं, फिर भी हम चार्वाकवादी मनोवृत्तियों में जी रहे हैं। अशांत व्यक्ति को गीता के अनुसार सुख कहाँ से मिलेगा! ऊपर से 21वीं सदी का यह मोबाइलरूपी अनुसंधान क्या हमें चौबीस घंटे चैन से रहने देता है?
भ्रांत-अशांत आज का व्यक्ति : तरह-तरह के सेल फोन हैं आज। किसी में फोटो लेने वाला कैमरा है तो किसी में हजारों गाने भरे पडे हैं। रिंगटोन, कालर टोन भी हजारों प्रकार की हैं, शांत दुनिया में शोर पैदा कर देने वाली। जिसे देखें, उसकी जेब में मोबाइल बजता रहता है। जिसका नहीं बजता, उसे यह माना जाता है कि यह सामाजिक प्राणी नहीं है, इसे कोई जानता नहीं। पुराने जमाने में, जब टं्रक लाइन पर लंबी दूरी का फोन करते थे तो जिस तरह जोर-जोर से बात करते थे, उसी तरह आज का आदमी औरों को सुनाने के लिए अपने मोबाइल से जोर से बात करता है। हाँ, इसकी उपयोगिता को कोई नकार नहीं सकता। इसने दूरियाँ कम की हैं एवं संपर्क अब और आसान हो गया है, पर उसकी कीमत क्या है? किसी ने कभी सोचा है क्या अंधाधुंध बढ़ती तकनीकी ने आज हमें जहाँ लाकर खड़ा कर दिया है, वहाँ हम अपने आप को ठगा-सा अनुभव करते हैं। लगता है, आज आदमी सन् सत्तर के दशक के व्यक्ति से ज्यादा कन्फ्यूज्ड है-भ्रांतियों में जी रहा है एवं अशांत है।
फोनधारकों की बढती संख्या : सेल फोन की अच्छाई व बुराई बताने के साथ थोडे अाँकडे भी बताने जरूरी हैं। आप सभी अवगत होंगे कि सेल फोन के क्षेत्र में भारत सबसे बडे उपभोक्ता के रूप में उभर कर आया है। मंदी के इस दौर में अगणित विदेशी कंपनियाँ, जिनमें नोकिया, सोनी-एरिकसन, मोटोरोला, एपल आदि हैं, भारत में कूद पड़ी हैं। उनके उत्पाद बिक रहे हैं, अत: उनकी कंपनियाँ भी चल रही हैं। वे सस्ती कीमत पर इसलिए दे पा रहे हैं कि माँग लाखों की संख्या में है। हर व्यक्ति सेल फोन रखना चाहता है। एक अंदाज है कि उपभोक्ताओं की संख्या इसी तरह बढ़ती रही तो 2010 तक 45 करोड़ भारतीयों के हाथ में मोबाइल होगा।
सेल फोन की जीवनयात्रा : इस अजीब से खिलौने के इतिहास पर नजर डालते हैं। 1926 में यूरोप में पहली बार प्रथम श्रेणी में यात्रा करने वाले यात्रियों कि लिए रेडियो टेलीफोनी का इस्तेमाल हुआ। 1940 तक यह पोलिस क्रूजर एवं एंबुलेंस, मोबाइल हॉस्पिटल आदि में टू-वे रेडियो कि तरह प्रयुक्त होता रहा। बाद में बैग फोन्स के रूप में इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना आसान हुआ। टू-वे रेडियो वॉकी-टॉकी के रूप में द्वितीय विश्वयुद्ध में यह प्रयुक्त हुआ। पहली बार 1945 में मोबाइल फोन जीरो जी जेनरेशन पर बहस आरंभ हुई। 1956 में 40 किलो का एक ऐसा सिस्टम एरिक्सन कंपनी ने बनाया, जिसे हाथ से कंट्रोल करना जरूरी नहीं था। वह स्वचालित था। 1970 में यूरोप व अमेरिका में विभिन्न नेटवर्क बने और घूमते हुए बात करने की तकनीक विकसित हो गई। 1983 में सेलुलर फोन थोड़ा भारी था, पर ले जाना आसान हो गया। 90 के दशक में 1992-93 के आस-पास आज का आधुनिक मोबाइल आया। इसमें दिन-दिन सुधार होता गया। ब्लैक बेरी ने इसे चलता-फिरता इंटरनेट सिस्टम बना दिया। मेसेज (संदेश) भेजे जाने लगे और इनका व्यापार करोड़ों-अरबों का हो गया। एक चलते-फिरते म्यूजिक सिस्टम से लेकर एक हाथ में पामटाप कम्प्यूटर का रूप इसने 2000 आते-आते ले लिया। चलते-फिरते फैक्स करना, फाइलें इधर से उधर भेजना कम्युनीकेटर द्वारा आसान हो गया। मोबाइल एक चलता-फिरता ऑफिस बन गया, जिसमें वीडियो टेलीफोनी, कान्फ्रेन्सिग आदि की सुविधा भी आ गई। देखा जाए तो एक क्रांति हो गई, जिसने दुनिया ही बदल डाली।
इसका भविष्य क्या होगा? : अब आगे क्या होने जा रहा है? इस पर भी एक निगाह डाल लेते हैं। टेलीकाम क्षेत्र हर माह डेढ़ करोड़ नए उपभोक्ता जोड़ रहे हैं। उन्हें तरह-तरह के आकर्षक पैकेज (फ्री टॉकटाइम, इतने एस.एम.एस. फ्री आदि) दिए जा रहे हैं। हमारे देश में जनवरी, 2009 तक मोबाइल रखने वालों की संख्या 36 कराेड, 67 लाख हो गई है। दो वर्षों के भीतर (2010 के अंत तक) देश के हर तीसरे आदमी के हाथ में मोबाइल होगा। पूरे देश में करीब 3 लाख मोबाइल टावर स्थापित हैं। जून, 2008 के ऑंकड़े देखे जाएँ तो हमारे देश में हर घंटे करीब 10,000 मोबाइल फोन बिक रहे हैं। मंदी का दौर भी आया, पर इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। दिसंबर,2008 तक खरीदने की दर यही थी। 2012 के अंत तक राष्ट्र की आधी आबादी के हाथों में मोबाइल फोन होगा।
भाँति-भाँति की सुविधाएँ : आधुनिकतम मोबाइल जो अब आ रहे हैं, उनमें ऐसी सुविधा आ रही है कि एक ही फोन पर चार सिमकार्ड उपलब्ध होंगे। दो सिमकार्ड वाले फोन तो आ ही गए हैं। इन स्मार्ट फोन्स से घर के सारे उपकरण संचालित हो सकेंगे। माइक्रोसॉफ्ट एवं एपल मैकिन्टाश कंपनी में बड़ी भारी इंजीनियर्स की टीम, जिनमें बहुसंख्य भारतीय हैं, इन्हीं पर रिसर्च कर रही हैं। अब इन फोनों में चाइल्ड लोकेटर (जिससे आप जान सकें कि आपका बच्चा कहां है?) तथा रिमोट रिसोर्स टै्रकिंग सर्विस भी आ रही है, जो स्थिति की पल-पल की जानकारी फोनधारकों को कराती रहेगी। यह है मोबाइल की यात्रा एवं भविष्य की संभावनाएँ। आपको नहीं लगता कि निजी स्वतंत्रता में जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप करने वाला एक शरारती खिलौना हम सबके बीच आ गया है?
साथ में बढती समस्याएँ : किंतु इसके साथ समस्याएँ भी बढ़ी हैं। आप बात कर रहे हैं और कॉल ड्राप हो जाता है, यानी बात बीच में बंद हो जाती है। बिल अनाप-शनाप आ रहे हैं। शिकायत सुनने वाला कोई भी नहीं। सबसे बड़ी समस्या कभी भी नेटवर्क चले जाने की है; क्योंकि सर्विस पर एक साथ लाखों फोन लगे हुए हैं। नेटवर्क की क्षमता से ज्यादा उपभोक्ता होने के कारण ये समस्याएँ आ रही हैं। सर्वे बताते हैं कि उपभोक्ता कुंठित है और अपने पुराने फोन (लैंडलाइन को याद कर रहा है।
शांति छीन लेने वाला शरारती खिलौना : अब सोचना यह है कि आज के अभिमन्यु को इस चक्रव्यूह से उबारा कैसे जाए? आधुनिकता की अंधी दौड़ ऐसी न हो कि हमारे जीवन से शांति ही छिन जाए। हम जप-ध्यान कर रहे हैं और पास में मोबाइल लेकर बैठे हैं-मालूम नहीं कब कौन-सा अनिवार्य फोन आ जाए। एक हाथ में माला एवं एक हाथ में कान से लगा मोबाइल हमने कई स्थानों पर देखा है। एक बडे अच्छे से विषय पर किसी का प्रवचन-उद्बोधन चल रहा है, ऐसे में एक मोबाइल बज उठता है। समस्या यह है कि उसे यह भी नहीं मालूम कि इसे बंद कैसे करना है। बड़ी हास्यास्पद-सी स्थिति आ जाती है, जब तमाम पूर्व सूचनाओं के बाद मोबाइल अशांति पैदा ही कर देते हैं। यह है आज का समाज, जो इस खिलौने के बिना जी नहीं सकता।
दुष्प्रभाव जानें एवं चक्रव्यूह से निकलें : सेल फोन के दुष्प्रभावों पर बड़ा शोध हुआ है। इसे मस्तिष्क का (विशेष रूप से टेंपोरल लोब) कैंसर, डिप्रेशन, एन्कजायटी, हृदयगति बढ़ना, रक्तचाप बढ़ना जैसे प्रभावों से संबंधित माना गया है, पर एक षडयंत्र के तहत इन शोधों को आम आदमी तक पहुँचने से मुनाफा कमाने वाली इन कंपनियों ने रोक दिया है। मोबाइल पर बात कर ड्राइविंग करने वालों के एक्सिडेंटों के किस्से सबको मालूम हैं। टॉवर से आने वाली तरंगों से पास रहने वाले व सेल फोन रखने वालों पर दुष्प्रभावों पर भी वैज्ञानिकों ने लिखा है। इस उपकरण का आतंकवादियाें ने भी विस्फोट कराने के लिए उपयोग किया है। अब देखा यह जाना चाहिए कि हमारी जीवनशैली को प्रभावित करने वाले मोबाइल का हमारे जीवन में कितना महत्व है? शांत जीवन जीने की इच्छा रखने वालों, निरोग रहने वालों को अब इससे निजात पानी ही होगी। इसके सीमित उपयोग के विषय में ही सोचना होगा। दुनिया जरूर इससे करीब हो गई है, पर दिलों की दूरियाँ बढ़ गई हैं। उन्हें पाटना होगा। घंटों बात करने वालों को इसके दुष्प्रभाव बताने होंगे। युवा पीढ़ी को इसके पढाई पर पड़ने वाले प्रभाव समझाने होंगे। तभी आज क अभिमन्यु इसके चक्रव्यूह से निकल सकेंगे।
साभार अखंड ज्योति मार्च 2009
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